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RSS सरसंघचालक मोहन भागवत हथियाराम मठ के लिए रवाना, 800 वर्ष पुरानी है सिद्धपीठ की परंपरा, जानें क्या है खास

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राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) सरसंघचालक मोहन भागवत बुधवार को गाजीपुर दौर पर हैं. वह हथियराम मठ में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होंंगे. यह सिद्धपीठ 800 वर्ष पुरानी है.

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Varanasi : राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत बुधवार सुबह विश्व संवाद केंद्र से गाजीपुर स्थित हथियाराम मठ के लिए रवाना हुए. मोहन भागवत मंगलवार की देर रात पांच दिवसीय प्रवास पर काशी पहुंचे. उनके आगमन को लेकर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं.

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सरसंघचालक मोहन भागवत सिद्धपीठ बुधवार को हथियाराम मठ में सिद्धिदात्री मां वृद्धिका का दर्शन-पूजन करेंगे. पूजन काशी के ब्राह्मण कराएंगे. इस दौरान वे मठ में ही रात्रि प्रवास भी करेंगे. अगले दिन 20 जुलाई को वह मिर्जापुर के सक्तेशगढ़ स्थित स्वामी अड़गड़ानंद आश्रम जाएंगे. फिर वहां से विंध्याचल स्थित देवरहा हंस बाबा आश्रम जाएंगे. रात में आराम करने के बाद 21 जुलाई की सुबह फिर वाराणसी लौटेंगे.

सम्मेलन में 25 देशों के मंदिरों के पदाधिकारी होंगे शामिल

सरसंघचालक काशी में संघ की धन्धानेश्वर महादेव शाखा में शामिल होंगे. शाम को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में दर्शन-पूजन कर अगले दिन 22 जुलाई को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित टेंपल कनेक्ट की ओर से आयोजित विश्व के मंदिरों के सम्मेलन इंटरनेशनल टेंपल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो का उद्घाटन करेंगे. 22 से 24 जुलाई तक होने जा रहे इस सम्मेलन में 25 देशों के 450 से ज्यादा मंदिरों के पदाधिकारी शामिल होंगे. हिंदुओं के अलावा सिख, जैन, बौद्ध धर्म के मठों, गुरुद्वारों के पदाधिकारी भी आएंगे. भागवत 22 जुलाई को ही शाम को मुंबई रवाना हो जाएंगे.

800 वर्ष पुरानी है सिद्धपीठ हथियाराम मठ की परंपरा

सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर महंत भवानी नंदन यति महाराज ने ने बताया कि संघ प्रमुख का सिद्धपीठ में रात्रि प्रवास का मूल उद्देश्य यहां सिद्धिदात्री मां वृद्धिका से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करना है. महंत भवानी नंदन यति महाराज ने बताया कि देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में हथियाराम मठ भी है. साकार ब्रह्म के उपासक शैव समुदाय के हथियाराम मठ की परंपरा 800 वर्ष प्राचीन है.

तप से मानव कल्याण

इसका प्रमाण जनश्रुतियों व प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों में मिलता है. यहां की गद्दी परंपरा दत्तात्रेय व शंकराचार्य से प्रारंभ होती है. 800 वर्ष पूर्व जंगल में बेसो नदी के तट पर गुरुजन ने तपस्या की. पूर्व में मां की मूर्ति को मिट्टी के कच्चे चबूतरे पर स्थापित कर जनकल्याण के लिए पूजन-अर्चन करना शुरू किया. इनके तप से मानव कल्याण के लिए आज भी सिद्धपीठ में कच्चे चबूतरे में मां वृद्धिका मौजूद हैं, जहां अखंड ज्योति जलाई जाती है. लोकमान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मां के दर्शन-पूजन करता है, वह खाली हाथ वापस नहीं जाता.

क्या है इस सम्मेलन का मकसद

आपको बता दें कि दुनिया के बड़े मंदिरों का सम्मेलन में 25 देशों के 450 से ज्यादा मंदिरों के पदाधिकारी हिस्सा ले रहे हैं. साथ ही मंदिरों के न्यासी, त्रावणकोर का राजकुमार (पद्मनाभस्वामी मंदिर), गोवा के पर्यटन मंत्री रोहण ए. खुन्ते, तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम के कार्यकारी अधिकारी धर्म रेड्डी भी शामिल रहेंगे. हिंदू के साथ ही सिख, बौद्ध और जैन धर्म से संबंधित मठ, मंदिर व गुरुद्वारों के पदाधिकारी भी आ रहे हैं. टेंपल कनेक्ट की तरफ से पहली बार इंटरनेशनल टेम्पल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो (आईटीसीएक्स) का आयोजन किया जा रहा है.

इसमें मंदिर प्रबंधन, संचालन व प्रशासन के विकास, सशक्तीकरण पर चर्चा की जाएगी. साथ ही पूरे विश्व में पूजा स्थल प्रधान की टीमों के लिए सर्वश्रेष्ठ कार्यपद्धति विकसित की जाएगी. स्थापना के साथ ही विकास व सक्षम बनाने की मुहिम आगे बढ़ाई जाएगी. तीन दिवसीय कार्यक्रम अतुल्य भारत अभियान का हिस्सा है. इसमें पर्यटन मंत्रालय भी सहयोग कर रहा है. सम्मलेन के दौरान मंदिर, मठ और गुरुद्वारों में आने वाले तीर्थयात्रियों के अनुभव, भीड़ प्रबंधन, ठोस कचरा प्रबंधन और बुनियादी सुविधाओं में सुधार जैसे विषयों पर चर्चा भी की जाएगी.

भारत की समृद्ध पूजा स्थल परंपरा से रूबरू होगी दुनिया

सम्मलेन में जैन धर्मशालाओं, प्रमुख भक्ति धर्मार्थ संगठन, यूनाइटेड किंगडम के हिंदू मंदिरों के संघ, इस्कॉन मंदिर, अन्न क्षेत्र प्रबंधन, विभिन्न तीर्थ स्थलों के पुरोहित महासंघ और विभिन्न तीर्थयात्रा संवर्धन परिषद के प्रतिनिधि भाग लेंगे. यह सम्मेलन एक प्लेटफॉर्म का काम करेगा, जहां पूरे विश्व के धर्मस्थलों की विविध संस्कृतियों, परंपराओं, कला और शिल्प के बारे में सीखने के साथ-साथ भारत की समृद्ध पूजास्थल धरोहर से दुनिया भी रूबरू होगी.

गंगा घाटों की सफाई से जुड़े लोग भी रखेंगे बात

सम्मेलन में हरित ऊर्जा, पुरातात्विक वास्तुशिल्प, लंगर प्रबंधन, प्रकाश व्यवस्था पर चर्चा होगी. तिरुपति बालाजी पूजास्थल के विशेषज्ञ पंक्ति प्रबंधन प्रणाली और वाराणसी के घाटों की सफाई व रखरखाव करने वाले सामाजिक संगठन के लोग भी शामिल होंगे. सत्रों को काशी विश्वनाथ मंदिर, महाकाल ज्योतिर्लिंग, अयोध्या राम मंदिर, पटना साहेब गुरुद्वारा, चिदंबरम मंदिर और विरूपक्ष मंदिर हम्पी के प्रतिनिधि संचालित करेंगे. साथ ही मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के प्रवेश के समय से ही कुछ अंतराल पर बैठने की व्यवस्था, पेयजल और सुव्यवस्थित कतार लगनी जरूरी है.

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