16.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

संगीत की नियमबद्ध साधना आवश्यक

Advertisement

कहा गया है, 'एक साधे सब सधै, सब साधै सब जाय'. संगीत के सभी सात स्वरों में एक को साधना बहुत जरूरी है. सिर्फ षड्ज (सा) को साधने से भी बाकी सभी स्वरों की सिद्धि हो सकती है. यह इस बात का द्योतक है कि संगीत में अनुशासन का गुण है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

विश्व संगीत दिवस को एक दिवसीय समारोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. संगीत साधक के रूप में यह दिन हमें याद दिलाता है कि कैसे इसके जरिये हम अपने संस्कार, अपनी परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रख सकते हैं. संगीत ऐसी शक्ति है जो विविधताओं के बावजूद दुनियाभर के लोगों को जोड़े रखती है. संगीत साधना अनुशासन सिखाती है. पर संगीत सीखने के लिए गुरु के प्रति सम्मान का भाव और सीखने के प्रति ललक होना बहुत जरूरी है. कहा गया है, ‘एक साधे सब सधै, सब साधै सब जाय’. संगीत के सभी सात स्वरों में एक को साधना बहुत जरूरी है. सिर्फ षड्ज (सा) को साधने से भी बाकी सभी स्वरों की सिद्धि हो सकती है. यह इस बात का द्योतक है कि संगीत में अनुशासन का गुण है. आप संगीत का अनुसरण करेंगे, तो आपके जीवन में अनुशासन स्वत: ही आ जायेगा.

- Advertisement -

आजकल बच्चों को सिर्फ कॉम्पिटिशन के लिहाज से संगीत सिखाया जाता है. उनको मेहनत करने के लिए प्रेरित नहीं किया जाता. इसे देख दुख होता है कि कल इन बच्चों का क्या होगा? वे कहीं टिकेंगे ही नहीं? संगीत पर मेहनत करने की जरूरत है, ट्रेंड पर नहीं. हो सकता है कि ट्रेंड पर काम कर आप हिट हो जाएं, लेकिन लंबा नहीं चल पायेंगे. अगर ट्रेंड के पीछे भागेंगे, तो संगीत चला जायेगा. जबकि संगीत के पीछे रहेंगे, तो संस्कृति के साथ रहेंगे और अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने में बड़ा योगदान दे पायेंगे. हर लोक गायक-गायिका के लिए साधना बहुत जरूरी है. यदि किसी को लगता है कि एक मिलियन व्यूज हो जाने से वे गायक-गायिका हो गये हैं, तो यह बड़ी भूल है.

संगीत योग है, यह थेरेपी भी है. यह जीवन में बुरे विचारों को आने नहीं देता है. कहा जाता है कि इटली की रानी जब अनिद्रा से जूझ रही थीं, तो शास्त्रीय संगीत के प्रकांड विद्वान पंडित ओंकारनाथ ठाकुर को आमंत्रित किया गया. उनकी म्यूजिक थेरेपी ने रानी की बहुत सहायता की. संगीत और योग का अन्योन्याश्रय संबंध है. संगीत अनुशासन खोजता है. साधना करने वाला अगर अनुशासन में नहीं होगा तो संगीत नहीं सीख पायेगा. शास्त्रीय संगीत का अपना अनुशासन है, अपनी नियमबद्धता है. लेकिन, लोक संगीत उतना बंधा हुआ नहीं है. उसका अनुशासन शास्त्रीय से अलग है.

बिहार का समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास रहा है. हमारे यहां झिझिया, सोहर, झूमर की संस्कृति है. यहां कई संगीत घराने रहे हैं. लोक, ध्रुपद और शास्त्रीय गायन की लंबी परंपरा रही है. इनको संरक्षित रखने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने व जीवित रखने के लिए बिहार का अपना आर्काइव होना जरूरी है. यह आर्काइव लिखित के साथ दृश्य में भी हो, ताकि लोग देख कर समझ सकें कि फलां रस्म कैसे की जाती है. इसमें संगीत नाटक अकादमी का बड़ा योगदान हो सकता है. आज यदि कोई खोजी व्यक्ति मुंडन पर शोध करना चाहे तो वह कहां पढ़ेगा? किसे खोजेगा? किसका उल्लेख करेगा? इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी विधाओं को पहले सूचीबद्ध करें. फिर उन पर गीतों का संकलन तैयार कर गायकों को बुला उन गीतों पर अच्छी गुणवत्ता वाले वीडियो तैयार किये जाएं. बिहार सरकार अगर पैकेजिंग के लिए एलर्ट हो जाए, तो अपनी विधाओं को संरक्षित कर सकती है.

समय के साथ परिवर्तन अनिवार्य है. इंटरनेट व एंड्रॉयड ने जमाना बदल दिया है. बदलाव होगा, पर यह किस दिशा में हो रहा है, इसे देखने की जरूरत है. गीतों में अश्लीलता, फूहड़ता आ गयी है. लोग इन गीतों को ही बिहार समझने लगे हैं. इससे चारों तरफ बदनामी होती है. मैं इससे बहुत आहत हो जाती हूं. पुराना संगीत मनेर के लड्डू की तरह है. उसके स्वाद का अहसास आप दशकों बाद भी अपनी जीभ पर महसूस करेंगे. बॉलीवुड के पुराने से लेकर आज तक के गानों को यदि आप देखेंगे, तो उत्तर भारत का लोक संगीत मिलेगा. लोक संगीत के आधार के बिना नये गाने भी हिट नहीं हो सकते. हमारा एक संस्कार है, हमारी विधाएं रही है, उसको परिष्कृत कर गा सकते हैं. लेकिन, लोग मेहनत ही नहीं करना चाहते.

मैं पांच वर्ष की उम्र से संगीत में आ चुकी थी. पिता शुकदेव ठाकुर की विचारधारा काफी व्यापक थी. आठ भाइयों की मैं अकेली बहन थी. इस वजह से माता-पिता और भाइयों का अपार प्रेम मिला. पिताजी ने विद्वत जनों को घर बुलाकर प्रशिक्षण दिलवाया. संगीत के पंचगछिया घराना के प्रकांड विद्वान पंडित रामचंद्र झा, रघु झा और ग्वालियर घराना के पंडित सीताराम हरी डांडेकर मेरे गुरु रहे. ठुमरी के लिए ख्यात पन्ना देवी से मुलाकात मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट रहा. सीखने का सिलसिला कभी खत्म ही नहीं हुआ. सौभाग्यशाली रही कि शादी के बाद पति डॉ ब्रजकिशोर सिन्हा ने भी पूरा साथ दिया. मैं अपने पहले रेडियो प्रोग्राम में रिजेक्ट कर दी गयी थी. मगर उसको चुनौती के रूप में लिया. प्रतिदिन आठ घंटे का अभ्यास किया. तबला वादक सूर्य कुमार राय परिवार का हिस्सा जैसे बन गये. कभी-कभी तो सुबह से शाम तक अभ्यास ही चलता रहता. कहना चाहूंगी कि लंबे समय तक संगीत की नियमबद्ध साधना कर व्यावसायिक जीवन में उतरने के बावजूद साधना बनाये रखने पर ही परिपक्वता आती है.

(सुमित से बातचीत पर आधारित)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें