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सिसई विधानसभा से रिकॉर्ड 4 बार विधायक बने बंदी उरांव की देखिए सादगी, पैदल और साइकिल से करते थे चुनाव प्रचार

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Jharkhand News (गुमला) : स्वर्गीय बंदी उरांव वर्ष 1980 में सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किये थे. इसके बाद उन्होंने जनता के बीच रहकर काम करना शुरू किये. जनता से उनका जुड़ाव व प्यार का परिणाम है कि वे एकलौते ऐसे नेता रहे, जो सिसई विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक चुने गये थे. वर्ष 1980, 1985, 1991 व 1995 में विधायक बने थे. अभी तक किसी विधायक ने उनके इस जीत के रिकॉर्ड को नहीं तोड़ पाया है.

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Jharkhand News (गुमला), रिपोर्ट- दुर्जय पासवान : पूरी जिंदगी अपने विचारों, सिद्धांतों और राज्य की जनमानस के हित के लिए काम करने वाले पूर्व मंत्री बंदी उरांव का 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. स्वर्गीय उरांव गुमला जिला अंतर्गत सिसई विधानसभा सीट से 4 बार रिकार्ड विधायक बने थे. बिहार के समय वे मंत्री बने थे. बीते 16 जनवरी 2021 को 90वां जन्मदिन मनाये थे. स्वर्गीय उरांव ऐसे शख्सियत थे. जिन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किये थे. बिहार व झारखंड राज्य के कदावार नेता माने जाते थे. जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अपने विचारों, सिद्धांतों और राज्य की जनमानस के हित के लिए लगा दिये थे. चुनाव के वक्त लोगों से पैदल और साइकिल से ही वोट मांगने निकल जाते थे.

स्वर्गीय बंदी उरांव वर्ष 1980 में सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में प्रवेश किये थे. इसके बाद उन्होंने जनता के बीच रहकर काम करना शुरू किये. जनता से उनका जुड़ाव व प्यार का परिणाम है कि वे एकलौते ऐसे नेता रहे, जो सिसई विधानसभा क्षेत्र से चार बार विधायक चुने गये थे. वर्ष 1980, 1985, 1991 व 1995 में विधायक बने थे. अभी तक किसी विधायक ने उनके इस जीत के रिकॉर्ड को नहीं तोड़ पाया है.

श्री उरांव अपनी राजनीतिक जीवन में कई ऐसे काम किये हैं जो कि संवैधानिक प्रावधान के रूप में पूरे देश में लागू है. अपने समधी स्वर्गीय कार्तिक उरांव के साथ मिलकर बंदी उरांव ने जनता के बीच रहकर काम किये थे. स्वर्गीय कार्तिक उरांव के कहने पर ही बंदी उरांव राजनीति में आये थे. त्यागपत्र देकर सरकारी नौकरी छोड़ दी थी. उनका मानना था कि झारखंड को ऐसे राजनेता की जरूरत है जो राज्य की जनता के लिए काम करें. यहां के लोगों की सोच को समझे. इसलिए बंदी उरांव ने जनता की सेवा का बीड़ा उठाया और अपने जीवनकाल में जनता के लिए काम करते रहे.

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स्वर्गीय बंदी उरांव का अपना घर भरनो प्रखंड के दतिया गांव है, लेकिन वर्तमान में वे रांची में रहते थे. बंदी उरांव ने सिसई विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूती प्रदान किये. आज भी कई ऐसे गांव है जहां स्वर्गीय बंदी उरांव को लोग याद करते हैं. उन्हें अपना नेता मानते हैं.

बंदी उरांव के साथी पूर्व विधायक बैरागी उरांव ने कहा : मैं आखिरी विकेट बचा हूं

गुमला विधानसभा के पूर्व विधायक 78 वर्षीय बैरागी उरांव अपने साथी और पूर्व मंत्री बंदी उरांव के निधन से दुखी हैं. बैरागी उरांव ने कहा कि हमलोग 10 रत्न थे. 9 साथियों का निधन हो गया. अब मैं आखिरी विकेट बचा हूं. कब भगवान मुझे बुला लेगा. कहा नहीं जा सकता. बैरागी उरांव ने कहा कि हमलोग 10 साथी थे, जो स्वर्गीय कार्तिक उरांव के नेतृत्व में कांग्रेस में शामिल हुए थे. इनमें लोहरदगा के शिवप्रसाद साहू, भुखला भगत, इंद्रनाथ भगत, मांडर के कृष्णा भगत, बेड़ो के करमचंद भगत, गुमला के सुकरू भगत, खिजरी के साधो कुजूर, रांची के देवदत्त साहू, सिसई के बंदी उरांव थे. ये सभी मेरे अजीज दोस्त थे. परंतु आज इन सभी का निधन हो गया है. बस मैं अकेला बच गया हूं.

बैरागी उरांव ने कहा कि हमलोगों ने सिर्फ जनता की सेवा के लिए राजनीति में आये थे. अपने कार्यकाल में जनता के लिए काम किया. बैरागी उरांव खुद गुमला विधानसभा से तीन बार विधायक बने हैं. बैरागी उरांव का जन्म 1943 में हुआ था. केओ कॉलेज, गुमला में राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहते हुए गुमला विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीते. वर्ष 1972, 1980 व 1985 में चुनाव जीतकर विधायक बने.

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श्री उरांव ने कहा सबसे पहले 1972 में जब चुनाव हुआ था. उस समय गुमला में चार पहिया गाड़ी शहर में मात्र 2 लोगों के पास हुआ करती थी. एक चंदर साव और दूसरा घुड़ा भगत थे. इन लोगों के पास जीप गाड़ी थी. एक दिन के चुनाव प्रचार के लिए ये लोग 60 रुपये भाड़ा लेते थे. हालांकि, मैं जब चुनाव लड़ा था तो साइकिल से प्रचार करता था. उस समय गुमला विधानसभा में गुमला, कामडारा और बसिया प्रखंड आता था. चूंकि कॉलेज में पढ़ा रहा था, तो गुमला में ही रहता था. जबकि मेरा घर चैनपुर प्रखंड में है.

उन्हाेंने कहा कि गुमला से बसिया व कामडारा प्रखंड के कई दुर्गम गांव 60 से 70 किमी दूर तक साइकिल से ही प्रचार करने निकल जाता था. रात को कई गांवों में प्रचार के दौरान रूक जाता था. उस समय प्रचार करने का मजा ही अलग था. जिस गांव में जाते थे. लोग मेहमान बनाने को आतुर रहते थे. बंदी उरांव भी पैदल व साइकिल से चुनाव प्रचार करते थे.

Posted By : Samir Ranjan.

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