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दक्षिण भारत में प्रधानमंत्री की सक्रियता

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जब प्रधानमंत्री मोदी स्वयं अपनी सरकार और पार्टी की पहुंच बढ़ाने के अभियान में इतनी मेहनत से जुटे हैं, तो उसका असर पड़ना स्वाभाविक है. अपनी सभाओं में वे भावनात्मक जुड़ाव की कोशिश तो कर ही रहे हैं, साथ ही विपक्ष पर भी आक्रामक हैं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दक्षिणी राज्यों पर ध्यान देना, वहां सभाएं करना और विभिन्न योजनाओं की घोषणा करना नयी परिघटना नहीं है. ऐसा वे लंबे समय से करते आ रहे हैं, लेकिन हाल के वर्षों में उनकी इस सक्रियता में बढ़ोतरी हुई है और इसमें अनेक आयाम जोड़े गये हैं. संसद की नयी इमारत में लोकसभा के कक्ष में सेंगोल को राजदंड के प्रत्येक रूप में स्थापित करना और तमिलनाडु यात्रा में उसका उल्लेख करना, काशी संगमम जैसे बड़े आयोजन का किया जाना और इस पहल के अंतर्गत तमिल साहित्य, व्याकरण और अन्य शास्त्रों के प्रसिद्ध ग्रंथों का कई भाषाओं में अनुवाद कराना उल्लेखनीय गतिविधियां हैं. वाराणसी में जो श्रद्धालु आते हैं, उनमें 20 प्रतिशत लोग तमिलनाडु से होते हैं. यह भगवान शिव की नगरी है और दक्षिण भारत में उन्हें मानने वाले लोगों की बड़ी संख्या है. हाल में प्रधानमंत्री मोदी की दक्षिण में आउटरीच की कोशिशें बहुत तेज हो गयी हैं. पिछले दिनों उन्होंने तमिलनाडु और केरल की यात्रा की है. उन्होंने तिरुचिरापल्ली में हवाई अड्डे के नये टर्मिनल का उद्घाटन किया और 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक की लागत की अनेक परियोजनाओं की घोषणा भी की. ये परियोजनाएं हवाई अड्डे, रेल, राजमार्ग, बंदरगाह, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा, उच्च शिक्षा आदि क्षेत्रों की हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी रेखांकित किया कि बीते एक साल में 40 से अधिक केंद्रीय मंत्रियों ने तमिलनाडु की 400 से अधिक यात्राएं की हैं. उन्होंने तमिलनाडु को सांस्कृतिक प्रेरणा भी बताया.

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केरल में तो वे राजनीतिक रूप से बहुत आक्रामक नजर आये और अपने भाषण में उन्होंने कांग्रेस और वाम मोर्चे की तीखी आलोचना की. वहां भाजपा ने महिलाओं की एक बड़ी सभा का आयोजन किया. लक्षद्वीप, जहां बड़ी मुस्लिम आबादी है, में भी उन्होंने महिलाओं के लिए चल रहीं केंद्र सरकार की योजनाओं को गिनाया. साथ ही, उन्होंने तिहरे तलाक से छुटकारा दिलाने की उपलब्धि का भी उल्लेख किया. यदि हम देश के अन्य हिस्सों में देखें, तो महिलाओं का भरोसा हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा लगातार प्रयास करते रहे हैं. इसका उन्हें बहुत राजनीतिक लाभ भी हुआ है. दक्षिण में सांस्कृतिक एवं धार्मिक मुद्दों तथा विकास योजनाओं को आधार बनाने के साथ-साथ उनकी कोशिश है कि महिलाओं को अपने पाले में लाकर जनाधार बढ़ाया जा सकता है. पिछले दिनों मैं बनारस में थी. वहां मैंने देखा कि प्रधानमंत्री के बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं, जिनमें वे तमिल भाषा में तीर्थयात्रियों का अभिनंदन कर रहे हैं.

पिछले लोकसभा चुनाव को देखें, तो उत्तर और पश्चिम में भाजपा ने बहुत बड़ी जीत हासिल की थी. दक्षिण में कर्नाटक में भी उसने लगभग सभी सीटें जीत ली थीं. अब इन राज्यों में अधिक बढ़त की गुंजाइश तो है नहीं. कुछ सीटें कम भी हो सकती हैं. कर्नाटक में पिछले रिकॉर्ड को दुहराना आसान नहीं होगा. ऐसे में भाजपा के लिए आवश्यक है कि वह दक्षिण में कुछ सीटें जीते, ताकि दूसरी जगहों के नुकसान की भरपाई की जा सके. हमें ध्यान रखना चाहिए कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का लक्ष्य केवल बहुमत जुटाना नहीं है, वे चाहते हैं कि उनकी सीटें 303 से अधिक हों. इसलिए उनका ध्यान दक्षिण की ओर बढ़ा है. तमिलनाडु में उनकी कोशिश तो बहुत समय से चल रही है. राज्य में अन्नामलाई जैसे युवा के हाथ में पार्टी की कमान देने के बाद से पार्टी अधिक सक्रिय हुई है. अन्नामलाई बहुत मेहनती नेता माने जाते हैं और उनके बयान भी सुर्खियों में रहते हैं. मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में दक्षिणी राज्यों के लिए और परियोजनाओं की घोषणा हो सकती है. इसके अलावा, भाजपा क्षेत्रीय पार्टियों के साथ तालमेल भी करने की कोशिश करेगी. तमिलनाडु में उन्होंने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की उपस्थिति में दिवंगत एमडीएमके नेता और फिल्म स्टार विजयकांत की प्रशंसा करते हुए श्रद्धांजलि दी, जो स्टालिन की डीएमके के विरोधी थे. मुख्य विपक्षी दल अन्ना द्रमुक से भाजपा की निकटता पहले से है. अभी उनका औपचारिक गठबंधन नहीं है, पर चुनाव आते-आते कुछ समझौता संभावित है. तेलंगाना में भाजपा के चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति से समझौता कर सकती है. आंध्र प्रदेश में भी मुख्यमंत्री जगन रेड्डी की वाइएसआर कांग्रेस से संपर्क की बात सुनी जा रही है. चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम और फिल्म स्टार पवन कल्याण की पार्टी जन सेना ने तो खुले तौर पर भाजपा से गठबंधन बनाने की बात कही है. कर्नाटक में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल (सेकुलर) से भाजपा का गठबंधन हो ही चुका है.

यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि कर्नाटक के अलावा अन्य दक्षिणी राज्यों में भाजपा की सांगठनिक उपस्थिति कमजोर है. कर्नाटक में भी पार्टी के भीतर गुटबाजी है और भ्रष्टाचार के आरोप भी हैं. हाल में कांग्रेस से मिली हार से भी पार्टी को धक्का लगा है. तेलंगाना में पहले लग रहा था कि मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति और भाजपा के बीच होगा. प्रधानमंत्री मोदी ने प्रचार भी किया था, लेकिन भाजपा बहुत पीछे रह गयी और कांग्रेस ने बाजी मार ली. इसकी बड़ी वजह पार्टी संगठन का कमजोर होना रहा. ऐसे में भाजपा अपने प्रसार के लिए प्रधानमंत्री मोदी की छवि और लोकप्रियता पर बहुत हद तक निर्भर है. हालांकि उत्तर और पश्चिम भारत में भी उनकी लोकप्रियता भाजपा की सबसे बड़ी शक्ति है, लेकिन दक्षिण भारत में उनकी सक्रियता ही भाजपा को आगे ले जा सकती है. व्यक्तिगत रूप से बतौर नेता प्रधानमंत्री मोदी दक्षिण में भी बहुत लोकप्रिय हैं. इसका एक अंदाजा उनकी सभाओं में आने वाली भीड़ से लगाया जा सकता है. इसे भुनाने की कोशिश भाजपा कर रही है.

दक्षिण में भाजपा की उपस्थिति कमजोर होने के अनेक कारण हैं और वहां मजबूत राजनीतिक ताकत बनने में समय लग सकता है, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी स्वयं अपनी सरकार और पार्टी की पहुंच बढ़ाने के अभियान में इतनी मेहनत से जुटे हैं, तो उसका असर पड़ना स्वाभाविक है. अपनी सभाओं में वे भावनात्मक जुड़ाव की कोशिश तो कर ही रहे हैं, साथ ही विपक्ष पर भी आक्रामक हैं. केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और विकास कार्यक्रमों के लाभार्थी तो दक्षिण भारत में भी है. इसीलिए जब वे मोदी सरकार की गारंटी की बात करते हैं, तो लोग सुनते हैं.

(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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