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EXCLUSIVE : तब सही मायने में हर दिन महिला दिवस होगा- पूजा गौर

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Pooja Gor Interview : छोटे परदे के सशक्त और यादगार किरदारों में से एक प्रतिज्ञा की 9 साल के लंबे अंतराल के बाद छोटे परदे पर वापसी होने वाली है. अभिनेत्री पूजा गौर (Pooja Gor) एक बार फिर प्रतिज्ञा की लोकप्रिग भूमिका में सीरियल मन की आवाज़ प्रतिज्ञा के सेकंड सीजन में नज़र आएंगी. उनके इस शो और महिलाओं से जुड़े कुछ अहम मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत...

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Pooja Gor Interview : छोटे परदे के सशक्त और यादगार किरदारों में से एक प्रतिज्ञा की 9 साल के लंबे अंतराल के बाद छोटे परदे पर वापसी होने वाली है. अभिनेत्री पूजा गौर (Pooja Gor) एक बार फिर प्रतिज्ञा की लोकप्रिग भूमिका में सीरियल मन की आवाज़ प्रतिज्ञा के सेकंड सीजन में नज़र आएंगी. उनके इस शो और महिलाओं से जुड़े कुछ अहम मुद्दों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…

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इस सीजन में प्रतिज्ञा शो में क्या खास होने वाला है?

इस बार शो फ्रेश,धमाकेदार होने के साथ साथ और मज़ेदार होने वाला है क्योंकि कई नए किरदार इससे जुड़े हैं. प्रतिज्ञा ने हमेशा चाहा है कि उसका परिवार और आसपास के सभी लोग सही रास्ते पर चलें. इस बार भी उसकी यह सोच है लेकिन यह आसन नहीं है. प्रतिज्ञा भी हार मानने वालों में से कहां है.

नौ साल के बाद फिर उस किरदार को जीने में क्या तैयारियां करनी पड़ी?

प्रतिज्ञा का किरदार मैंने पहले किया है इसलिए उसकी सोच को समझती हूं. हाँ कहानी 9 साल आगे बढ़ गयी है इसलिए किरदार को और परिपक्वता से प्रस्तुत करना है. मैं दो बच्चों की मां शो में बनी हूं, जबकि निजी जिंदगी में मैं मां नहीं हूं. इसलिए जो शो में मेरे बच्चे बनें हैं उनके असल माता पिता से थोड़े टिप्स लिए. उनको गौर किया. मैं उत्साहित होने के साथ साथ बहुत नर्वस भी हूं क्योंकि प्रतिज्ञा बहुत पॉपुलर शो रहा है. उम्मीद है कि इस सीजन भी दर्शक उसे पहले की तरह प्यार देंगे.

आज महिला दिवस है , क्या आप 8 मार्च को महिला दिवस सेलिब्रेट करने में यकीन करती हैं?

मुझे लगता है कि एक दिन नहीं बल्कि हर दिन महिला का दिन होना चाहिए. महिलाएं समाज की बराबर की भागीदार है. ऐसे में एक दिन सिर्फ उनको देना सही नहीं है लेकिन इसके साथ ही मैं ये भी कहूंगी कि वुमन हुड के सेलिब्रेशन का जब भी मौका मिले. मनाना चाहिए. समाज को पितृसत्ता से मुक्त होने की ज़रूरत है और पुरुषों को महिलाओं को अपने बराबर समझना होगा तभी सही मायने में हर दिन महिला दिवस होगा.

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एक महिला जिसे आप अपना आदर्श करार देंगी?

मैंने हमेशा ये कहा है कि कोई एक महिला नहीं बल्कि मेरे आसपास की कई महिलाएं मेरे लिए मेरी प्रेरणास्त्रोत रही हैं. मेरी माँ,मेरी शिक्षिका,मेरी कोएक्टर्स,मेरी सहेलियों से लेकर मेरी बाई तक सभी ने मुझे कुछ ना कुछ सीखाया है. सबका ज़िन्दगी जीने का तरीका चीजों को हैंडल करने का नज़रिया अलग है. सबका वर्क लाइफ,पर्सनल लाइफ,सोशल लाइफ को मैनेज करने का तरीका अलग है. जिनसे मैंने कुछ ना कुछ सीखा है.

एक लड़की होने के नाते आपकी परवरिश कैसी रही,क्या आपको एहसास करवाया गया था कि आप लड़की हैं आपको ये करना चाहिए ये नहीं?

मेरी फैमिली में 14 भाई थे और मैं अकेली उनकी बहन. दो और दूर की बहनें थी लेकिन वो हमारे साथ नहीं रहती थी. विदेश में रहती थी. मैं अकेले लड़की थी इसलिए मेरे माता पिता ही नहीं बल्कि चाचा चाची,ताया ताऊ सभी मुझे प्रिंसेस की तरह ट्रीट करते थे. मेरे मम्मी पापा ने कभी भी मुझे या मेरे भाई को अलग अलग बातें नहीं सिखायी. वो हमदोनों को ही स्ट्रांग और इंडिपेंडेंट होने की शिक्षा देते थे. मैंने अपने बचपन से ही समानता वाली दुनिया देखी है. जहां लड़के लड़की में कोई भेद नहीं था और वही दुनिया मैंने अपने आसपास बनायी. जहां लड़की होने के नाते कोई मुझे कमतर ना आंका जाए फिर वर्क लाइफ हो या सोशल लाइफ.

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कोई खास फीमेल किरदार जो आप करना चाहती हैं और क्यों?

हुसैन ज़ैदी की किताब माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई मुझे पसंद है. उनमें से किसी एक माफिया क्वीन का किरदार निभाना चाहूंगी. मुझे लगता है कि उस किरदार को निभाने में बहुत मज़ा आएगा.

अक्सर बातें होती हैं कि महिलाओं को जब समानता चाहिए तो उन्हें आरक्षण की क्यों ज़रूरत है?

हमारा समाज बदला है. कई चीज़ें बदली हैं लेकिन उतना नहीं बदला है. जितना बदलना चाहिए. महिलाओं और पुरुषों में समानता नहीं आयी है. आप देख सकते हैं. जब तक आफिस में काम पर जाने वाले से लेकर संसद में काम करने वाले राजनेताओं तक महिला पुरुष की संख्या में बराबरी नहीं होगी. महिलाओं को रिजर्वेशन की ज़रूरत है.

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