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गयाजी में 54 वेदी स्थल और आठ सरोवर में पिंडदान-तर्पण का विधान, जानें यहां श्राद्ध की क्या है मान्यता

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Pitru Paksha 2023: अश्विन मास में अनंत चतुर्दशी से 17 दिनों तक आयोजित होनेवाले मितृपक्ष मेले में अलग-अलग तिथियां में इन सरोवरों में पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड किया जाता है. गयाजी में 54 वेदी स्थल और आठ सरोवर है. जहां पर पिंडदान और तर्पण का विशेष विधान है.

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Pitru Paksha 2023: गयाजी में वर्तमान में 54 वेदी स्थलों पर तीर्थयात्री अपने पितरों की आत्मा की शांति व मोक्ष की प्राप्ति की कामना को लेकर पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का कर्मकांड करते हैं. इन वेदी स्थलों में आठ ऐसे सरोवर हैं, जिनका पौराणिक व धर्मिक महत्व है. मान्यता है कि ब्रह्मा सरोवर, वैतरणी, उत्तर मानस सरोवर, सूर्यकुंड, रुक्मिणी सरोवर, ब्रह्मकुंड, रामकुंड व गोदावरी सरोवर ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित कराया गया है. इन सरोवरों पर पितृपक्ष मेले में पिंडदान व तर्पण के कर्मकांड का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है. अश्विन मास में अनंत चतुर्दशी से 17 दिनों तक आयोजित होनेवाले मितृपक्ष मेले में अलग-अलग तिथियां में इन सरोवरों में पिंडदान व तर्पण का कर्मकांड किया जाता है.

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गोदावरी में पिंडदान और तर्पण से तीर्थ का मिलता है फल

गया शहर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित गोदावरी सरोवर है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के अनंत चतुर्दशी तिथि को जो पुनपुन नदी नहीं जा सकते, उनके लिए यहां पिंडदान व तर्पण का विधान है. गोदावरी में पिंडदान से तीर्थ करने के समान फल मिलता है.

ब्रह्मकुंड में पिंडदान से पितरों को प्रेतयोनि से मिलती है मुक्ति

ब्रह्मकुंड गया शहर से करीब आठ किमी दूर उत्तर दिशा में ब्रह्मकुंड स्थित है. पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को यहां पिंडदान व तर्पण का विधान है. ब्रह्मकुंड पिंडदान से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है.

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रामकुंड में पिंडदान से पितरों को विष्णुलोक की होती है प्राप्ति

रामकुंड गया शहर के उत्तरी क्षेत्र में रामशिला पहाड़ के पास स्थित है. यहां पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को पिंडदान व तर्पण का विधान है. रामकुंड में पिंडदान व तर्पण करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है.

यहां पिंडदान करने पर पितरों को जन्म-मरण से मिलता है छुटकारा

उत्तर मानस सरोवर में पिंडदान करने पर पितरों को जन्म-मरण से छुटकारा मिल जाता है. उत्तर मानस सरोवर गया शहर के मध्य क्षेत्र में फल्गु नदी के तट पर उत्तर मानस सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को यहां पिंडदान व तर्पण करने का विधान है. मान्यता है कि यहां पर पिंडदान करने पर पितरों को जन्म-मरण यानी जीवन चक्र से छुटकारा मिल जाता है.

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सूर्यकुंड में पिंडदान व तर्पण करने से पितरों को सूर्यलोक की होती हे प्राप्ति

विष्णुपद मंदिर के पास सूर्यकुंड (दक्षिण मानस) सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के तीसरे दन यहां कर्मकांड का विधान है. मान्यता के अनुसार सूर्यकुंड सरोवर में तर्पण करने से पितरों को सूर्यलोक की प्राप्ति होती है.

ब्रह्म सरोवर में तर्पण करने पर पितरों को होता है उद्धार

गयाजी शहर के दक्षिणी क्षेत्र में ब्रह्म सरोवर स्थित है. पितृपक्ष मेले की चतुर्थी तिथि को यहां पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण करने का विधान है. मान्यता है कि यहां पर पितृपक्ष के चतुर्थी तिथि को पिंडदान करने पर पितरों का उद्धार होता है और उनको बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है.

जानें वैतरणी सरोवर में पिंडदान व तर्पण करने का महत्व

पितृपक्ष में वैतरणी सरोवर पर पिंडदान करने का विशेष महत्व है. गयाजी शहर के दक्षिणी क्षेत्र में वैतरणी सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले की चतुर्दशी तिथि को यहां कर्मकांड का विधान है. वैतरणी सरोवर में गोदान व तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओ के पितरों को भवसागर की प्राप्ति होती है. उनके लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते है.

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जानें रुक्मिणी सरोवर पर पिंडदान करने का महत्व

गया शहर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित रुक्मिणी सरोवर स्थित है. यहां पर पिंडदान करने का फल अक्षयवट वेदी जैसा मिलता है. अक्षयवट वेदी पर ज्यादा भीड़ रहने के कारण श्रद्धालु रुक्मिणी सरोवर पर आकर पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण का कर्मकांड करने है. इस स्थल पर कर्मकांड करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को अक्षयवट वेदी पर कर्मकांड करने जैसे फल की प्राप्ति होती है.

पिंडदान कैसे किए जाते हैं?

चावल को गलाकर और गलने के बाद उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल पिंड बनाए जाते हैं. जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर और दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडो को पितरों को अर्पित करने को ही पिंडदान कहते हैं. धार्मिक मान्यता है कि चावल से बने पिंड से पितर लंबे समय तक संतुष्ट रहते हैं.

पिंडदान का सही समय क्या है?

पिंडदान दोपहर के समय किया जाता है. जिन लोगों की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए. पितृ पक्ष में दोनों वेला स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए. कुतप वेला यानी सुबह 11 बजकर 30 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट के बीच का समय बहुत ही अच्छा माना गया है, इस समय में पितरों को तर्पण दें, इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है. तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व होता है. कुश और काले तिल के साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है.

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