16.1 C
Ranchi
Saturday, February 22, 2025 | 03:16 am
16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

रामकथा वाचन के लिए मशहूर थे पंडित राधेश्याम

Advertisement

इस योजना के अंतर्गत एक परिवार से एक सदस्य को पांच प्रतिशत के रियायती ब्याज दर पर दो लाख रुपये की पूंजी उपलब्ध करायी जायेगी. पहली किश्त में एक लाख दिया जायेगा.

Audio Book

ऑडियो सुनें

वर्ष 1890 के 25 नवंबर को उत्तर प्रदेश के बरेली में पिता पंडित बांकेलाल के घर जब उनका जन्म हुआ, तो भयानक गरीबी के दिन थे, कई बार चूल्हा जलने की भी नौबत नहीं आती थी. उनकी पौत्री शारदा भार्गव के अनुसार, ‘बाबा के होश संभालने तक कमोबेश यही स्थिति रही. एक बार बाबा को भजन गाने के एवज में अठन्नी मिली, तो उसी से एक समय के भोजन की व्यवस्था हुई.’ छुटपन में गरीबी के इतने दारुणदाह झेलने वाले राधेश्याम पर बाद में लक्ष्मी व सरस्वती दोनों ने जी भरकर कृपा बरसायी.

वर्ष 1907-08 तक हिंदी, उर्दू, अवधी और ब्रजभाषा के प्रचलित शब्दों के सहारे अपनी खास गायन शैली में उन्होंने जो ‘राधेश्याम रामायण’ रची, वह लोगों में इतनी लोकप्रिय हुई कि उनके जीवनकाल में ही उसकी हिंदी-उर्दू में कुल मिलाकर पौने दो करोड़ से ज्यादा प्रतियां छप व बिक चुकी थीं और यह सिलसिला अभी भी थमा नहीं है.

रामकथा वाचन की उनकी विशिष्ट शैली का प्रताप तो ऐसा था कि पं मोतीलाल नेहरू ने अपनी पत्नी स्वरूपरानी की बीमारी के दिनों में पत्र लिखकर उन्हें ‘आनंदभवन’ बुलाया. उनके प्रशंसकों में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद भी थे, जिन्होंने राष्ट्रपति भवन में आमंत्रित कर उनसे पंद्रह दिनों तक रामकथा का रसास्वादन किया था. एक समय उनसे अभिभूत नेपाल नरेश ने उन्हें अपने सिंहासन से ऊंचे आसन पर बैठाया और ‘कीर्तन कलानिधि’ की उपाधि दी. ‘साहित्यवाचस्पति’ और ‘कथाशिरोमणि’ आदि की उपाधियां भी उनके पास थीं.

अलवर नरेश ने महारानी के साथ उनकी कथा सुनी तो एक स्मृति पट्टिका दी थी, जिस पर लिखा था- ‘समय समय पर भेजते संतों को श्रीराम, बाल्मीकि तुलसी हुए, तुलसी राधेश्याम.’ वर्ष 1922 में लाहौर में हुए विश्व धर्म सम्मेलन का श्रीगणेश भी उन्हीं के गाये मंगलाचरण से हुआ था. संभवतः, उसी वर्ष उन्होंने लाहौर में हिंदी साहित्य सम्मेलन के बारहवें अधिवेशन में ‘वर्तमान नाटक तथा बायस्कोप कंपनियों द्वारा हिंदी प्रचार’ विषय पर अपना बहुचर्चित व्याख्यान दिया था. तब लाहौर की एक सड़क को उनके नाम पर ‘राधेश्याम कथावाचक मार्ग’ कहा जाता था.

नारायण प्रसाद ‘बेताब’ व आगाहश्र ‘कश्मीरी’ के साथ वे पारसी रंगमंच की उस त्रयी में शामिल थे, जिसने अंधविश्वासों, पाखंडों, कुरीतियों व रूढ़ियों के खिलाफ अपने श्रोताओं, पाठकों व दर्शकों का मानस बनाने में अविस्मरणीय योगदान दिया. उनके पास देशभर में दर्शकों, श्रोताओं व पाठकों का एक बड़ा वर्ग था. बरेली में जब उनके नाटक होते तो उनकी केवल ‘माउथ पब्लिसिटी’ की जाती थी और भरपूर दर्शक जुट जाते थे. उनके प्रमुख नाटकों में ‘वीर अभिमन्यु’, ‘श्रवण कुमार’, ‘परमभक्त प्रहलाद’, ‘परिवर्तन’, श्रीकृष्ण अवतार’, ‘रुक्मिणीमंगल’, ‘मशरिकी हूर’, ‘महर्षि बाल्मीकि’, ‘देवर्षि नारद’, ‘उद्धार’ और ‘आजादी’ शामिल हैं.

कहते हैं कि प्रख्यात गायक व अभिनेता मास्टर फिदा हुसैन ‘नरसी’ को नाटकों की दुनिया में वही ले आये. जानकारों के अनुसार, पंडित राधेश्याम जैसे-जैसे वार्धक्य प्राप्त करते गये, रंगमंच और नाटकों के प्रति उनका प्रेम भी बढ़ता गया. वर्ष 1931 में उन्होंने ‘शकुंतला’ फिल्म के संवाद और गीत तो लिखे ही थे, ‘श्रीसत्यनारायण’, ‘महारानी लक्ष्मीबाई’ और ‘कृष्ण सुदामा’ जैसी फिल्मों के गीत भी लिखे. वर्ष 1940 में उनकी कहानी पर फिल्म ‘ऊषा हरण’ भी बनी थी.

हिमांशु राय उन्हें ‘बाम्बे टाकीज’ से लेखक के तौर पर जोड़ना चाहते थे, मगर उन्होंने इस जुड़ाव से इनकार कर दिया था, क्योंकि फिल्मों के काम में उन्हें पारसी रंगमंच जैसा संतोष नहीं मिल रहा था. वे महामना मदनमोहन मालवीय को अपना गुरु मानते थे, तो पृथ्वीराज कपूर को अभिन्न मित्र. घनश्यामदास बिड़ला उनके भक्त थे, तो महात्मा गांधी को अफसोस था कि वे दूसरे कार्यभारों के चलते न उनकी रामकथा सुन पाये, न नाटक ही देख पाये.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन जुटाने जब मदन मोहन मालवीय बरेली आये, तो राधेश्याम ने उनको अपनी वर्षभर की कमाई दे दी थी. वर्ष 1963 के 26 अगस्त को इस संसार को अलविदा कहने से पहले उन्होंने ‘मेरा नाटककाल’ नाम से अपनी आत्मकथा भी लिखी थी, जिसे अब पारसी रंगमंच की विकास यात्रा बयान करने वाला ऐतिहासिक ग्रंथ माना जाता है.

अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग विज्ञान का असल लक्ष्य मानवता की भलाई है. विज्ञान जगत में प्रतियोगिता अवश्य होती है मगर हर अभियान से सारी दुनिया जुड़ी होती है. कामयाबी से दूसरे देशों को भी फायदा होता है. चंद्रयान-3 की कामयाबी के साथ भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में अपना नाम बुलंदी से स्थापित कर लिया है. चंद्रयान से गया विक्रम लैंडर चांद पर उतर चुका है.

उसके भीतर बैठा रोवर प्रज्ञान बाहर आ चुका है. अब ये दोनों खोजी उपकरण चांद के बारे में नयी जानकारियां जुटायेंगे. अगले 14 दिनों में वह चांद के बारे में जो भी सूचनाएं जुटायेंगे उस पर केवल भारत ही नहीं, सारी दुनिया के वैज्ञानिकों की निगाहें टिकी होंगी. चंद्रयान अभियान केवल भारत का नहीं समस्त मानवता के हित के लिए चल रहा अभियान है. वैज्ञानिक जिस भी देश के हों और अभियान जिस किसी भी देश का हो, उनकी खोज से सारी दुनिया के लोगोंं को लाभ हो सकता है.

विज्ञान की इसी शक्ति को ध्यान में रखकर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने ब्रिक्स देशों के सामने एक प्रस्ताव रखा है. दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग शहर में ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक में हिस्सा लेने गये प्रधानमंत्री मोदी ने चंद्रयान की सफलता से कुछ ही देर पहले बैठक में ब्रिक्स देशों से अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग का सुझाव रखा. प्रधानमंत्री ने कहा कि ब्रिक्स देशों को एक स्पेस एक्सप्लोरेशन कंसोर्टियम, यानी अंतरिक्ष की खोज के लिए एक साझा समूह बनाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि ब्रिक्स के सदस्य देश मिलकर विश्व-हित के लिए अंतरिक्ष की खोज तथा मौसम की निगरानी के लिए मिलकर काम कर सकते हैं. यह एक सुखद संयोग है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने यह सुझाव ऐसे दिन दिया जब भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक अमूल्य उपलब्धि हासिल की. प्रधानमंत्री का यह सुझाव बहुत ही महत्वपूर्ण है और विज्ञान की मूल भावना को दर्शाता है. विज्ञान का असल लक्ष्य मानवता की भलाई है. विज्ञान जगत में प्रतियोगिता अवश्य होती है, मगर हर अभियान से सारी दुनिया जुड़ी होती है. कामयाबी से दूसरे देशों को भी फायदा होता है.

जैसे यदि फ्लोरिडा में बैठे अमेरिकी वैज्ञानिक भूकंप के बाद सूनामी की भविष्यवाणी कर देते हैं, तो उससे हर प्रभावित देश को फायदा होता है. इसी प्रकार, भारत ने प्रक्षेपण यानों की तकनीक में जो महारत हासिल कर ली है, उसकी वजह से दूसरे देश भी अपने उपग्रहों को भेजने में भारत की मदद लेते हैं. ब्रिक्स देशों के बीच अंतरिक्ष विज्ञान में सहयोग का विचार बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि अंतरिक्ष विज्ञान की तीन बड़ी महाशक्तियां इस संगठन का हिस्सा हैं. ब्रिक्स में भारत के अलावा रूस और चीन अंतरिक्ष के क्षेत्र की बड़ी ताकतें है. इन देशों के अंतरिक्ष विज्ञान में सहयोग से अंतरिक्ष विज्ञान की अनेक गुत्थियां सुलझ सकती हैं और नये अवसरों का अंबार खड़ा हो सकता है.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें