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पंडित मदनमोहन मालवीय ने मैकाले के सिद्धांत को दी थी चुनौती, ‘सत्यमेव जयते’ को बनाया लोकप्रिय

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पंडित मदनमोहन मालवीय ने ही मैकाले के सिद्धांत को चुनौती दी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने लक्ष्य को हासिल किया था.

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Varanasi News: सर्व विद्या की राजधानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक भारतरत्न पंडित मदनमोहन मालवीय को उनकी 160वीं जयंती पर लोग नमन कर रहे हैं. आज पूरा देश भारत मां के इस महान सपूत को याद कर रहा है. मालवीय जी को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक के रूप में ही पूरी दुनिया विशेषतः याद करती है. मालवीय जी शिक्षविद के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी के रूप में भी जाने जाते हैं.

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1916 में रखी बीएचयू की नींव

शिक्षा की बगिया बीएचयू को जिस प्रकार उन्होंने सींचा है, उसका विशाल वट वृक्ष हम सभी के सामने है. पूरी दुनिया काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शैक्षणिक विस्तार से वाकिफ है. मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव 1916 में रखी. उन दिनों देश गुलामी के जंजीरों में जकड़ा था और ऊपर से चौतरफा भुखमरी का आलम होने की वजह से चारों तरफ हाहाकार मचा था. ऐसे में मालवीय जी ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर यह साबित कर दिया कि यदि इरादे नेक हो तो लाख रोड़े के बाद भी उसे पूरा होने से कोई रोक नहीं सकता.

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भिक्षा मांग कर की काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना

काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर उन्होंने भारत को एक ऐसा संस्थान दिया, जो युगों-युगों तक देश के प्रति उनके योगदान को याद दिलाता आ रहा है और आगे भी याद दिलाता रहेगा. पंडित मदनमोहन मालवीय ने भिक्षा मांग कर इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी. प्रयागराज से संकल्प लेकर निकले महामना ने देश के कोने-कोने में घूमकर भिक्षाटन कर एशिया के सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय का निर्माण करवाया था.

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25 दिसंबर 1861 को हुआ जन्म

पण्डित मदन मोहन मालवीय को मानव कल्याण और राष्ट्र निर्माता के रूप में भी याद किया जाता है. उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 25 दिसंबर, 1861 को प्रयागराज में हुआ था. अपने जीवन काल में उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक कार्य किए और देश की जीवन भर सेवा करते रहे. उन्होंने गीता और गाय पर विशेष ध्यान दिया.

चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी से बचाया

भारतरत्न पंडित मदन मोहन मालवीय ने साल 1893 में कानून की परीक्षा पास कर वकालत के क्षेत्र में कदम रखा था. उनकी सबसे बड़ी सफलता चौरी चौरा कांड के अभियुक्तों को फांसी की सजा से बचाने को माना जाता है. चौरी-चौरा कांड में 170 भारतीयों को फांसी की सजा सुनाई गई थी, लेकिन मालवीय जी के बुद्धि कौशल ने अपनी योग्यता और तर्क के बल पर 152 लोगों को फांसी की सजा से बचा लिया था.

पत्रकारिता से रहा गहरा नाता

पंडित मदनमोहन मालवीय का पत्रकारिता जगत से भी गहरा नाता रहा है. उन्होंने 1885 से लेकर 1907 के बीच तीन समाचार पत्रों का संपादन भी किया था, जिनमें हिंदुस्तान, इंडिया यूनियन और अभ्युदय शामिल था. साल 1909 में उन्होंने ‘द रीडर समाचार’ की स्थापना कर इलाहाबाद (प्रयागराज) से इसका प्रकाशन शुरू किया था.

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50 साल तक की कांग्रेस की सेवा

मालवीय जी राजनीति से भी काफी समय तक जुड़े रहे. उन्होंने कांग्रेस पार्टी में चार बार यानी 1909, 1918, 1932 और 1933 में सर्वोच्च पद पर आसीन रहे. बताते चलें कि 1886 में कोलकाता में हुए कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन में मदन मोहन मालवीय ने ऐसा प्रेरक भाषण दिया कि वो सियासी मंच पर छा गए. उन्होंने लगभग 50 साल तक कांग्रेस की सेवा की.

1937 में सियासत को कहा अलविदा

पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1937 में सक्रिय सियासत को अलविदा कहने के बाद अपना पूरा ध्यान सामाजिक मुद्दे पर केंद्रित किया, जिसके फलस्वरूप काशी हिंदू विश्वविद्यालय सभी के सामने है. वर्तमान में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में 16 संस्थान,14 संकाय और 140 विभागों के साथ ही चार अंतर अनुवांशिक केंद्र हैं. महिलाओं के लिए महाविद्यालय के अलावा 13 विद्यालय, चार संबंधित डिग्री कॉलेज, विश्वविद्यालय में 40000 छात्र-छात्रा और 3000 शिक्षक हैं,

मैकाले के सिद्धांत को दी चुनौती

पंडित मदन मोहन मालवीय ने ही मैकाले के सिद्धांत को चुनौती दी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना कर अपने लक्ष्य को हासिल किया था. भारत के राष्ट्रीय आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ (सच की जीत होती है) को लोकप्रिय बनाने का श्रेय उनको ही जाता है.

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पंडित मदनमोहन मालवीय ने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन और बाल विवाह का विरोध करने के साथ ही महिलाओं की शिक्षा के लिए काम किया. उनका 1946 में निधन हो गया. 24 दिसंबर, 2014 को उनकी 153वीं जयंती से एक दिन पहले उनको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया.

रिपोर्ट- विपिन सिंह, वाराणसी

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