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पदमश्री मुकुंद नायक ने देव कुमार की ‘मैं हूं झारखंड’ को किया लॉन्च

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बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश के लेखक देव कुमार की इस नई कृति 'मैं हूं झारखंड' की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध लेखक और प्रभात खबर के वरीय संवाददाता दीपक जायसवाल ने लिखी है. प्रस्तावना में उन्होंने उल्लेख किया है कि झारखंड अनंत खूबियों से भरा एक खूबसूरत राज्य है.

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रांची : पदमश्री मुकुंद नायक ने बरसों की मेहनत के बाद देव कुमार द्वारा रचित ‘मैं हूं झारखंड’ नामक पुस्तक का लोकार्पण किया. कुंजवन नामक संस्था के कार्यालय में देव कुमार की इस नई कृति को जनता को समर्पित करते हुए पद्मश्री मुकुंद नायक ने कहा कि झारखंड की संपूर्ण जानकारी से भरी यह पुस्तक निश्चय ही पठनीय है. देव कुमार का यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है. इस अवसर पर खोरठा के साहित्यकार और सहायक प्राध्यापक दिनेश दिनमणि विशेष रूप से उपस्थित हुए. इसके अलावा, कार्यक्रम में पद्मश्री मुकुंद नायक की पत्नी पारंपरिक कलाकार द्रौपदी देवी एवं शोध विद्वान अभिषेक कुमार,पप्पू कुमार महतो भी उपस्थित रहे.

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बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश के लेखक देव कुमार की इस नई कृति ‘मैं हूं झारखंड’ की प्रस्तावना सुप्रसिद्ध लेखक और प्रभात खबर के वरीय संवाददाता दीपक जायसवाल ने लिखी है. प्रस्तावना में उन्होंने उल्लेख किया है कि झारखंड अनंत खूबियों से भरा एक खूबसूरत राज्य है. अकूत खनिज संपदाओं ने इसका महत्व और भी अधिक बढ़ा रखा है. कोयला, अभ्रक, लोहा, तांबा, चीनी मिट्टी, फायर क्ले, कायनाइट, ग्रेफाइट, बॉक्साइट तथा चुना पत्थर के उत्पादन में अपना झारखंड अनेक राज्यों से आगे है. एस्बेस्टस, क्वार्ट्ज और आण्विक खनिज के उत्पादन में भी झारखंड का महत्वपूर्ण स्थान है.

इसके अलावा, अनेक बड़े-बड़े कारखानों व अन्य बड़ी परियोजनाओं ने भी दुनिया भर में इस राज्य का ध्यान खींच रखा है, लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि इतना परिपूर्ण होने के बावजूद इस राज्य का अपेक्षित विकास थमा हुआ था. यूं कहें कि अविभाजित बिहार के इस हिस्से को विकास की पटरी नहीं मिल पा रही थी.। गांवों की दशा आजादी के दशकों बाद भी जस की तस थी.

झारखंड के आदिवासी और मूलवासी शोषण, उत्पीड़न और उपेक्षा के भंवर से निकल नहीं पा रहे थे. प्रतिभाओं को भी उभरने-निखरने का पर्याप्त अवसर नहीं मिल पा रहा था. कुल मिलाकर कहें, तो लोग हताश-निराश थे।. झारखंड को उसी अंधेरे से बाहर निकालने के लिए ही अलग राज्य के निर्माण की मांग दशकों पहले उठी थी और समय-समय पर यह मांग जोर पकड़ती रही. अनेक संघर्षों और कुर्बानियों के बाद अंततः अबुआ दिशुम का सपना 15 नवंबर 2000 को पूरा हुआ. देश के मानचित्र पर एक सितारे की तरह अपना झारखंड चमक उठा. इसे दुनियाभर में संभावनाओं से परिपूर्ण राज्य के रूप में देखा जाने लगा. संभावनाएं हर तरह की थी.

प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण

आज अलग राज्य बने करीब 22 वर्ष हो चुके हैं. इस अवधि में यह राज्य विकास के मापदंड पर कहां तक पहुंच पाया, यह तो चर्चा का अलग विषय है, लेकिन झारखंड को जानने समझने की लालसा लोगों में पहले भी थी और अलग राज्य के निर्माण के बाद तो और भी बढ़ी है. झारखंड का ऐसा कोई कोना नहीं, जहां कोई ना कोई विशेषता ना हो. इसके चप्पे-चप्पे में खूबियां भरी पड़ी है. यही वजह है कि झारखंड निर्माण के साथ ही इस राज्य को केंद्रित कर पुस्तक लिखने का सिलसिला भी शुरू हुआ. यह जरूरी भी था. खासकर प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए विद्यार्थियों को झारखंड को सम्यक रूप से जानने-समझने की जरूरत अधिक थी और आज भी बनी हुई है.

कई मायनों में है खास

वैसे तो पिछले दो दशक में झारखंड पर केंद्रित कई पुस्तकें प्रकाशित हुई है, लेकिन देव कुमार की ‘मैं हूं झारखंड’ उन सभी से बिल्कुल अलग और कई मायनों में बहुत खास है. वह इसलिए कि देव कुमार ने इस पुस्तक में अनेक अनछुए पहलुओं को भी दर्शाने का सफल प्रयास किया है, जो अब-तक अन्य लेखकों अथवा संग्रहकर्ताओं से अछूता था. देव कुमार की यह दूसरी रचना है. इससे पहले इन्होंने ‘बिरहोर- हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश’ तैयार कर अपनी काबिलियत साबित की है. इस पुस्तक को काफी सराहना मिल चुकी है. संभवतः इसकी सफलता ने ही इन्हें ‘मैं हूं झारखंड’ लिखने को प्रोत्साहित किया. यह काफी कठिन कार्य था.

देव कुमार ने चुनौती स्वीकारा

पहले से जब बाजार में झारखंड पर केंद्रित अनेक पुस्तकें मौजूद थी, वैसे में इन्हें कुछ अलग और कुछ बेहतर करना था. देव कुमार ने उस चुनौती को न केवल स्वीकारा, बल्कि बाकि पुस्तकों से कुछ अलग कर दिखाने में सफलता भी पाई है. इसमें इनकी मेहनत और लगन साफ तौर पर देखी जा सकती है. इस पुस्तक में कुल 43 अध्याय हैं और सभी के सभी काफी उपयोगी बन गए हैं. हर अध्याय में उपयोगी और अनेक नई जानकारियों को रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है. उम्मीद है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों से लेकर झारखंड को जानने-समझने की जिज्ञासा रखने वाले तमाम लोगों के लिए यह पुस्तक काफी उपयोगी साबित होगी.

खोरठा साहित्यकार ने दी शुभकामनाएं

चर्चित खोरठा साहित्यकार दिनेश कुमार दिनमणि ने शुभकामना देते हुए कहा कि देव कुमार अब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं. बिरहोरी भाषा का अनूठा शब्दकोश बनाकर आप झारखंड ही नहीं,देश-विदेश में चर्चित हो चुके हैं. अनूठे सोच के धनी,ऊर्जावान युवा, अन्वेषण प्रिय देव कुमार जी पुनः शिक्षित समाज के बीच अपनी नई कृति ‘मैं हू्ं झारखंड’ के साथ उपस्थित हैं, जो आपके हाथ में है. झारखंड पर इनकी यह विलक्षण पुस्तक है. मुझे इस पुस्तक की मुद्रण के लिए तैयार सामग्री को देखने का अवसर मिला, तो मैं देव जी के काम की सराहना किये बिना रह न सका. प्रथम दृष्टया ही मुझे इसकी विलक्षणता ने प्रभावित किया. मुझे यह लंबे समय तक पूरी सजगता के साथ एकनिष्ठ भाव से किये गए कठिन परिश्रम का ठोस परिणाम प्रतीत हुई. इस पुस्तक पर कुछ लिखने का अवसर पाकर मैं भी गौरव का अनुभव कर रहा हूं.

झारखंडी भूगोल से परिपूर्ण

उन्होंने ‘मैं हूं झारखंड’ मेरी जानकारी में झारखंड पर बनाई गई अबतक की पुस्तकों से कई मायनों में अलग और खास है. इसमें झारखंड का भौगोलिक वैशिष्ट्य, उसका तथ्यपरक विश्लेषण, प्राकृतिक परिदृश्य का वस्तुपरक परिचय, खनिज-वन संपदा, इतिहास, पुरातात्विक अवशेषों की प्राप्तियाँ,स्वतंत्रता आंदोलनों का इतिहास, सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत, शासन-प्रशासन,प्राकृतिक व मानव संसाधन, खान-खनिज, उद्योग-धंधे, कृषि, रोजगार, शिक्षा, शैक्षिक केंद्र, भाषा-साहित्य,कला-संस्कृति, गीत-संगीत, खेल-कूद, व्यक्तित्व आदि-इत्यादि. झारखंड के संदर्भ पर शायद ही कोई विषय-क्षेत्र है, जो इसमें न हो. सबसे बड़ी बात है कि हर विषय-क्षेत्र की सूचनाओं को सतही नहीं, अपितु तथ्यों की गहराई और अंतिम स्तर तक जाकर पूरी प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत किया गया है, जिसमें संतुलन है और सबके साथ न्याय हुआ है.

झारखंड विषय पर एक वृहतकोश

वस्तुतः यह पुस्तक झारखंड विषय पर एक वृहतकोश है, समग्रता के साथ झारखंड का विहंगावलोकन है. मुझे विश्वास है, निरंतर कठिन परिश्रम से तैयार यह पुस्तक कई दृष्टिकोण से उपयोगी साबित होगी. मैं देव कुमार जी की इस नई कृति के लिए साधुवाद और बधाई देता हूं. इस पुस्तक की सफलता की मधुर कामना करता हूं. आपकी रचनात्मक क्रियाशीलता को निरंतरता और ऊंचाई मिलती रहे. डॉ नेत्रा पी पौडयाल, शोध विद्वान, कील विश्वविद्यालय, जर्मनी ने पुस्तक समीक्षोपरांत लिखा है कि मैं हूं झारखंड पुस्तक में झारखंड के इतिहास, भूगोल, अर्थव्यवस्था, संवैधानिक प्रावधानों, सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था, शिक्षा, कला-संस्कृति, खेलकूद, पर्यावरण सुरक्षा आदि से संबंधित हर सामान्य से लेकर विशिष्ट तथ्यों एवं जानकारियों को संकलित की गई है.

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बेहद लाभदायक

मुझे बेहद खुशी है कि देव कुमार जी ने सरल तरीके से जटिल जानकारियों का प्रस्तुतिकरण इस पुस्तक में किया है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस तरह का कार्य झारखंड एवं इसके पहलुओं को पढने वाले पाठकों के लिए अत्यंत ही लाभदायक सिद्ध होगी. देव कुमार ने कुछ ही वर्ष पहले अनोखा त्रिभाषी शब्दकोश का रचना कर हम सभी को आश्चर्यचकित किया था. अब वह अपनी नई कृति मैं हूं झारखंड की ओर से झारखंड राज्य की संपूर्ण जानकारी के साथ प्रस्तुत हैं. मैं इस पुस्तक को तैयार करने में उनके लगन एवं परिश्रम से आश्चर्यचकित हूं. मुझे पूर्ण विश्वास है कि एक ही बार में झारखंड को समझने हेतु यह पुस्तक बेहद लाभदायक सिद्ध होगी.

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