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ओडिशा हाईकोर्ट का सरकार को निर्देश – डॉक्टरों से कहें साफ-साफ लिखें, कैपिटल लेटर में लिखें

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ओडिशा हाईकोर्ट ने चार जनवरी को यह आदश जारी किया था. यह निर्देश तब आया, जब जस्टिस एसके पाणिग्रही को एक मामले में फैसला देने में मुश्किल हुई, क्योंकि याचिका में संलग्न पोस्टमार्टम रिपोर्ट को वह ठीक से पढ़ और समझ नहीं पा रहे थे.

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ओडशा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक आदेश जारी किया है, जिसमें डॉक्टरों से सभी नुस्खे और मेडिको-लीगल रिपोर्ट को साफ-साफ लिखने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा है मुख्य सचिव एक आदेश जारी करके डॉक्टरों को निर्देश दें कि वे साफ-साफ लिखें. संभव हो, तो पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बड़े अक्षरों (कैपिटल लेटर) में लिखें या टाइप करके दें, ताकि अदालत को उसे सझने में आसानी हो. ऐसा होगा, तो कोर्ट को इन दस्तावेजों को पढ़ने में ‘अनावश्यक थकावट’ का सामना नहीं करना होगा. ओडिशा हाईकोर्ट ने चार जनवरी को यह आदश जारी किया था. यह निर्देश तब आया, जब जस्टिस एसके पाणिग्रही को एक मामले में फैसला देने में मुश्किल हुई, क्योंकि याचिका में संलग्न पोस्टमार्टम रिपोर्ट को वह ठीक से पढ़ और समझ नहीं पा रहे थे. इसकी वजह से पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टर को समन करना पड़ा. दरअसल, एक याचिकाकर्ता ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि सरकार को अनुग्रह राशि के लिए उसके ज्ञापन पर विचार करने का निर्देश दिया जाए, क्योंकि उसके बड़े बेटे की सर्पदंश से मौत हो गई थी. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि तहसीलदार ने मुआवजा संबंधी उसके आवेदन को खारिज कर दिया था.

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पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने में हो रही थी दिक्कत

जस्टिस एसके पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा कि बहुत से मामलों में देखा जाता है कि डॉक्टर पोस्टमार्टम रिपोर्ट लिखने में कैजुअल अप्रोच अपनाते हैं. न्यायपालिका को इसे पढ़ने और समझने में दिक्कत होती है. इसकी वजह से कई बार ठोस नतीजे पर पहुंचना मुश्किल हो जाता है. इसलिए ओडिशा के मुख्य सचिव को निर्देश दिया जाता है कि वे सभी मेडिकल केंद्रों के लिए एक आदेश जारी करें, जिसमें उनसे कहें कि ऐसी रिपोर्ट तैयार करते समय बड़े-बड़े अक्षरों में लिखें. संभव हो, तो उसे कैपिटल लेटर में लिखें. इसे टाइप करके दिया जाए, तो बेहतर होगा.

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डॉक्टर की पेशी के बाद जज ने सुनाया फैसला

बता दें कि कोर्ट के आदेश पर डॉक्टर अदालत में हाजिर हुए. उनकी पेशी के बाद जस्टिस पाणिग्रही ने याचिकाकर्ता को एक महीने के भीतर फिर से तहसीलदार के यहां आवेदन करने का निर्देश दिया. साथ ही न्यायाधीश ने संबंधित प्राधिकार को भी निर्देशित किया कि उसके आवेदन को स्वीकार किया जाए और उस पर विधिसम्मत कार्रवाई की जाए.

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