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झूठ से भरी है ओबामा की टिप्पणी

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अमेरिका के सबसे बड़े थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत के मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के बारे में अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि भारत के 98 फीसदी मुसलमान मानते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होता. यानी, अमेरिका की अपनी ही एजेंसी ओबामा की बातों से अलग रिपोर्ट करती है मगर उसकी चर्चा नहीं होती.

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बराक ओबामा अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने बतौर राष्ट्रपति दो बार भारत की यात्रा की. वह भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति भी थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली अमेरिका यात्रा के समय भी वही राष्ट्रपति थे. ऐसे में ओबामा ने जब भारत के अल्पसंख्यकों के बारे में टिप्पणी की है, तो उन्हें अच्छी तरह से पता है कि क्या सच है और क्या झूठ. दरअसल, अमेरिका में बहुत पहले से मानवाधिकार, अल्पसंख्यक अधिकार जैसे मुद्दों को लेकर दूसरे देशों को नीचा दिखाने वाला एक कूटनीतिक टूलकिट सक्रिय रहा है. हालांकि, वे अपने देश के बारे में नहीं बोलना चाहते जहां लोकतंत्र, धर्म और नस्ल को लेकर काफी भेदभाव होता है. मगर वे दूसरे देशों के बारे में टिप्पणियां करते रहते हैं.

दरअसल, भारत का विरोध करने वाले पाकिस्तान, चीन तथा तुर्की जैसे देशों के हितों के लिए काम करने वाले समूहों को भारत के बारे में ऐसी बातों को उछालना अच्छा लगता है. अमेरिका में राजनीति प्रेशर ग्रुप्स या दबाव समूहों पर निर्भर करती है. वहां कई तरह के समूह काम करते हैं, जिनमें से किसी को पाकिस्तान से फंड मिलता है तो किसी को चीन से या किसी को किसी और से. उनकी अपनी प्रचार एजेंसियां होती हैं. ऐसे में, जब भारत या दूसरे देशों के नेता यूरोप या पश्चिमी देशों के दौरे करते हैं तो वह कोई-न-कोई मुद्दा खोज लेते हैं. अगर कोई मुद्दा नहीं हो, तो वे कोई मुद्दा गढ़ लेते हैं. उनका पूर्णकालिक काम ही ऐसी चर्चाओं को छेड़ने की कोशिश करते रहना होता है. ये उनकी एक रणनीति होती है कि वे पहले ही से दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. अधिकतर देश घबरा जाते हैं मगर, भारत दूसरे देशों जैसा नहीं है.

अमेरिका की मौजूदा बाइडेन सरकार भारत के साथ रिश्ते और अच्छे बनाना चाहती है. वह भारत को एक वैश्विक रणनीति में साझीदार बनाना चाहती है. वे इस बात को समझते हैं कि भारत में किसी के भी साथ कोई भेदभाव नहीं होता है. प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन में और मीडिया के साथ संवाद करते हुए भी पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया कि सरकार की ओर से कोई भेदभाव नहीं किया जाता. और हमने देखा कि अमेरिका में प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को लेकर अमेरिका के दोनों ही दलों – डेमोक्रेट और रिपब्लिकन – ने समर्थन दिया. यानी, अमेरिका के भीतर, और बाकी दुनिया भी जानती है कि प्रधानमंत्री मोदी ने क्या किया है, और भारत की सोच क्या है.

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अमेरिका के सबसे बड़े थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर ने भारत के मुसलमानों और अल्पसंख्यकों के बारे में अपनी एक रिपोर्ट में बताया, कि भारत के 98 फीसदी मुसलमान मानते हैं कि उनके साथ कोई भेदभाव नहीं होता. यानी, अमेरिका की अपनी ही एजेंसी ओबामा की बातों से अलग रिपोर्ट करती है, मगर उसकी चर्चा नहीं होती क्योंकि उससे उनका मकसद पूरा नहीं होता. भारत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर, भारत के बारे में किसी को भी टिप्पणी करते समय तथ्यों को अच्छी तरह से जांच लेना चाहिए. हालांकि, यह भी संभव है कि अमेरिका में अंदरूनी तौर पर कोई सहमति हो गयी हो कि मौजूदा राष्ट्रपति की जगह, कोई पूर्व राष्ट्रपति ऐसी कोई बात कह दे जिससे कि इस बारे में बहस छिड़ जाए.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने पीएम मोदी के साथ मुलाकात में आंतरिक तौर पर भारत के अल्पसंख्यकों के बारे में चर्चा भी की हो. बाइडेन ने संवाददाता सम्मेलन में कहा भी कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ मुलाकात में लोकतांत्रिक मूल्यों के बारे में अच्छी चर्चा हुई. असल में, शीर्ष नेताओं की बातचीत में इस तरह की चर्चा एक औपचारिक प्रक्रिया का हिस्सा होती है. मगर उसे खुलकर प्रकट करना अलग बात है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि सरकारें दोहरी रणनीति अपनाती हैं, जिसमें सरकार किसी और माध्यम से अपनी बात भी कहलवा लेती है, और द्विपक्षीय स्तर पर मुलाकात से अपने उद्देश्य भी पूरे कर लेती है. यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि ओबामा के संबंध प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी बहुत अच्छे हैं.

कुल मिलाकर, भारत को इन घटनाओं को लेकर परेशान नहीं होना चाहिए. जब भी ऐसे प्रयास हों तो भारत को उन्हें आईना दिखाकर बताना चाहिए कि उनके अपने देश की सच्चाई क्या है. भारत में मुसलमान हों या कोई भी अल्पसंख्यक, उन्हें बराबरी के अधिकार हैं. सामाजिक स्तर पर थोड़ी बहुत समस्याएं हो सकती हैं, मगर सरकारी योजनाओं में उन्हें भी पूरा हिस्सा मिलता है और कोई भेदभाव नहीं किया जाता. और ये बात भारत को बताते रहना चाहिए. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ओबामा की टिप्पणी का यह जवाब देकर बिलकुल सही किया, कि अमेेरिका और उनके सहयोगियों ने ओबामा के ही कार्यकाल में छह मुस्लिम-बहुल देशों पर बम बरसाए. उन्होंने ये भी गिनाया कि ओबामा के समय हुए हमलों से कहां और कितने लोगों की मौत हुई. तो एक तरफ ओबामा भारत पर टिप्पणी कर मुसलमानों का पक्ष लेते हुए दिखना चाहते हैं और दूसरी तरफ उन्होंने ही मुस्लिम देशों का ये हाल कर दिया.

अमेरिका में 11 सितंबर के हमलों के बाद जो आतंक विरोधी कानून बनाये गये, उनका सबसे ज्यादा इस्तेमाल मुसलमानों के ही विरुद्ध हुआ. तो भारत की प्रतिक्रिया बिलकुल जायज है. मगर, इसका मतलब ये कतई नहीं है कि भारत के साथ समस्या नहीं है. लेकिन दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं होता जहां कोई समस्या नहीं हो. चाहे लोकतंत्र हो या शासन की कोई और व्यवस्था, उन सबमें कोई ना कोई कमी होती है. अब भारत दुनिया में मुस्लिम आबादी वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. दुनिया में कौन सा ऐसा देश है, जहां दिग्गज कलाकार मुस्लिम समुदाय से हैं, जहां दो-दो मुस्लिम राष्ट्रपति हुए, एक उपराष्ट्रपति हुआ, मुख्य न्यायाधीश हुआ, सेना, खुफिया संगठनों के प्रमुख हुए. दुनिया में कौन सा ऐसा देश है जहां अल्पसंख्यक इतने शीर्ष पदों तक पहुंचते हैं. ऐसे में यदि कोई भेदभाव को लेकर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसका जवाब देने के लिए संवाद की एक रणनीति बनायी जानी चाहिए. उसके जरिए सच बताया जाना चाहिए और प्यू रिसर्च सेंटर के शोध जैसे तथ्यों का उल्लेख करना चाहिए जिसमें भारत के 98 फीसदी मुसलमानों ने बताया कि उनके साथ भेदभाव नहीं हो रहा है. ऐसे में कोई नयी बात कहां से खड़ी हो सकती है.

(बातचीत पर आधारित)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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