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नयी किताब : जेएनयू की कथाएं

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जेएनयू को चाहने और नफरत करने वाले दो समूहों में बंट गया है. यह किताब इनके बीच एक संवाद के अवसर की तलाश है. यह मुख्य रूप से वैचारिक इंद्रधनुष का महत्व, राजनीति करना और राजनीतिक रूप से जागरूक होने के बीच फर्क को रेखांकित करती है

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पिछले कुछ वर्षों में समाज जेएनयू को चाहने और नफरत करने वाले दो समूहों में बंट गया है. यह किताब इनके बीच एक संवाद के अवसर की तलाश है. यह मुख्य रूप से वैचारिक इंद्रधनुष का महत्व, राजनीति करना और राजनीतिक रूप से जागरूक होने के बीच फर्क को रेखांकित करती है. छोटे छोटे अध्यायों, जैसे कक्षाएं, चुनाव, नदियां और हॉस्टल, कैम्पस के कुत्ते, भूख, मेस और पैसे आदि के माध्यम से यहां के इतिहास, भूगोल और राजनीति के माहौल का परिचय मिलता है. किताब में कविताओं और कुछ मजेदार घटनाओं का मी (कलाकार) के स्केच द्वारा सजीव चित्रण का प्रयोग इसे अधिक रोचक बनाता है.

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लेखक सधे शब्दों में जीवन का फलसफा साझा करते हैं. इनमें से कुछ साझा करना चाहूंगी- किताब पढ़ लेने से दृष्टि नहीं मिल जाती है, सवाल करना सीखें, बहस करना जानें, असहमति को स्वीकार करने की क्षमता विकसित करें, आपका अलग पढ़ना आपको लोगों से अलग बनाता है, आलोचना से नया विचार पैदा होगा, क्रांति नहीं होगी इत्यादि. पर्चों के माध्यम से फूको, देरिदा, नीत्शे जैसे विचारकों से हुए परिचय ने न सिर्फ लेखक को वैचारिक समृद्धि दी, बल्कि अन्य विषयों को पढ़ने का मौका भी दिया. लेखक की दोस्तियां और अलग अलग व्यक्तित्व वाले प्रोफेसरों से पढ़ने और करीब से उनके जीवन को जानने समझने का अनुभव निश्चय ही पाठकों को रुचिकर जान पड़ेंगी.

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लेखक दो बातों को खासा महत्व देते हैं- इंसान बनने की प्रक्रिया का सतत चलना और मानव जीवन का मनन, पाठन एवं परिवेश से प्रभावित होना. प्रकृति, प्रेम एवं स्वछंदता जेएनयू को एक विश्वविद्यालय के रूप में खास पहचान देती है. सुशील की नजरों से देखने में इसका नारीवादी पक्ष बहुत कम सामने आ पाता है. इसी तरह कई जगह किताब केवल इसके सकारात्मक पक्ष पर अधिक जोर देती जान पड़ी. हालांकि यह किताब जितना उनके निजी अनुभव का वर्णन है, कमोबेश उतना ही शोध आधारित तथ्यों और घटनाओं को सामने लाने का प्रयास भी. इस किताब को पढ़ने के बहाने पाठकों को इस संस्था को नजदीक से महसूस करने का एक अच्छा मौका मिलता है. ऐसी किताबें पढ़ना निश्चय ही हमें जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टि देती हैं.

जेएनयू अनंत जेएनयू कथा अनंता / जे सुशील / प्रतिबिम्ब

– डॉ रुचि श्री

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