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National Engineers day: आईआईटी धनबाद के इन इंजीनियर्स पर दुनिया करती है नाज, जानें कैसे

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15 सितंबर को प्रतिवर्ष नेशनल इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन अपने देश के महान अभियंता और भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती मनायी जाती है. यह दिवस धनबाद में स्थित आइआइटी आइएसएम के लिए भी खास है. संस्थान ने एक से बढ़कर एक इंजीनियर्स निकले हैं. जिनपर पूरा देश नाज करता है.

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अशोक कुमार, धनबाद

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National Engineers day : 15 सितंबर को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय अभियंता दिवस (इंजीनियर्स डे) के रूप में मनाया जाता है. इसी दिन अपने देश के महान अभियंता और भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जयंती मनायी जाती है. विश्वेश्वरैया अपने देश के महान इंजीनियर्स थे. यह दिवस धनबाद में स्थित आइआइटी आइएसएम के लिए भी खास है. क्योंकि संस्थान के 96 वर्षों के इतिहास में यहां से एक से बढ़कर एक इंजीनियर्स निकले हैं. जिनपर पूरा देश नाज करता है. संस्थान से निकले यह ग्रेजुएट्स आज न सिर्फ इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उच्च मापदंड को स्थापित किया है, बल्कि समाज को भी उनका लाभ मिल रहा है. संस्थान से निकले ऐसे ही कुछ चुनिंदा ग्रेजुएट पर आधारित प्रभात खबर की यह विशेष रिपोर्ट.

विश्व के बड़े भूकंप वैज्ञानिकों में शुमार किये जाते हैं हर्ष कुमार गुप्ता

देश के जाने माने भूकंप वैज्ञानिक हर्ष कुमार गुप्ता आइआइटी आइएसएम के 1963 के अप्लाइड जियोफिजिक्स में ग्रेजुएट हैं. उन्होंने बड़े जलाशयों के कारण आने वाले भूकंप का अध्ययन किया था. उन्हें इस शोध के लिए देश का सबसे बड़ा वैज्ञानिक सम्मान, शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से 1983 में सम्मानित किया गया. 2006 में उन्हें देश के चौथे नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. वह कोचीन स्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीयूएसएटी) के कुलपति और राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआइ), हैदराबाद में राजा रमन्ना फेलो रह चुके हैं. वर्ष 2008 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा वाल्डो ई स्मिथ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वह वर्ष 2005 तक भारत सरकार के महासागर विकास विभाग में सचिव रहे थे. यही से वह सेवानिवृत्त हुए थे.

अपने कौशल से जसवंत सिंह गिल ने अकेले बचायी थी 65 खनिकों की जान

आइएसएम से 1965 के माइनिंग इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट जसवंत सिंह गिल संस्थान के सर्वकालिक महान पूर्ववर्ती छात्रों में गिने जाते हैं. 1989 में रानीगंज कोलफिल्ड अंतर्गत इसीएल के महावीर भूमिगत खदान में पूरी दुनिया में पहली बार स्टील के कैप्सूल से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया था. इसमें उन्होंने धरती के सतह से 200 मीटर नीचे भूमिगत खदान में 65 श्रमिकों को बचाया था. उस समय वह इस कोलियरी के चीफ माइनिंग मैनेजर थे. उनके इस कारनामे के कारण भारत सरकार ने उद्योग क्षेत्र में बचाव कार्य में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले अधिकारी व कर्मचारी को जसवंत सिंह गिल सेफ्टी अवॉर्ड प्रदान करता है. उनका यह ऑपरेशन विश्व खनन के इतिहास में अद्वितीय है. उनके इसी ऑपरेशन के आधार पर ही 2013 में चिली में 33 खनिकों को बचाया गया.

अमेरिका के पेट्रोलियम उद्योग के बड़े चेहरों में शामिल हैं नरेश वशिष्ठ

आइएसएम से 1967 से पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट नरेश वशिष्ठ को आज पूरी दुनिया पहचानती है. वह अमेरिका में पेट्रोलियम सेक्टर का बड़ा चेहरा है. 1987 से पहले उन्होंने अपनी उद्यमशीलता की यात्रा शुरू की थी. इससे पहले कई तेल और प्राकृतिक गैस की बहुराष्ट्रीय कंपनियों में नौकरी के जरिए अनुभव हासिल किया था. इसी अनुभव के आधार पर उतार-चढ़ावों से गुजरते हुए, वह सफलता के शिखर पर पहुंचे हैं. वर्तमान में ओमिमेक्स रिसोर्सेज इनकॉर्पोरेशन के संस्थापक और सीइओ हैं. नरेश वशिष्ठ समाज को वापस देने में दृढ़ विश्वास रखते हैं. उनके द्वारा स्थापित ट्रस्ट और फाउंडेशन आज दुनिया भर में काम कर रहे हैं. उनके फाउंडेशन ने आइआइटी आइएसएम नरेश वशिष्ठ सेंटर ऑफ टिंकरिंग एंड इनोवेशन की स्थापना की है. यह सेंटर संस्थान के साथ पूरे झारखंड के छात्र व युवाओं में इनोवेशन को बढ़ावा दे रहा है.

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