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Main Atal Hoon Review: अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देती इस बायोपिक फिल्म में शानदार हैं पंकज त्रिपाठी

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पंकज त्रिपाठी ने अपने अभिनय से अटल बिहारी वाजपेयी को पर्दे पर जीवंत कर दिया है. शानदार संवाद उनके अभिनय को और मजबूती देते हैं, लेकिन लगभग ढाई घंटे की इस फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी की लंबी और बड़ी जिंदगी की कहानी से सबकुछ समेटने की कोशिश की गयी है.

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फिल्म – मैं अटल हूं

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निर्माता- विनोद भानुशाली

निर्देशक- रवि जाधव

कलाकार- पंकज त्रिपाठी,पीयूष मिश्रा,पायल नायर,राजा रमेश,एकता कौल,सचिन पारिख और अन्य

प्लेटफार्म- सिनेमाघर

रेटिंग- तीन

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी एक नाम नहीं बल्कि एक पहचान है, जो प्रखर वक्ता, महान कवि और अच्छे राजनेता थे. उनके बारे यह बात लोकप्रिय रही है कि विरोधी पार्टियों के भी वह प्रिय थे. देश के सफल प्रधानमंत्रियों में से एक रहे अटल बिहारी वाजपेयी के जीवनकाल को बायोपिक फिल्म मैं अटल हूं के रूप में राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त निर्देशक रवि जाधव रुपहले पर्दे पर लेकर आये हैं और राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने इस बायोपिक फिल्म में अपने अभिनय से अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका को निभा रहे हैं. पंकज त्रिपाठी ने अपने अभिनय से अटल बिहारी वाजपेयी को पर्दे पर जीवंत कर दिया है. शानदार संवाद उनके अभिनय को और मजबूती देते हैं, लेकिन लगभग ढाई घंटे की इस फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी की लंबी और बड़ी ज़िंदगी की कहानी से सबकुछ समेटने की कोशिश की गयी है. लगा था कि उनके अटला से अटल बनने की बड़ी घटनाओं के साथ थोड़ा समय बितायेगी, लेकिन घटनायें आती जाती रहती हैं. जिस वजह कहानी प्रभावी ढंग से सामने नहीं आ पायी है,लेकिन यह फिल्म देखी जानी चाहिए.

बचपन से कारगिल विजय तक की है कहानी

फिल्म अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म से लेकर कारगिल युद्ध के विजय तक की कहानी दिखाती है. घर में उन्हें प्यार से अटला बुलाया जाता था. अटल से प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बनने की जर्नी को पर्दे पर लाया गया है. कवि, पत्रकार, वक्ता, स्वयंसेवक संघ के सदस्य से राजनीति में प्रवेश, जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी का गठन और फिर प्रधानमंत्री बनने के सफर और उससे जुड़े जद्दोजहद के सफर को दर्शाया गया है. वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था. उनके कार्यकाल में पाकिस्तान से संबंधों में सुधार के लिए पहल भी की गई. भारत ने कारगिल के युद्ध में फतह भी की. उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान इन घटनाओं को भी प्रमुखता से दिखाया गया है. इसके अलावा वाजपेयी सरकार के दौरान स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना, टेलीकाम नीति भी लागू की गई. फिल्म इन पहलू का भी ज़िक्र करती है. इन सबके अलावा आज़ादी, संघ के प्रमुखों की संदेहास्पद मौत, चीन से हार, इमरजेंसी इन मुद्दों को भी फिल्म की कहानी में शामिल किया गया है.

फिल्म की खूबियां और खामियां

अटल बिहारी वाजपेयी का यह जन्मशताब्दी साल है. यह बायोपिक उनकी कहानी को सामने लेकर आती है. यह कहानी सभी को जाननी चाहिए. मौजूदा दौर में जहां हर राजनेता दूसरे राजनेता की तस्वीर को धूमिल कर रहा है. वहीं अटल बिहारी वाजपेयी ने नेहरू की तस्वीर को ना सिर्फ फिर से लगाने को कहा था बल्कि अपने साथियों से कहा था कि आते हुए प्रणाम करके आइये क्योंकि वे देश के पहले प्रधानमंत्री थे. यह दृश्य बताता है कि हर राजनेता को पहले इस तरह का इंसान होना चाहिए. फिल्म उनकी प्रेम कहानी को भी बहुत खूबसूरती और गरिमा के साथ सामने लाती है. उस पर एक अलग से फिल्म बन सकती है. यह कहना ग़लत नहीं होगा.

फिल्म में क्या है खामियां

फिल्म की खामियों की बात करें तो पहले भाग में कहानी डाक्यूमेंट्री ड्रामा का एहसास करवाती है. दूसरे भाग में कहानी रफ्तार पकड़ती है. बायोपिक में जिस व्यक्ति पर फिल्म है. उसके व्यक्तित्व को किस तरह से अलग-अलग घटनाक्रम ने गढ़ा है. यह बात सामने आनी चाहिए, लेकिन यह फिल्म सभी घटनाक्रमों को दिखाने में ही उलझी रहती है. कुछ दृश्य प्रभावी बनें हैं जैसे इमरजेंसी के बाद का भाषण वाला दृश्य, एक वोट से हार जाने वाला सीन लेकिन ज़्यादातर दृश्य बस आते जाते है. वह ठहर कर कहानी और किरदारों में वह इमोशन ठहराव नहीं दे पाये हैं, जो आपको याद रह जाये. फिल्म की कहानी और स्क्रीनप्ले कई जवाब भी अधूरे रह गये हैं. अटल बिहारी वाजपेयी के परिवार का क्या हुआ. उसका ज़िक्र तक नहीं हुआ है. अटल और आडवाणी की दोस्ती भी फिल्म में प्रभावी ढंग से नहीं आ पायी है. फिल्म में राम मंदिर पर ज़्यादा फ़ोकस हुआ है शायद राजनीति प्रतिबद्धता होगी आख़िरकार यह एक पोलिटिकल फिल्म है. इंदिरा गांधी की छवि को पूरी तरह से ब्लैक दिखाया गया है. यह बात भी अखरती है. दूसरे पक्षों की बात करें तो फिल्म का कैमरवर्क शानदार है. लॉरेंस डिकुहा ने अटल जी के कालखंड को अपनी सिनेमेटोग्राफी में बखूबी पर्दे पर उतारा है. फिल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है.

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पंकज त्रिपाठी का शानदार परफॉरमेंस

अभिनय की बात करें तो पंकज त्रिपाठी के करियर का यह सर्वश्रेष्ठ परफ़ॉर्मेंस है. पंकज त्रिपाठी को देखकर यह लगता है कि उन्होंने किरदार को समझा और फिर उसे आत्मसात किया. उसके बाद वह उनके हाथों के हाव भाव, बॉडी लैंग्वेज, संवाद अदायगी और आंखों में उतरता चला गया. एकता कौल छोटी सी भूमिका में भी याद रह जाती हैं. पीयूष मिश्रा सहित बाकी के कलाकारों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है. प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी के चेहरे से मेल खाते एक्टर्स को कहानी से जोड़ा गया है, जो फिल्म में एक अलग रंग भरते हैं.

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