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300 साल पुराना है मां भगवती केरा मंदिर, दर्शन करने पहुंचते हैं हजारों श्रद्धालु

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मां केरा मंदिर आज से वर्षों पहले ऐसा नहीं था. इस स्थल में फूस की छावनी से एक झोपड़ी में दिखाई पड़ता था. आसपास लता, कुंज, वन-उपवन से घिरा हुआ रमणीय स्थल के रूप में दिखाई पड़ता था.

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पश्चिमी सिंहभूम, रवि मोहंती : कोल्हान प्रमंडल का सबसे बड़ा मेला के रूप में ख्याति पा चुके मां केरा के दरबार में लगने वाले मेले में हजारों की संख्या में दर्शक पहुंचते हैं. मां का दरबार चक्रधरपुर शहर से महज 10 किलोमीटर दूर केरा गांव में स्थित है. यहां पर पहुंचकर सबसे पहले भक्त दर्शन कर मां भगवती केरा का आशीर्वाद लेते हैं. भक्त भले ही मां के मंदिर में प्रवेश ना कर पाते लेकिन दूर से ही सही वह मां का आशीर्वाद लेते हैं. मेला के अवसर पर केरा गांव का नजारा ही अलग दिखाई पड़ता है. मां केरा मंदिर व नदी तट का इलाका तो बिल्कुल ही जनसैलाब में बदल जाता है. मां केरा के दरबार में भक्तों का दहकते आग पर नंगे पांव चलना और कांटो में लेट कर मां केरा को खुश करना आदि भक्तिमय कार्यक्रम वर्षों से परंपरा के रूप में होता चला रहा है.

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लक्ष्मी नारायण सिंहदेव किए थे मंदिर की स्थापना

मां केरा मंदिर आज से वर्षों पहले ऐसा नहीं था. इस स्थल में फूस की छावनी से एक झोपड़ी में दिखाई पड़ता था. आसपास लता, कुंज, वन-उपवन से घिरा हुआ रमणीय स्थल के रूप में दिखाई पड़ता था. मंदिर का निर्माण यहां के पुरातन राजा स्वर्गीय लोकनाथ सिंहदेव के सुपुत्र स्वर्गीय लक्ष्मी नारायण सिंहदेव किए थे. प्रत्येक वर्ष चैत्र माह के अंत तथा बैशाख शुरू मध्य बासंती मुहूर्त पर मां भगवती केरा की एक आदि पूजा होती है. इस पूजा के अवसर पर केरा गांव में विशाल मेला का आयोजन किया जाता है.

धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित होगा केरा मंदिर

कोल्हान प्रमंडल के शक्तिपीठ के रुप में प्रसिद्ध मां भगवती केरा मंदिर धार्मिक पर्यटन स्थल के रुप में विकसित होगा. राज्य सरकार के पर्यटन विभाग को जिला प्रशासन और मंदिर संचालन समिति द्वारा मंदिर क्षेत्र के विकास और सुविधाएं बढ़ाने के लिए कई प्रस्ताव भेजे गये हैं. जिसमें मंदिर परिसर में मार्केट कॉम्प्लेक्स के साथ विश्रामगृह, केरा गांव से मंदिर तक सोलर लाईटिंग समेत अन्य सुविधाएं बहाल होंगी.

मां केरा की आस्था कोल्हान क्षेत्र में ऐसी है कि यहां कोल्हान के विभिन्न क्षेत्रों के अलावा बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्य से श्रद्धालु माता के दर्शन और पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं. इतना ही नहीं मां के दरबार में लोग मन्नतें करते हैं. सच्ची और श्रद्धा भाव से किए जाने वाले मन्नतें पूरी भी होती है. जिस कारण रोजाना सैकड़ों लोग मां की दरबार में पहुंचते हैं. वहीं मां को श्रृंगार, आभूषण समेत बकरे का बलि भी चढ़ातें है. लोगों में मां भगवती के प्रति काफी आस्था है. यदि मंदिर क्षेत्र में सुविधाएं बढ़ेगी तो यहां आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या और बढ़ेगी. मालूम हो कि मंदिर का पर्यटन स्थल में विकसित करने को लेकर पिछले दिनों बीडीओ व सीओ द्वारा मंदिर का जायजा भी लिया गया है.

300 वर्ष पुराना है मां भगवती मंदिर

बताया जाता है कि मां भगवती मंदिर केरा 300 वर्ष पुराना है. पहले यहां पेड़ों के नीचे मां की पूजा होती थी, जो धीरे-धीरे बाद में मंदिर का रुप लिया है. आस्था और भक्तों के कारण ही मंदिर क्षेत्र में प्रसिद्ध है. 300 वर्ष पुराने मां भगवती केरा मंदिर में प्रत्येक वर्ष चैत्र महीने में 31 मार्च से 14 अप्रैल तक विशेष पूजा होती है. इस बीच मंदिर में बलि बंद हो जाता है. इस बीच प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा-अनुष्ठान होती है, वर्तमान में शुरु हो गया है. पुजारी हिमांशु कर के मुताबिक चैत्र मेला में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना को पहुंचते हैं. चैत्र मेला में श्रद्धालुओं की हठभक्ति भी देखने को मिलती है.

केरा मेले में भक्त दिखाते है हठभक्ति

31 मार्च से 14 अप्रैल तक चलने वाले इस विशेष पूजा में कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं. 14 अप्रैल को मेले के दौरान भक्त हठभक्ति करते हैं. यहां दहकते अंगारों पर चलते और कांटों पर लेट कर भक्ति दिखाते हैं. जिसे देखने को आसपास ही नहीं कोल्हान प्रमंडल के विभिन्न क्षेत्रों के अलावे पश्चिम बंगाल, बिहार, ओड़िशा के लोग पहुंचते हैं. आगामी 10 अप्रैल को यात्रा घट, 11 अप्रैल को वृद्धावन घट यात्रा एवं सबुज संघ कला निकेतन के द्वारा ओड़िया सामाजिक नाटक का मंचन, 12 अप्रैल को गरिया भार घट यात्रा एवं राजबाड़ी परिसर में छऊ नृत्य का आयोजन, 13 अप्रैल को मेलू पूजा (जलाभिषेक) एवं रात में मंदिर परिसर में छऊ नृत्य, 14 अप्रैल को कालिका घट यात्रा, आग और कांटों में भक्तों का चलने के साथ मेला का संपन्न होगा.

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