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बरेली में फर्जी एनकाउंटर वाले दरोगा को उम्रकैद, 30 साल पहले युवक को पीठ में मारी थी गोली

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बरेली में 23 जुलाई 1992 को दरोगा युधिष्ठिर ने फर्जी एनकाउंटर में मुकेश जौहरी को मार दिया था. बरेली जिला कोर्ट ने शुक्रवार को 30 साल बाद दरोगा को उम्रकैद की सजा सुनाई.

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बरेली : उत्तर प्रदेश के बरेली में 23 जुलाई 1992 को दरोगा युधिष्ठिर ने फर्जी एनकाउंटर में मुकेश जौहरी को मार दिया था. बरेली जिला कोर्ट ने शुक्रवार को 30 साल बाद दरोगा को उम्रकैद की सजा सुनाई. जिले के फूंटा दरवाजा पर घटना को अंजाम दिया गया था. यहां करीब 7:45 बजे दरोगा ने साहूकारा निवासी 21 साल के मुकेश को लुटेरा बताकर पीठ में गोली मार दी थी. मृतक मुकेश की मां और एडवोकेट भाई के संघर्ष से मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था. दोनों ने सबूत जुटाकर पुलिस के झूठ का पर्दाफाश किया. बेटे को इंसाफ दिलाने के लिए परिवार को लंबा इंतजार करना पड़ा. परिवार के लोग इस फैसले के बाद से खुश हैं. भाई राकेश जौहरी का कहना है कि हम लोग जीत गए. ये सजा सबक बनेगी, उन लोगों के लिए जो निर्दोष लोगों को फर्जी एनकाउंटर में मार देते हैं. मुकेश को न्याय दिलाने की लड़ाई मां चंद्रा और भाई अरविन्द ने शुरू की थी. इस बात का दुख है कि आज इस खुशी के मौके पर वो लोग हमारे साथ नहीं हैं. वो नहीं देख पाए कि हम लोगों की लड़ाई सफल रही.

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झूठे मुकदमे लिख बना दिया हिस्ट्रीशीटर

7 भाइयों में मुकेश उर्फ लाली सबसे छोटा था. पिता वीरेश्वर नाथ जौहरी कलेक्ट्रेट में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी थे. लाली बरेली कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहा था और अच्छी नौकरी की तलाश में था. हमारे बड़े भाई एडवोकेट अरविन्द जौहरी साहूकारा से नगर निगम का चुनाव लड़ रहे थे. चुनाव प्रचार के दौरान ही लाली की दूसरे पक्ष के दावेदारों के साथ कहासुनी हो गई. यहीं से इस विवाद ने जन्म लिया था. भाई राकेश ने बताया कि दूसरे पक्ष के लोग ताकतवर थे. उन पर अधिकारियों का हाथ था. इसलिए लाली पर सिलसिलेवार तरीके से झूठे मुकदमे लिखने शुरू हो गए. राजनीतिक दबाव में पुलिस ने चंद दिनों में लाली को हिस्ट्रीशीटर बना दिया था. उसके ऊपर फर्जी लूट, धमकाने, मारपीट समेत कई केस दर्ज करवा दिए थे.

दरोगा युधिष्ठिर ने बीच बाजार में मार दी थी गोली

23 जुलाई 1992 को घर में बड़े भाई की पत्नी कल्पना की अचानक तबीयत बिगड़ गई. लाली अपने भाई अरविन्द को बुलाने रिश्तेदारी में बामनपुरी पैदल ही चला गया. वहां पहुंचकर भाभी की तबीयत बिगड़ने की बात बताई. जैसे ही अरविन्द ने यह बात सुनी वो वहां से स्कूटर उठाकर तुरंत ही घर की ओर निकल गए. लेकिन लाली पैदल ही घर की ओर बढ़ने लगा. उस समय मौके पर मौजूद कुछ लोगों ने हमें बताया था कि लाली किला के फूंटा दरवाजे पर जैसे ही पहुंचा तभी पीछे से दरोगा युधिष्ठिर ने बीच बाजार में उसकी पीठ पर गोली मार दी. जिसके बाद वो बेहोश होकर जमीन पर गिर गया. उसके बाद दरोगा युधिष्ठिर उसे सरकारी जीप में डालकर थाना किला ले गए. जहां थाने में लाली की सांस चलती देख दरोगा ने फिर उसकी पीठ में दो गोली और चला दी। जिससे उसकी मौत हो गई.

शाबाशी पाने के लिए दरोगा ने रची साजिश

तत्कालीन अधिकारियों से शाबाशी पाने के लिए दरोगा ने कोतवाली में लाली और अन्य के खिलाफ झूठा मुकदमा लिखवाया. जिसमें दरोगा युधिष्ठिर ने लाली पर बड़े बाजार में शराब की दुकान लूटने का आरोप लगाया. उसके बाद पुलिस मुठभेड़ में उसे मार गिराने का दावा किया. पुलिस ने उस वक्त दावा किया था कि पेट्रोलिंग के दौरान दरोगा युधिष्ठिर सिंह ने देखा कि बड़ा बाजार स्थित एक शराब की दुकान को 3 लोगों द्वारा लूटा जा रहा है. जब पुलिस ने उनको रोका तब लाली ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने भी गोली चलाई और लाली मारा गया. वहीं उसके अन्य दो साथी मौके से फरार हो गए.

गवाही में दुकान के मालिक ने लूटपाट की घटना को नकार

गवाही के दौरान शराब के दुकान का मालिक ने वहां लूटपाट की घटना को सिरे से नकार दिया था. मुकेश की मां चंद्रा जौहरी इस एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए सुप्रीम कोर्ट तक गईं. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी थी. 20 नवंबर 1997 को CBCID की जांच के बाद आरोपी दरोगा युधिष्ठिर सिंह पर लाली की हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ. बुधवार को बरेली की ADJ-12 कोर्ट ने दरोगा युधिष्ठिर सिंह को लाली की हत्या का दोषी ठहराया है. कोर्ट ने शुक्रवार को दरोगा को आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए का आर्थिक दंड दिया है.

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