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Explainer :  राहुल गांधी को मिला नेता प्रतिपक्ष का दर्जा, जानें क्या हैं विशेषाधिकार और कितना अहम है पद?

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Leader of the Opposition in Lok Sabha : देश में पहले नेता प्रतिपक्ष 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद कांग्रेस ओ के राम सुभग सिंह बने थे. उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. लेकिन इस पद को कानूनी मान्यता 1977 में मिली.

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Leader of the Opposition in Lok Sabha : लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे कांग्रेस के लिए कई मायनों में बहुत खास हैं, एक तो उनका संख्या बल बढ़ा है, वहीं सबसे खास बात यह है कि कांग्रेस को 10 साल बाद नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिला है. नेता प्रतिपक्ष वह व्यक्ति होता है, जो विपक्षी पार्टियों का नेता होता है और उसके पास कई विशेषाधिकार होते हैं. लोकसभा में इस बार कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिला है। नेता प्रतिपक्ष संसद में विपक्ष की आवाज होता है, यानी लोकतंत्र में वह उन लोगों की आवाज बनेंगे, जिनकी सरकार नहीं बन पाई.

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नेता प्रतिपक्ष का दर्जा किसे मिलता है?

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा उसे मिलता है जिसकी पार्टी ने लोकसभा चुनाव में कुल सीट का कम से कम 10% जीती हो. इस बार के लोकसभा चुनाव परिणाम में कुल 543 सीटों में से बीजेपी को 240 सीट मिली हैं, जबकि कांग्रेस के पास 99 सीटें हैं. बीजेपी एनडीए गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है, एनडीए को कुल 293 सीटें मिली हैं. इंडिया गठबंधन को 234 सीटें मिली हैं, जिसमें सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. 2019 और 2014 के चुनाव में कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला था क्योंकि उनके पास पर्याप्त सीटें नहीं थीं, यानी उन्हें कुल 543 सीटों का 10% हासिल नहीं हुआ था. 2019 में कांग्रेस को 52 सीटें मिलीं थीं, जबकि 2014 में कांग्रेस को 44 सीटें मिली थीं. जबकि विपक्ष का दर्जा हासिल करने के लिए 54 से 55 सीटों की जरूरत होती है।

क्या हैं नेता प्रतिपक्ष के अधिकार

Rahul Gandhi
लोकसभा में बहस के दौरान अपनी बात रखते हुए राहुल गांधी

संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है. भारत में आजादी के बाद नेता प्रतिक्ष का पद खाली था क्योंकि उस वक्त विपक्षी सांसदों की संख्या बहुत कम थी. पहले नेता प्रतिपक्ष 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद बने. कांग्रेस ओ के राम सुभग सिंह पहले नेता प्रतिपक्ष थे, उस वक्त प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं. लेकिन उस वक्त इस पद को कानूनी मान्यता नहीं मिली थी.  1977 में विपक्ष की आवाज को प्रमुखता से उठाने के लिए सदन में प्रतिपक्ष के नेता को कानूनी मान्यता दी गई अीर उनके अधिकारों को परिभाषित किया गया. लोकतंत्र में जनता की सरकार होती है, बहुमत जिस पार्टी के पास होता है, उसकी सरकार बनती है, लेकिन जिस पार्टी के नेता को विपक्ष का नेता होने का दर्जा प्राप्त होता है, उसके विचारों को किसी भी बड़े मसले पर निर्णय करने से पहले सुना जाता है और उनसे परामर्श किया जाता है. यह लोकतंत्र की खूबी है. 

विधायी मामलों के जानकार अयोध्या नाथ मिश्र ने बताया कि जिस प्रकार प्रधानमंत्री सत्ता पक्ष की आवाज होता है, उसी प्रकार नेता प्रतिपक्ष को विपक्ष की आवाज माना जाता है. सदन में उनका सम्मान प्रधानमंत्री की तरह ही होता है. वे किसी भी मसले पर हस्तक्षेप कर सकते हैं. जब वे संसद में खड़े होते हैं तो यह एक मर्यादा है कि पूरा सदन उनके सम्मान में अनुशासित व्यवहार करे.

नेता प्रतिपक्ष उन सभी कमेटियों का भी सदस्य होता है, जो सदन की स्थायी समिति होती है या फिर जो स्पीकर के विशेषाधिकार द्वारा गठित की जाती है. मसलन वो सदन की चारों स्थायी समिति प्राक्कलन समिति, लोक लेखा समिति, पब्लिक अंडर टेकिंग समिति और प्रिवीलेज कमेटी का सदस्य होता है. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी उन्हें अधिकार दिए हैं, जिसके तहत वे उन कमेटियों का भी हिस्सा होते हैं, जो मुख्य निर्वाचन आयुक्त, लोकायुक्त और मुख्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करता है.

नेता प्रतिपक्ष के सामने चुनौतियां

Rahul In Tension
18वीं लोकसभा के पहले सत्र में राहुल गांधी

प्रभात खबर के ब्यूरो चीफ आनंद मोहन ने बताया कि नेता प्रतिपक्ष विपक्ष की आवाज होता है और सदन में उनका बहुत सम्मान भी होता है. राहुल गांधी के सामने यह चुनौती होगी कि वो एनडीए की सरकार के सामने विपक्ष की आवाज को मुखर रखें और एक रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएं. चूंकि विपक्ष में कई पार्टियां हैं और सबमें कद्दावर नेता भी हैं, इसलिए राहुल गांधी के समक्ष चुनौती सबको साथ रखने की भी है, क्योंकि अगर विपक्ष बिखरा हुआ रहेगा तो वह सरकार पर लगाम कसने में कामयाब नहीं हो पाएगा. वो सरकार की उस तरह से समीक्षा नहीं कर पाएगा जिस तरह से संगठित होकर किया जा सकता है. आनंद मोहन ने बताया कि विपक्ष के नेता के सामने यह चुनौती भी रहती है कि अगर किसी कारणवश सरकार गिर जाए तो वे वैकल्पिक सरकार बना सकते हैं. इस कारण से विपक्ष के नेता की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है और लोकतंत्र में यह पद काफी अहम है.

विपक्ष के नेता को क्या मिलेंगी सुविधाएं

नेता प्रतिपक्ष को चूंकि कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त होता है, इसलिए उन्हें वो हर सुविधाएं मिलेंगी जो एक मंत्री को मिलती हैं. मसलन उन्हें आवास, स्वास्थ्य , सुरक्षा सब कुछ उपलब्ध कराया जाएगा और वह उसी तरह का होगा, जैसा एक कैबिनेट मंत्री को मिलता है. उन्हें मुफ्त हवाई, रेल यात्रा जैसी सुविधाएं मिलेंगी. तीन लाख से अधिक उनका वेतन होगा, जो एक मंत्री का होता है. साथ ही उन्हें सचिवालय में एक ऑफिस भी दिया जाएगा.

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