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Karma Puja 2023: इस दिन है भाई-बहन का पर्व करमा पूजा, यहां जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

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Karma Puja 2023: इस साल 25 सितम्बर को करमा पर्व का व्रत रखा जाएगा. करमा पर्व का मुख्य उदेश्य होता है. बहन अपने भाई की सुख समृद्धि के लिये एकादशी के दिन व्रत रखती है. इसके साथ ही अच्छी कृषि और प्रकृति से अच्छी फसल की कामने की जाती है.

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Karma Puja 2023: 25 सितंबर 2023 को करमा पूजा आयोजित की जाएगी. पूजा विशेष रूप से बिहार और झारखंड राज्यों में मनाई जाती है, जहां त्योहार भगवान करम के लिए पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ पूरे दिन चलता है। आपको बता दें करमा पूजा सिर्फ एक सीमित छुट्टी नहीं है, इस त्योहार का विशेष महत्व होता है. करमा पर्व का मुख्य उदेश्य होता है. बहन अपने भाई की सुख समृद्धि के लिये एकादशी के दिन व्रत रखती है. इसके साथ ही अच्छी कृषि और प्रकृति से अच्छी फसल की कामने की जाती है.

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ऐसे होती है करमा पूजा की शुरूआत

तीज का डाला अहले सुबह नदियों व तालाबों में विसर्जन किया जाता है. वहीं शाम को कुंवारी बहनों के द्वारा करमा का डाला स्थापित किया जाता है. कुंवारी बहनें अपने-अपने घरों से गीत गाते हुए बांस के डाला लेकर नदी व तालाब पहुंचती हैं. जहां वे स्नान कर नदियों व तलाबों से डाला में बालू लाकर अखाड़ों में सारी बहनें बैठती हैं. उसी दौरान डाला में विभिन्न तरह के बीजों को जौ के साथ बुनती हैं.

जानें पूजा विधि

घर के आंगन में जहां साफ-सफाई किया गया है वहां विधिपूर्वक करम डाली को गाड़ा जाता है. उसके बाद उस स्थान को गोबर में लीपकर शुद्ध किया जाता है. बहनें सजा हुआ टोकरी या थाली लेकर पूजा करने हेतु आंगन या अखड़ा में चारों तरफ करम राजा की पूजा करने बैठ जाती हैं. करम राजा से प्रार्थना करती है कि हे करम राजा! मेरे भाई को सुख समृद्धि देना. उसको कभी भी गलत रास्ते में नहीं जाने देना. यहां पर बहन निर्मल विचार और त्याग की भावना को उजागर करती है. यहां भाई-बहन का असीम प्यार दिखाई देता है. यह पूजा गांव का बुजुर्ग कराता है.

पूजा के बाद सुनायी जाती है करमा और धरमा की कथा

पूजा समाप्ति के बाद करम कथा कही जाती है. कहानी में करमा और धरमा की कथा सुनायी जाती है. कथा का मुख्य उद्देश्य यह रहता है कि अच्छे कर्म करना. इस संदर्भ में डॉ गिरिधारी राम गौंझू कहते हैं कि क, ख, ग, घ, ङ तबे रहबे चंगा. अर्थात क से कर्म करो, ख से खाओ, ग से गाओ फिर घूमो तब तुम चंगा रहोगे. काम कर अंग लागाय कन आर डहर चले संग लागाय कन. कहने का तात्पर्य है कि कोई भी काम करो तो पूरे मन से करो और रास्ता पर चलो तो मित्र के साथ चलो. कथा समाप्त होने के बाद सभी युवतियां करम डाली को गले लगाती हैं. उसके बाद रात भर नृत्य गीत चलता है.

कुंवारी युवतियां एवं विवाहित महिलाएं बेसब्री से करती है इंतजार

करमा पर्व भाई-बहन के आपसी सद्भाव, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है. यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व का इंतजार कुंवारी युवतियां एवं विवाहित महिलाएं बेसब्री से करती हैं. हजारीबाग जिले के हर प्रखंडों में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. बहनें सात दिनों तक करमा गीत के साथ लोक नृत्य करती है. छठा दिन संयत करती हैं. दूसरे दिन निर्जल उपवास किया जाता है. इसी दिन मुख्य पूजा आयोजित होती है. शाम को आंगन में करम पौधे की डाली लगाकर फल, फूल आदि से पूजा की जाती है. इस दौरान महिलाएं करमडाली के चारों ओर घूम-घूमकर गीत गाती हैं.

शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में मनाती है पर्व

भाई खीरा लेकर बहनों से सवाल करते हैं कि करमा पर्व किसके लिए करती हो, तो बहनें जबाव देती हैं भाईयों के मंगलकामना के लिए. बाद में भाई खीरे से मारता है, जिसके बाद महिलाएं एवं युवतियां फलाहार करती हैं. अगले दिन सुबह में करम की डाल को पोखर में विसर्जित कर दिया जाता है. इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में पर्व मनाती हैं.

कई कहानियां भी है प्रचलित

हालांकि, करमा-धरमा से जुड़ी कई और कहानियां भी प्रचलित हैं. कहीं-कहीं पौराणिक कथा इस तरह है कि करमा जब भगवान कर्मा की पूजा करता है, तो उसकी पत्नी गर्म दूध से करमा के पौधों को स्नान कराती है, जिससे उसका कर्म जल जाता है. वह गरीब हो जाता है. वहीं, उसका भाई धरमा अमीर हो जाता है क्योंकि वह तरीके से पूजा-पाठ करता है. तब वहां जाकर करम के डाल की पुन: पूजा-अर्चना करते हैं. तब उनका करमा जाग जाता है. रास्ते में कई स्थानों में करमा को सोना, चांदी व पैसे मिल जाते हैं. जिससे वह अमीर हो जाता है.

हजारीबाग में अनोखे अंदाज से मनाया जाता है करमा पर्व

करमा पूजा को लेकर हर तरफ उत्सव का माहौल है. वहीं, हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में करमा का पर्व अनोखे अंदाज से मनाया जाता है. यहां तीज का डाला विसर्जन करने के पहले गवांट एवं भक्ताइन द्वारा भूत भरनी की जाती है. तब करमा का डाला स्थापित होता है. सात दिनों तक करम के डाला को सुबह-शाम जगाया जाता है. करमा पूजा के एक दिन पहले संजोत के दिन गांव का पाहन देवल भुइयां रात्रि दो बजे देवी मंडप से भूत भरते हुए महोदी पहाड़ के गुफा जाते हैं. वहां से सेग कदम के फूल लाते हैं. देवी मंदिर एवं गांव के सभी मंदिरों में फूल चढ़ाते हैं. तब सभी करमा के अखाड़ों में फूल को पहुंचाया जाता है. बड़कागांव के कई गांव एवं मोहल्लों में देवास लगाने वाले भक्तों द्वारा भूत भरनी की जाती है. तब होती है कर्मा पूजा.

पूजा के बाद सुनायी जाती है करमा और धरमा की कथा

पूजा समाप्ति के बाद करम कथा कही जाती है. कहानी में करमा और धरमा की कथा सुनायी जाती है. कथा का मुख्य उद्देश्य यह रहता है कि अच्छे कर्म करना. इस संदर्भ में डॉ गिरिधारी राम गौंझू कहते हैं कि क, ख, ग, घ, ङ तबे रहबे चंगा. अर्थात क से कर्म करो, ख से खाओ, ग से गाओ फिर घूमो तब तुम चंगा रहोगे. काम कर अंग लागाय कन आर डहर चले संग लागाय कन. कहने का तात्पर्य है कि कोई भी काम करो तो पूरे मन से करो और रास्ता पर चलो तो मित्र के साथ चलो. कथा समाप्त होने के बाद सभी युवतियां करम डाली को गले लगाती हैं. उसके बाद रात भर नृत्य गीत चलता है.

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