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Jitiya Vrat 2023: जितिया व्रत 6 अक्टूबर को सर्वथा निषिद्ध! ज्योतिषाचार्यों के अलग-अलग मत से महिलाएं कंफ्यूज

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Jitiya Vrat 2023: जितिया व्रत कब है, तिथि को लेकर लोगों में कंफ्यूजन पैदा कर दिया गया है. जितिया व्रत 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को रखा जाएगा या 7 अक्टूबर दिन शनिवार को है, इसे लेकर महिलाएं भ्रमित हो रही है. इस व्रत को लेकर ज्योतिषाचार्यों का अलग-अलग मत है.

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Jitiya Vrat 2023: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का विशेष महत्व हैं. जितिया व्रत को महिलाए पुत्र की लंबी दीर्घायु के लिए करती हैं. ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री के अनुसार, जितिया व्रत नहाय खाय से शुरू होकर सप्तमी, अष्टमी और नवमी को समापन किया जाता है. इस बार जितिया व्रत की शुरुआत 5 अक्टूबर से हो रही है और 7 अक्टूबर तक चलेगा. इस बार 5 अक्टूबर को नहाए खाए और सुबह सूर्योदय से पहले तक (ओटगन) और 6 अक्टूबर को सुबह से जितिया व्रत महिलाएं रखेंगी. 7 अक्टूबर को 10 बजकर 32 मिनट पर व्रत का समापन कर पारण करेंगे. 6 तारीख को सुबह 9 बजकर 34 मिनट तक सप्तमी हैं, इसलिए सूर्योदय मुताबिक जितिया का व्रत सुबह से ही होगा. सुबह से लेकर अगले दिन 7 तारीख तक 10 बजकर 32 मिनट तक उपवास समापन करेंगे.

जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर मतभेद

कुछ ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि 6 अक्टूबर को जितिया व्रत करना अशुभ रहेगा. उनके द्वारा 7 अक्टूबर दिन शनिवार को व्रत करने की सलाह दी जा रही है. उनका कहना है कि जितिया व्रत 7 अक्टूबर दिन शनिवार को करने से व्रत का पूरा फल मिलेगा. 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को किसी भी स्थिति में यह व्रत हो ही नहीं सकता है. वहीं पटना के पंडित भवनाथ झा ने बताया कि मिथिला में जितिया व्रत 6 अक्टूबर को मनाया जाएगा. वहीं लखनऊ के ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री ने भी जितिया व्रत 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को ही रखने की बात कह रहे है. वहीं सोशल मीडिया पर एक्टिव रहने वाले ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि जीवित पुत्रिका व्रत को लेकर अनेकों विद्वानों एवं धर्म प्रेमियों द्वारा भ्रमित किया जा रहा है. उन लोगों का कथन है कि कुछ पंचांगों, विद्वानों,जगद्गुरू शंकराचार्यों ,जगद्गुरु रामानुजाचार्यों द्वारा 6 अक्टूबर 2023 दिन शुक्रवार को जीवत्पुत्रिका व्रत करने का निर्णय किया गया है. जबकि उस दिन अष्टमी सप्तमी विद्ध है. जो सर्वथा त्याज्य है. इस विषय पर दासानुदास मुझ पौराणिक से शास्त्र सम्मत निर्णय की मांग की जा रही है.

6 अक्टूबर को जिउतिया व्रत मानने का आधार

इस पूर्व पक्ष- का आधार ग्रन्थ मुख्यतया वर्ष कृत्यम् एवं कृत्यसार समुच्चय में भविष्य पुराण के एक प्रसंग को व्याख्यायित किया गया है जो विचारणीय है-

संकेत–भविष्ये

इषे मास्यसितेपक्षे

शालिवाहनराजस्य

प्रदोष समरे स्त्रीभि:

उक्त तीनों श्लोकों में मात्र अष्टमी तिथि अभीष्ट है. कहीं भी यह अंकित नहीं किया गया है कि सप्तमी सहित अष्टमी यदि प्रदोष में रहेगी तो व्रत होगा. यह भी अंकित नहीं है कि अष्टमी में चन्द्रोदय ही जीवत्पुत्रिका व्रत है.

पूर्वे द्यु रपरेद्युर्वा- इस श्लोक मे प्रदोष कलीन अष्टमी में जीमूतवाहन पूजन की बात बतायी गई है.

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यह विष्णु धर्मोत्तर का वचन है…

यह वचन एकांगी है और इसकी पुष्टि नहीं करता है कि सप्तमी युक्त प्रदोष व्यापिनी अष्टमी व्रत हेतु अभीष्ट है.

पूर्व पक्ष के द्वारा इस तरह का कोई पुष्ट प्रमाण स्पष्टतया प्रस्तुत नहीं किया गया है, जो यह सिद्ध कर सके कि प्रदोष में अष्टमी आवश्यक है. सूर्योदय में चाहे सप्तमी ही क्यों न हो.

कुछ लोगों द्वारा

नागों द्वादशनाडीभिर्दिक- निर्णय सिन्धु के वचन से यह सिद्ध करने का विफल प्रयास किया जा रहा है कि 12 घटी से सप्तमी न्यून हैं अतः 6 अक्टूबर को अष्टमी सप्तमी से विद्ध तो है ही नहीं. उन्हें यह जानना चाहिए कि यह नियम यहां प्रवृत्त नहीं होगा. कारण यह सामान्य नहीं विशेष व्रत है, केवल तिथि जन्म व्रत नहीं है. जब कि उक्त निर्णय सामान्य अष्टमी तिथि परक है. उक्त प्रमाणों के आलोक में 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को जीवत्पुत्रिका व्रत हो ही नहीं रहा है. फिर भी कुछ लोग जबरदस्ती कराने में जुटे हुए है.

यदिपूर्व पक्ष की बात मान भी लिया जाय तो…

भविष्य पुराण एवं तदनुसार मैथिल निवन्ध वर्षकृत्यम्,कृत्यसार समुच्चय के अनुसार होगा तो भी 6अक्टूबर को व्रत नहीं हो सकेगा. क्योंकि व्रतादि निर्णय में शास्त्रीय व्यवस्था ही मान्य है और वह निम्नवत तीन प्रकार की है…

(1) विधि वचन ।

(2)निषेध वचन ।

(3) प्रतिषेध वचन ।

यहां प्रतिषेध का संदर्भ बन रहा है. जब किसी व्रत के संदर्भ में ऋषियों एवं शास्त्रों में मत भेद उपस्थित हो जाता है, तो उसे प्रतिषेध वचन की श्रेणि में रखा गया है.

इस तरह की स्थिति उत्पन्न होने पर अधिक ऋषि एवं शास्त्रीय प्रमाण जो कहते हैं वहीं मान्य होता है.

अतः सप्तमी में सूर्योदय होने के बाद प्रदोष में अष्टमी में चन्द्रोदय होने पर जीवंत पुत्रिका व्रत के पक्ष में नहीं के बराबर प्रमाण होने के कारण 6 अक्टूबर को व्रत नहीं हो सकता है.

यदि किसी के पास ऐसा प्रमाण हो कि सप्तमी में सूर्योदय और अष्टमी में चन्द्रोदय ही जीव पुत्रिका व्रत है तो प्रस्तुत करना शास्त्र संभार होगा. जब कि सप्तमी रहित अष्टमी में सूर्योदय ही जीव पुत्रिका व्रत है के पक्ष में अनेकश:प्रमाण शास्त्रों में भरे पड़े हैं, जिनका उल्लेख आगे द्रष्टव्य है.अत:अत्यल्प प्रमाणाभावादपि यह व्रत अग्राह्य हो जाता है. अर्थात् किसी भी स्थिति में उक्त तिथि को व्रतापत्ति का अभाव है.

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6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को व्रत सर्वथा निषिद्ध है

जीवित पुत्रिका व जिउतिया व्रत 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को ही होगा. कुछ ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि शास्त्रीय मत एवं प्रमाण के अनुसार लोक में भी देखा जाता है कि प्रभावित व्यक्ति की ही बात पहले सुनी जाती है. पश्चात् गवाह की बात से पुष्टि की जाती है. ठीक ऐसे ही सनातन धर्म में व्रत कथा की बात पहले सुनी जाती है, फिर अन्य ग्रन्थ एवं ऋषि मुनियों की बात प्रमाण के रुप में मानकर हम व्रत उपवास करते हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का वचन गरुण भगवान ने जीमूत वाहन से कहा है कि व्रत कैसे करने से पुण्य मिलेगा.

कुछ ज्योतिषाचार्य इसे बता रहे तथ्य

1- आश्विने बहुले पक्षे- श्लोक 30

आश्विन कृष्ण सप्तमी रहित अष्टमी ही इस व्रत के लिए शुभ है.

02- सप्तमी रहिता चाद्य—++++ श्लोक 31

गरुण जी बोले हे जीमूत वाहन आज सप्तमी रहित अष्टमी तिथि को तुमने जीवन दान दिया है. अत: जब -जब सप्तमी रहित अष्टमी तिथि आश्विन कृष्ण में आएगी तब- तब व्रह्म भाव को प्राप्त होगी.

03- उपोष्य चाष्टमी राजन् —-श्लोक 35 सप्तमी रहित अष्टमी का व्रत कर के नवमी में पारण करना चाहिए.

04- वर्जीनिया प्रयत्नेन सप्तमी सहिताष्टमी – श्लोक 36

किसी भी स्थिति में सप्तमी युक्त अष्टमी का परित्याग करना ही है. यदि सप्तमी सहित अष्टमी में व्रत किया गया (जैसा की 6 अक्टूबर 2023) तो निश्चित ही अशुभ रहेगा.

अन्य ग्रन्थों एवं ऋषियों का प्रमाण

05- माधवीये माधवाचार्य:

सप्तमी शेष संयुक्ता या करोती विमोहित।

सप्त जन्म भवेद्वन्ध्या वैधव्यं च पुनः:पुनः:।

सप्तमी सहित अष्टमी का व्रत करने वाली बार-बार विधवा होती है और सात जन्मों तक बांझ रहती है.

06- राज मार्तण्डे भृगुरुवाच

नूनं सूर्योदय जीवित्पुत्रिका स्यात्।

07- कात्यायनेनोक्तम्

आश्विने वहुले पक्षे याष्टमी भास्करोदये।

स्वल्पापि चेत तदा कार्या सा स्मृता जीवपुत्रिका।।

08- आचार्य माधव देव:

उदये चाष्टमी किंचित् सकला नवमी भवेत्।

सैवो पोष्या वरस्त्रिभि: पूजयेत् जीव पुत्रिकाम्।

08- याज्ञवल्क्य संहितायाम

नवमी सह कर्तव्या अष्टमी नवमी तथा ।

उक्त सभी ग्रन्थों एवं ऋषियों का मत है कि सूर्योदय के समय स्वल्प अष्टमी भी रहे और दिन भर नवमी तिथि रहे तो वहीं जीव पुत्रिका व्रत है न कि अष्टमी में चन्द्रोदय .

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कथन

इस प्रकार शतश: ग्रन्थों एवं ऋषियों का यही कथन हैं कि सप्तमी विद्ध अष्टमी का व्रत किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए. यदि कोई भूल से भी ऐसा व्रत कर लिया तो उसका नाश निश्चित है . 6 अक्टूबर 2023 को सप्तमी विद्ध अष्टमी होने के कारण किसी भी स्थिति में व्रत नहीं किया जा सकता.

पुनश्च- अनेकों ग्रन्थों, ऋषियों का मत है कि सूर्योदय के समय नाम मात्र भी अष्टमी हो तथा दिन रात नवमी रहे तो वहीं व्रत सर्वाभ्युदय कारी है, जो इस वर्ष 7 अक्टूबर 2023 दिन शनिवार को है. अत एव जीवत्पुत्रिका व्रत इसी दिन को ही होगा.

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