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झारखंड: पिता ने आगे पढ़ाई कराने में जतायी असमर्थता तो ट्यूशन व फल बेचते हुए बने शिक्षक

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तुम आगे की पढ़ाई करना चाहते हो, तो खुद कुछ करो. इसके बाद मो शरीफ पढ़ाई जारी रखने के लिए घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाने लगे. इस दौरान किसी तरह इंटर की पढ़ाई पूरी की.

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मो शरीफ उर्दू मध्य विद्यालय झरिया (धनबाद) में शिक्षक हैं. बचपन से ही उनका लक्ष्य शिक्षक बनना था. उन्होंने अपने सपने को पूरा करने के लिए ट्यूशन पढ़ाया और फल दुकान में काम किया. मो शरीफ कहते हैं कि जब उन्होंने वर्ष 1986 में मैट्रिक पास किया, तो पिता जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं. मैं कोई मदद नहीं कर सकता.

तुम आगे की पढ़ाई करना चाहते हो, तो खुद कुछ करो. इसके बाद मो शरीफ पढ़ाई जारी रखने के लिए घर-घर जाकर ट्यूशन पढ़ाने लगे. इस दौरान किसी तरह इंटर की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही थी. कोई काम भी नहीं मिल रहा था. पिता जी आलू गद्दी में मुंशी थे. उनका वेतनन 800 रुपये था. पिताजी के वेतन से घर चलना भी मुश्किल हो रहा था.

फल दुकान में पहले महीना मिला सौ रुपये :

मो शरीफ ने बताया कि तंगी के कारण वे भी फल की गद्दी में मुंशी का काम करने लगे. इससे पिताजी काफी खुश हुए.पहले महीना वेतन के रूप में 100 रुपये व कुर्ता-पाजामा मिला. इस बीच फल की दुकान में काम करते हुए पढ़ाई जारी रखी. इस दौरान फल लाने के लिए दूसरे राज्यों में भी जाना पढ़ता था. आम के फसल के समय भागलपुर, दरभंगा, मधुबनी जाते थे.

काफी दिनों तक वहां रहना पड़ता था. इस दौरान पढ़ाई जारी रखते हुए स्नातक की परीक्षा पास की. वहीं मुंशी का काम करते रहे. जीवन से संघर्ष चलता रहा. हजारीबाग में एमए में दाखिला लिया. धनबाद में रहते हुए एमए का क्लास करने के लिए हजारीबाग जाते थे. वर्ष 1995 में पिताजी की तबीयत खराब होने लगी. उनके इलाज में काफी पैसा खर्च हुआ. वर्ष1998 में पिताजी का निधन हो गया. उस वक्त मुझे 700 रुपये वेतन मिलता था. वर्ष 1999 में प्राथमिक शिक्षक नियुक्ति परीक्षा का रिजल्ट जारी हुआ. मेरा चयन प्राथमिक शिक्षक पद पर हुआ. इस प्रकार मेरा सपना पूरा हुआ.

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