18.1 C
Ranchi
Sunday, February 23, 2025 | 09:27 am
18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

राजनीति में रहकर भी निस्पृह रहे जवाहरलाल दर्डा

Advertisement

कांग्रेस नेताओं के लिए वर्ष 1977 से 1980 का समय कठिन चुनौती का था. उस समय विधायक पद से इस्तीफा देकर, बाबूजी इंदिरा गांधी के साथ खड़े हुए. उसी दौर में इंदिरा कांग्रेस की महाराष्ट्र में स्थिति बहुत कमजोर थी. गिने-चुने लोग ही कांग्रेस के साथ खड़े थे. इस समय बाबूजी को किस-किस तरह के प्रलोभन दिए गए.

Audio Book

ऑडियो सुनें

प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, पूर्व राष्ट्रपति

बाबूजी का राजनीतिक जीवन बहुत उथल-पुथल भरा था. उन्हें इस दौरान कई कठिन परिस्थितियों और कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लेकिन, उन्होंने हर मुश्किल का सामना किया और उन पर जीत हासिल की. उन्होंने यह भी दिखाया, कि राजनीति में कोई कितना निस्पृह भी रह सकता है. मुझे लगता है कि यह उनकी एक बड़ी विशेषता है, कि उन्होंने राजनीति में दलीय विरोध को कभी भी घृणा में नहीं बदलने दिया और अपनी पार्टी के साथ-साथ विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाये रखे. राजनीति में प्रवाह के साथ-साथ बहने वाले, और हवा के रुख के हिसाब से अपनी दिशा बदल देने वाले कई नेता होते हैं. लेकिन, अपने लंबे राजनीतिक कार्यकाल में मैंने ऐसे कुछ गिने-चुने उदाहरण देखे हैं,

जो ऐसे राजनेताओं के बीच एक अपवादस्वरूप हैें. इसमें एक प्रमुख नाम है, महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जवाहरलाल दर्डा जी का, यानी बाबूजी. मेरे लिए वह राजकीय सहयोगी तो थे ही, लेकिन मैंने उन्हें अपने ससुराल और मायके को जोड़ने वाले एक रिश्ते की तरह भी देखा. बाबूजी ने भी इस रिश्ते को बड़ी आत्मीयता के साथ निभाया. मेरा मायका खानदेश है और ससुराल अमरावती में है. बाबूजी ने ‘लोकमत’ के माध्यम से इन दोनों ही प्रांतों को आपस में जोड़ा, और इस तरह मैं दोनों ही तरफ से बाबूजी से जुड़ गयी.

राजनीतिक जीवन की भागदौड़ में स्नेह के रिश्तों को किस तरह निभाया जाता है, यह मुझे बाबूजी से सीखने को मिला. बाबूजी बहुत खुले दिल के इंसान थे. वर्ष 1988 में महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद मेरा पहला नागरिक सम्मान बाबूजी ने ही जलगांव के कांग्रेस भवन में किया. वह अवसर मैं आज भी नहीं भूली हूं. इस मौके पर उन्होंने मेरे प्रति अपनी जो भावनाएं व्यक्त कीं, वे मेरे लिए उत्साहवर्धक थीं. देश भर के समस्त कांग्रेस नेताओं के लिए वर्ष 1977 से 1980 का समय कठिन चुनौती का था. उस समय विधायक पद से इस्तीफा देकर, बाबूजी इंदिरा गांधी के साथ खड़े हुए. उसी दौर में इंदिरा कांग्रेस की महाराष्ट्र में स्थिति बहुत कमजोर थी. गिने-चुने लोग ही कांग्रेस के साथ खड़े थे. इस समय बाबूजी को किस-किस तरह के प्रलोभन दिए गए, इसकी मैं साक्षी रही हूं. लेकिन, ऐसे किसी भी क्षण में, कांग्रेस के प्रति उनकी आस्था कभी नहीं डिगी.

जवाहरलाल दर्डा सृजनशील समाज सेवी, कार्यकुशल और सहिष्णु नेता थे. उन्होंने सामाजिक समस्याओं को हल करने का निरंतर प्रयास किया. जवाहरलाल जी के बारे में मैंने सुना तो था, लेकिन उनसे प्रत्यक्ष भेंट कांग्रेस पार्टी में आने के बाद ही हुई. कांग्रेस मेंं मैं, और मेरे जैसे कई युवा कार्यकर्ता सक्रिय थे. जवाहरलाल दर्डा उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस के प्रमुख नेताओं में से एक थे. मीटिंग और अधिवेशन जैसे अलग-अलग अवसरों पर उनसे मिलना होता था. मुझे उनकी मुस्कुराहट आज भी याद है. जिस तरह एक बेटी अपने पिता से अपनी सभी बातें साझा करती है, उसी विश्वास के साथ महिला कार्यकर्ता बाबूजी से पार्टी संगठन पर चर्चा करती थीं.

बाबूजी नौजवानों पर अधिक ध्यान देते थे. उनकी जरूरतों और समस्याओं को दूर करने का प्रयास करते थे. बाबूजी का राजनीतिक जीवन आसान नहीं था. उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. लेकिन, उन्होंने हर चुनौती का सामना किया और विजयी भी हुए. उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया कि राजनीति में रहते हुए भी व्यक्ति निस्पृह रह सकता है. राजनीति में पार्टी के विरोध को कभी निजी दुश्मनी में नहीं बदलने दिया. अपनी पार्टी के साथ-साथ विपक्ष के लोगों के साथ भी उनके आत्मीय संबंध थे. मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि महाराष्ट्र के विकास में बड़ा योगदान देने वाले जवाहरलाल दर्डा जी की जन्मशताब्दी के अवसर पर उनकी जीवनयात्रा का प्रकाशन हो रहा है.

(लेखिका वर्ष 2007 से 2012 तक भारत की राष्ट्रपति रही थीं)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें