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Independence Day 2023: अपनी ही हुकूमत के खिलाफ सूबेदार बख्त खां ने किया था विद्रोह, बरेली को कराया आजाद

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सूबेदार बख्त खां के नेतृत्व में तोपखाना लाइन में 18वीं और 68वीं देशज रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया. सुबह 11 बजे कप्तान ब्राउन का मकान जला दिया. सैन्य क्षेत्र में विद्रोह सफल होने की सूचना शहर में फैलते ही जगह-जगह अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए. शाम तक बरेली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो चुका था.

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Bareilly News: देश में 15 अगस्त के मौके पर आजादी के शूरवीरों को याद करते हुए नमन किया जा रहा है. स्वतंत्रता संग्राम में अनगित योद्धाओं ने अपने प्राणों का बलि​दान किया, जिनसे जुड़ी यादें आज भी उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में मौजूद हैं. आजादी की लड़ाई में बरेली का भी अहम योगदान है.

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बरेली के उलमाओं ने भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. बरेली सैन्य क्षेत्र (कैंट) से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अंग्रेज फौज के सूबेदार बख्त खां ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला भड़कने के दौरान विद्रोह कर सबको चौंका दिया था. इसके बाद बरेली से लेकर देश भर में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ क्रांति शुरू हो गई.

सूबेदार बख्त खां भी क्रांतिकारियों में शामिल हो गए. उन्होंने ब्रिटिश फौज पर हमला बोला था. बरेली सैन्य क्षेत्र में 31 मई को 11 बजे अंग्रेज सिपाही चर्च में प्रार्थना कर रहे थे. इसी दौरान तोपखाना लाइन में सूबेदार बख्त खां के नेतृत्व में 18वीं और 68वीं देशज रेजिमेंट ने विद्रोह कर दिया. सुबह 11 बजे कप्तान ब्राउन का मकान जला दिया. सैन्य क्षेत्र में विद्रोह सफल होने की सूचना शहर में फैलते ही जगह-जगह अंग्रेजों पर हमले शुरू हो गए. शाम चार बजे तक बरेली पर क्रांतिकारियों का कब्जा हो चुका था.

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इसके बाद बुरी तरह हारे फिरंगी नैनीताल की तरफ भागने लगे. क्रांतिकारियों ने 16 अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतार दिया गया. इनमें जिला जज राबर्टसन, कप्तान ब्राउन, सिविल सर्जन, बरेली कॉलेज के प्रधानाचार्य डॉ. सी बक, सेशन जज रेक्स, जेलर हैंस ब्रो आदि शामिल थे. यह क्रांति यहीं नहीं रुकी, इसके बाद भी अंग्रेजों को चुनौती दी जाती रही.

रुहेला पठान नजीबुदौला के भाई, अब्दुल्ला खान के थे बेटे

ब्रिटिश फौज के सूबेदार बख्त खां का जन्म बिजनौर के नजीबाबाद में हुआ था. वह रुहेला पठान नजीबुदौला के भाई अब्दुल्ला खान के बेटे थे. 1817 के आसपास वे ईस्ट इंडिया कंपनी में भर्ती हुए. पहले अफगान युद्ध में वे बहुत ही बहादुरी के साथ लड़े. उनकी बहादुरी देख उन्हें सूबेदार बना दिया गया. मगर, बाद में उन्होंने अपने ही देश के खिलाफ लड़ाई में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ही विद्रोह कर दिया.

सरफराज अली के कहने पर आजादी की लड़ाई में कूदे

ब्रिटिश हुकूमत के सूबेदार बख्त खां ने 40 वर्षों तक बंगाल में घुड़सवारी की. पहले एंग्लो-अफगान युद्ध को देखकर जनरल बख्त खान ने काफी अनुभव लिया. इसके बाद दूसरे युद्ध में हिस्सा लिया. मेरठ में सैनिक विद्रोह के समय वे बरेली में तैनात थे. अपने आध्यात्मिक गुरु सरफराज अली के कहने पर वह आजादी की लड़ाई में शामिल हुए. मई माह समाप्त होते–होते बख्त खां एक क्रांतिकारी बन गए. बरेली में शुरुआती अव्यवस्था, लूटमार के बाद बख्त खां को क्रांतिकारियों का नेता घोषित किया गया.उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को काफी नुकसान पहुंचाया.

दिल्ली पर कर लिया था कब्जा

ब्रिटिश हुकूमत से विद्रोह करने के बाद एक जुलाई को बख्त खां अपनी फौज और चार हजार मुस्लिम लड़ाकों के साथ दिल्ली पंहुच गए.इस दौरान बहादुर शाह जफर को देश का सम्राट घोषित किया गया. सम्राट के बड़े बेटे मिर्जा मुगल को मुख्य जनरल का खिताब दिया गया. सम्राट के सबसे बड़े बेटे मिर्जा मुगल को मिर्जा जहीरुद्दीन भी कहा जाता है, उन्हें मुख्य जनरल का खिताब दिया गया था. लेकिन, इस राजकुमार के पास कोई सैन्य अनुभव नहीं था. यही वह समय था जब सूबेदार बख्त खां अपनी सेनाओं के साथ 1 जुलाई 1857 को दिल्ली पहुंचे. उनके आगमन के साथ, नेतृत्व की स्थिति में सुधार हुआ.

कमांडर-इन-चीफ का मिला जिम्मा

जंग ए आजादी में कूदने वाले सूबेदार बख्त खां का जन्म 1797 में रुहेलखंड के बिजनौर में हुआ था. उनका इंतकाल (मृत्यु) 1862 में बुनर, पख्तुनख्वा, पाकिस्तान में हुआ. वह सबसे पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में सूबेदार बने थे. सम्राट बहादुर शाह जफर को सूबेदार बख्त खां की श्रेष्ठ क्षमताओं को जल्द ही स्पष्ट हो गया और उन्होंने इस शूरवीर को वास्तविक अधिकार और साहेब-ए-आलम बहादुर या लॉर्ड गवर्नर जनरल का खिताब दिया.

बरेली कॉलेज का 1857 की क्रांति में मुख्य योगदान

जंग-ए-आजादी की लड़ाई में बरेली की मुख्य भूमिका थी. रुहेला सरदारों की फौज के साथ ही क्रांतिकारी छात्रों ने भी अंग्रेजी हुकूमत से मुकाबला किया था. बरेली कॉलेज, बरेली तक जंग-ए-आजादी की लड़ाई की चिंगारी पहुंच गई. इसके बाद क्रांतिकारी छात्रों ने कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. कारलोस बक को भी मौत के घाट उतार दिया था. बरेली में स्थित बरेली कॉलेज की स्थापना वर्ष 1837 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान हुई थी. लेकिन, जब अंग्रेजों के खिलाफ 1857 में क्रांति का बिगुल बजा तो रुहेलखंड में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की बागडोर रुहेला सरदार खान बहादुर खान ने संभाल ली.

रुहेला सरदार के नेतृत्व में क्रांतिकारी अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे. बरेली कॉलेज के शिक्षक मौलवी महमूद हसन और फारसी शिक्षक कुतुब शाह समेत तमाम राष्ट्रवादी छात्र आंदोलन में कूद गए. बरेली कॉलेज में हुकूमत के खिलाफ तमाम बैठक होती थी. इसका कॉलेज के प्रिंसिपल ने विरोध किया.इससे खफा क्रांतिकारियों ने कॉलेज के प्रिंसपल डॉ.कारलोस बक को मौत के घाट उतार दिया. कालेज के क्रांतकारी छात्रों ने ब्रिटिश हुकूमत के दौरान छात्र हित में सबसे बड़ी 110 दिन की हड़ताल की. इस दौरान छात्रों की पढ़ाई प्रभावित न हो, इसके लिए सीनियर छात्रों ने जूनियर्स को जुबली पार्क में पढ़ाया, लेकिन, जंग-ए -आजादी की लड़ाई को जारी रखा.

रिपोर्ट: मुहम्मद साजिद, बरेली

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