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Exclusive: फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़कर मैं खूब रोयी थी… जानिये रितिका सिंह ने ऐसा क्यों कहा

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इन कार फिल्म की हिरोइन रितिका सिंह ने कहा कि फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़कर मैं बहुत ज्यादा शॉक्ड थी. फिल्म की कहानी काफी रियल है . स्क्रिप्ट की जो भाषा पहले थी, वो काफी रॉ थी. स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मैं खुद काफी बार रोयी हूं. उसी वक्त मैंने समझ लिया कि मुझे ये करना है.

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इस शुक्रवार सिनेमाघरों में इन कार फिल्म दस्तक देने जा रही है. यह किडनैपिंग ड्रामा फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है. अभिनेत्री रितिका सिंह इस फिल्म का चेहरा है. रोंगटे खड़े कर देनेवाली इस फिल्म को रितिका शारीरिक के साथ-साथ मानसिक तौर पर भी बेहद चुनौतीपूर्ण करार देती हैं. उर्मिला कोरी से हुई बातचीत…

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फिल्म का ट्रेलर काफी हार्ड हिटिंग है, स्क्रिप्ट को पढ़कर आपका क्या रिएक्शन था?

फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़कर मैं बहुत ज्यादा शॉक्ड थी. फिल्म की कहानी काफी रियल है . स्क्रिप्ट की जो भाषा पहले थी, वो काफी रॉ थी. उसको हमने शूटिंग के दौरान काफी रिफाइन किया. जो भी इस लड़की के साथ इस फिल्म में हो रहा है. वो बहुत ही रॉ था. स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मैं खुद काफी बार रोयी हूं. उसी वक्त मैंने समझ लिया कि मुझे ये करना है. काफी अलग अंकंवेंशनल फिल्म है. आमतौर पर लोग ऐसी फिल्में देखना नहीं भी पसंद करते हैं, लेकिन आप सच से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं. यह बहुत ही महत्वपूर्ण फिल्म है. यह सभी को देखनी चाहिए. यही वजह थी कि मैंने इस फिल्म को किया.

इस फिल्म की शूटिंग शारीरिक तौर पर कितनी मुश्किल थी?

पूरी फिल्म हमने कार में शूट की है और मैं बीच में बैठी हूं. रियल लाइफ में मुझे थोड़ा कार सिकनेस होता है. कार में पीछे बैठना मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है. मैं हमेशा लोकल ट्रेन और ऑटो में जाना पसंद करती हूं. अगर कार में बैठती भी हूं, तो आगे बैठती हूं. इसमें मैं पीछे कई लोगों के बीच फंसी हूं, जिसमे ये लोग लगातार मुझे गालियां दे रहे हैं. मेरे बारे में गन्दी-गन्दी बातें बोल रहे हैं. बहुत अपमान कर रहे हैं. हम पूरे समय कार में ही थे. कार में बैठना इतने समय रोज वो बहुत ही मुश्किल था. ऊपर से कार के ऊपर दाएं हो या बाएं कैमरे ही कैमरे. एक समय के बाद वो सब मैनेज करना बहुत मुश्किल था. मैंने बॉडी डबल का इस्तेमाल नहीं किया है.

क्या मानसिक तौर पर भी फिल्म ने आपको परेशान किया है?

मैं हमेशा ही ट्रेनिंग करती हूं, चाहे मेरी फिल्म का शूटिंग शेड्यूल कितना भी हैक्टिक क्यों ना हो. ट्रेनिंग और एक्सरसाइजिंग मेरी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है. इस फिल्म की भी शुरुआत में मैं सेट पर हर दिन शूटिंग के बाद शाम में ट्रेनिंग करती थी. चार-पांच दिन आराम से मेरा यही शेड्यूल था कि एक्सरसाइज किया खाया पिया और सोयी, लेकिन एक हफ्ते बाद से मेरी एनर्जी एकदम खत्म सी होने लगी. मेरे अंदर ताकत बचती ही नहीं थी. शारीरिक नहीं मैं मानसिक तौर पर इतना थक जाती थी कि एनर्जी बचती ही नहीं थी कि मैं सेट से वापस आकर एक्सरसाइज करुं. मैं उसके बाद शूटिंग से आकर नेक्स्ट डे की सीन की लाइन्स पढ़ती थी और थोड़ा हल्का फुल्का खाकर बस सो जाती थी. मुझे नार्मल होने में चार से पांच महीने लगे हैं.

क्या निजी जिंदगी में क्या कभी आप छेड़खानी का शिकार हुई हैं?

मेरे साथ काफी सीरियस लेवल पर ये सब हुआ है, सच कहूं तो उसके बारे में मुझे अभी नहीं बल्कि कभी और बात करनी है. जब मैं तैयार होउंगी. वैसे रोजमर्रा की बेसिस पर तो ये होता ही है. लड़के कुछ बोल देते हैं. छेड़ देते हैं. कुछ हाथ लगाके जाएंगे. ये हर लड़की के साथ होता है. मुझे ये बोलने में भी शर्म आती है. ये इतनी कॉमन चीज है कि ये लड़की होने का एक हिस्सा बन गया है, जो शर्मनाक है.

खुद को इस तरह के हालातों से लड़ने के लिए ही क्या आपने मार्शल आर्ट सीखा है ?

नहीं, मैं तीन साल की उम्र से मार्शल आर्ट सीख रही हूं. मेरे पिता मेरे गुरु हैं. उनकी अकादमी है. उनको देखते-देखते मैंने और मेरे भाई ने ऐसे ही शुरू किया. लड़की हूं तो सेल्फ डिफेंस सीखना चाहिए. ये सब सोचकर मैंने ऐसे ही शुरू किया था, लेकिन यह आगे जाकर मेरी जिंदगी में काम बहुत आया है. ये जरूर कहूंगी.

फिल्म की शूटिंग कहां और कितने दिनों में हुई है?

हमलोगों ने पानीपत में पूरी फिल्म को शूट किया है. हमने नॉन स्टॉप इस फिल्म को शूट किया है. 35 दिनों में हमने इस फिल्म की शूटिंग पूरी कर ली. मुश्किल से दो दिनों का इस दौरान हमने ब्रेक लिया होगा. पूरी फिल्म हमने आर्डर में शूट हुई है. पहले सीन की शूटिंग पहले और आखिरी शूट की शूटिंग एकदम आखिर में, क्यूंकि ये फिल्म एक दिन की कहानी है. लोकेशन में कोई बदलाव नहीं है. आउटडोर ही है. निर्देशक चाहते थे कि किसी भी तरह एकरूपता ना टूटे इमोशन से लेकर से लेकर लुक्स किसी में भी कुछ फर्क ना आए. यही वजह है कि फिल्म स्टार्ट टू फिनिश में शूट हुई है.

इस फिल्म के निर्देशक और कलाकार ज्यादातर नए हैं, फिल्म का परिचित चेहरा आप हो क्या यह पहलू आपको प्रेशर दे रहा है?

थोड़ा तो प्रेशर आता है, लेकिन इतना प्रेशर लेना सभी को चाहिए. एक वक्त पर मैं भी नवोदित थी. सुधा मैम और माधवान सर ने मुझे भी मेरी पहली फिल्म में ऐसा ही प्रेशर लिया था. मैं हमेशा ही युवा और नए निर्देशकों के साथ काम करना चाहती हूं, क्यूंकि वह एक नयी सोच होती है और सालों का टैलेंट भरा होता है पता नहीं पहले वाले प्रोजेक्ट में क्या नया और खास ले आए.

आप आउटसाइडर हैं, आपकी जर्नी में क्या चुनौतियां रही?

शुरुआत से ही चुनौतियां थी. छोटी-छोटी बात में भी. शुरुआत में तो मुझे समझता ही नहीं था कि बात कैसे करुं या किसी को अप्रोच कैसे करुं. जैसे साला खड़ूस जब रिलीज हुई थी, तो मुझे बहुत सारे अवार्ड मिले थे. नॉमिनेशन तो हर अवार्ड में मिला था. मैं सब जगह जाती थी. वहां पर जाकर मुझे समझता नहीं था कि लोगों से क्या बात करुं. किससे बात करुं. उसके बाद किसको मैनेजर बनाऊं. किसको पीआर..उसके बाद सही रोल को पाने की चुनौती थी.

क्या इंडस्ट्री में किसी की गाइडेंस आप लेती हैं?

स्क्रिप्ट पढ़ने के बाद आपका 70 प्रतिशत हां या ना कहने का मन बन जाता है, बाकी के तीस प्रतिशत के लिए मैं माधवान सर से पूछ लेती हूं. मेरे एक एक्टर फ्रेंड हैं अशोक उनसे भी मैं गाइडेन्स लेती हूं. आखिरकार मैं सब मिलाकर अपने दिल की सुनती हूं.

साला खड़ूस के बाद आपने साउथ सिनेमा में ही लाम किया है, हिंदी फिल्मों से दूरी की कोई खास वजह?

मेरे लिए भाषा प्रमुखता नहीं है, बल्कि कंटेंट हैं. जिसमे अपने मौजूदगी से मैं कुछ जोड़ पाऊं. मैं उस तरह की फिल्में करती हूं. हिंदी से ऐसा कुछ खास ऑफर नहीं हुआ

आनेवाले प्रोजेक्ट्स क्या हैं?

एक तेलेगु वेब सीरीज कर रही हूं और कुछ फिल्में भी हैं साउथ की.

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