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कारों के लिए पावरट्रेन क्यों है जरूरी, कब हुई थी इसकी शुरुआत

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मुख्यरूप से गाड़ियों के पावरट्रेन कई प्रकार के होते हैं. इन्हें विभिन्न नामों से पुकारा जाता है. इस पावरट्रेन पर ही आपकी कार या फिर मोटरसाइकिल का परफॉर्मेंस निर्भर करता है. इसी के जरिए गाड़ी स्पीड भी पकड़ती है, आपकी गाड़ी की लाइटों को बिजली मिलती है और इंधन की खपत भी होती है.

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नई दिल्ली : गाड़ियां हमारी यात्रा को आसान और आरामदायक बनाती हैं. गाड़ियों के निर्माण में कई प्रकार के कम्पोनेंट या उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हीं कम्पोनेंट्स अथवा उपकरणों में पावरट्रेन भी शामिल है. गाड़ियों में अगर यह पावरट्रेन न हो, तो वाहन चल ही नहीं पाएंगे. वाहनों को चलाने के लिए पावरट्रेन का होना बेहद जरूरी है. यही एक ऐसा कम्पोनेंट है, जो आपकी कार और गाड़ियों के परफॉर्मेंस को निर्धारित करता है. आजकल भारत के बाजार में पेट्रोल-डीजल और सीएनजी के अलावा हाईब्रिड कारें भी आने लगी हैं. इनमें भी अलग-अलग प्रकार के पावरट्रेन का इस्तेमाल किया जाता है. आइए, जानते हैं कि पावरट्रेन कितने प्रकार का होता है? इसका इस्तेमाल कहां किया जाता है और इसकी शुरुआत कब हुई थी.

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पावरट्रेन क्या है?

गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले इंजन को ही पावरट्रेन भी कहा जाता है. गाड़ी में अगर इंजन न हो, तो वह चल ही नहीं पाएगी. जैसे आदमी या पशुओं के शरीर में दिल, लीवर और किडनी होता है, उसी प्रकार गाड़ियों में पावरट्रेन या इंजन होता है. इस पावरट्रेन पर ही आपकी कार या फिर मोटरसाइकिल का परफॉर्मेंस निर्भर करता है. इसी के जरिए गाड़ी स्पीड भी पकड़ती है, आपकी गाड़ी की लाइटों को बिजली मिलती है और इंधन की खपत भी होती है. अगर यह किसी भी गाड़ी में न हो, तो फिर उसका कोई औचित्य और अस्तित्व ही नहीं रह जाता.

पावरट्रेन के प्रकार

मुख्यरूप से गाड़ियों के पावरट्रेन या इंजन कई प्रकार के होते हैं. इन्हें विभिन्न नामों से पुकारा जाता है. इनमें इंटरनल पेट्रोल कंबशन इंजन, इंटरनल डीजल कंबशन इंजन, कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) इंजन, लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस (एलीपीजी) इंजन, माइल्ड हाइब्रिड इंजन, स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इंजन, बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन (बीईवी) इंजन और फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन (एफसीईवी) इंजन शामिल हैं.

इंटरनल पेट्रोल कंबशन इंजन : इंटरनल पेट्रोल कंबशन इंजन या पेट्रोल इंजन की शुरुआत 1876 में जर्मनी में हुई थी. पेट्रोल इंजन में स्पार्क प्लग का इस्तेमाल होता है, जिससे ईंधन जलता है और इंजन पावर जेनरेट करता है. भारत में उपलब्ध गाड़ियों में बीएस6 फेज-II मानकों वाले इंजन का इस्तेमाल होता है. इसमें गाड़ियों से कम मात्रा में उत्सर्जन होता है, जिससे प्रदूषण कम होता है. टाटा पंच, वेन्यू और सोनेट जैसी गाड़ियों में इस इंजन का इस्तेमाल होता है.

इंटरनल डीजल कंबशन इंजन : इंटरनल डीजल कंबशन इंजन या डीजल इंजन के प्रोटोटाइप को 1893 में तैयार किया गया था. गाड़ियों में इसका इस्तेमाल 1897 से शुरू हुआ. डीजल इंजन में ईंधन में स्पार्क प्लग की जरूरत नहीं होती. इसमें ईंधन को सीधे सिलेंडर में स्प्रे किया जाता है. एक लीटर डीजल एक लीटर पेट्रोल की तुलना में अधिक ऊर्जा पैदा करता है.

सीएनजी इंजन : सीएनजी तकनीक का प्रयोग मौजूदा समय में पेट्रोल इंजन वाले वाहनों के साथ किया जाता है. इसके लिए वाहन में एक किट लगाई जाती है. साल 1901 में पहली बार सीएनजी इंजन का इस्तेमाल कार में किया गया था. इसके गैस सिलेंडर को कार के बूट स्पेस में रखा जाता है. पेट्रोल की ऊंची कीमतों और पर्यावरण संबंधी चिंताओं के चलते सीएनजी का प्रयोग निजी कार, ऑटो रिक्शा, पिकअप ट्रक, ट्रांजिट और स्कूल बसों में किया जा रहा है.

एलपीजी इंजन : एलपीजी इंजन वाली कार काफी हद तक सीएनजी कार की जैसी ही होती हैं. इनमें ईंधन के रूप में रसोई वाली एलपीजी का इस्तेमाल किया जाता है. मारुति सुजुकी ने भारत की पहली एलपीजी इंजन वाली गाड़ी 2006 में बनाई थी. सेफ्टी के लिहाज से गाड़ियों में एलपीजी रेट्रो फिटिंग का इस्तेमाल सही नहीं है. यही वजह है कि फिलहाल, भारत में कोई भी एलपीजी इंजन वाली गाड़ी बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है.

माइल्ड हाइब्रिड इंजन : माइल्ड हाइब्रिड वाहनों में आईसीई इंजन के साथ-साथ एक इलेक्ट्रिक मोटर होती है. इसकी शुरुआत 1902 में की गई थी. इस तरह के वाहन की इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी में इतनी पावर यानी क्षमता नहीं होती, जो वह स्वयं वाहन को चला सके. यह तकनीक कार के इंजन को केवल सहायता प्रदान करती है, जिससे उस पर अधिक लोड नहीं बनता है.

स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड इंजन : स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड वाहनों में भी एक आईसीई इंजन और इलेक्ट्रिक मोटर होती है. हालांकि, इस तकनीक में ऐसी इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी पैक का इस्तेमाल होता है, जो वाहन को इंजन से स्वतंत्र रखकर भी चला सकती है. इस तरह की कारों में माइल्ड और स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड दोनों के लिए मोड्स दिए जाते हैं. स्ट्रॉन्ग हाइब्रिड में इलेक्ट्रिक मोटर कार को धीमी गति में ही पावर दे सकती है. तेज गति पर कार का इंजन स्वत: शुरू हो जाता है.

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बैटरी इलेक्ट्रिक वाहन : भारत में धीरे-धीरे बैटरी संचालित इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसमें इलेक्ट्रिक मोटर और बैटरी लगी होती है. गाड़ी में लगी बैटरी से इलेक्ट्रिक मोटर को पावर मिलता है. 1993 के दौरान भारत में पहली इलेक्ट्रिक गाड़ी ‘लवबर्ड’ सड़कों पर चली थी. इन बैटरी को चार्जिंग स्टेशन या घर पर आसानी से चार्ज किया जा सकता है.

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फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन : फ्यूल सेल इलेक्ट्रिक वाहन में हाइड्रोजन का इस्तेमाल फ्यूल के रूप में होता है. अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने के लिए भी इसी फ्यूल का इस्‍तेमाल किया जाता है. वाहनों में इसका इस्तेमाल 2014 में शरू हुआ. इलेक्ट्रिक वाहनों की तरह इनमें भी बैटरी और इलेक्ट्रिक मोटर लगी होती है. हालांकि, इन्हे चार्ज नहीं किया जाता. ये हाइड्रोजन फ्यूल की मदद से पावर जनरेट करती हैं और चलती हैं.

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