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Durga Puja: टीबी-हैजा से बचने के लिए बड़कागांव में शुरू हुई थी दुर्गा पूजा, मां ने खुद कही थी ये बात

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बड़कागांव में 1934 ई. में दुर्गा पूजा शुरू हुई थी, अंग्रेज कमिश्नर भी यहां पूजा करने आते थे. यहां टीबी-हैजा से बचने के लिए मां दुर्गा की पूजा शुरू हुई थी. प्रखंड में 1933-34 में हैजा बीमारी के कारण से हर गांव के टोले- मोहल्ले में मरने वालों की संख्या बढ़ गयी थी. तब मां दुर्गा सपने में प्रकट हुईं थीं.

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Durga Puja: हजारीबाग जिला के बड़कागांव धार्मिक, ऐतिहासिक व प्राकृतिक दृष्टिकोण से विशिष्ट पहचान रखता है. बड़कागांव दुर्गा पूजा व दशहरा मेला के लिए कर्णपुरा क्षेत्र में प्रसिद्ध है. यहां आजादी से पहले से दुर्गा पूजा व दशहरा मेला आयोजित होता आ रहा है. पूर्व मुखिया बालकृष्ण महतो के अनुसार यहां 1934 ई. में दुर्गा पूजा शुरू हुई थी. तब यहां दुर्गा मां का मंदिर खपरैल का था. इस मंदिर में अंग्रेज कमिश्नर डाल्टन पूजा पाठ करने आते थे. उस समय डाल्टन 50 रुपये का चढ़ावा चढ़ाया करते थे. पूर्व मुखिया बालकृष्ण महतो के अनुसार बड़कागांव प्रखंड में 1933-34 में हैजा बीमारी फैल गया था. जिस कारण से हर गांव के टोले- मोहल्ले में बीमारी से मरने वालों की संख्या बढ़ गयी थी. बड़कागांव के केवल महतो की मृत्यु हैजा के कारण हो गयी थी. जिसके बाद नेतलाल महतो को मां दुर्गा सपने में प्रकट हुईं. सपने में मां दुर्गा ने कहा कि दुर्गा पूजा करने पर हैजा खत्म हो जायेगा. तत्पश्चात सुबह उठकर उन्होंने सभी ग्रामीणों को जानकारी दी. इसी तरह कुंजल रविदास को भी सपने जानकारी दी कि अगर यहां 36 देवियों की पूजा की जायेगी, तो टीबी और हैजा बीमारी नहीं होगी. यह बात कुंजल रविदास ने बड़कागांव के मालिक नेतलाल महतो को जानकारी दी. दोनों का सपना एक जैसा था और उसे दैवीय सपना मानकर 1934 में नेतलाल महतो, किशुन साव, बालेश्वर महतो, कुंजल रविदास बजनिया रामटहल रविदास, समेत अन्य ने ग्रामीणों के सहयोग से मिलकर दुर्गा पूजा शुरू की. तब से हर वर्ष यहां दुर्गा पूजा मनाया जा रहा है.

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आजादी से साथ बंद हुई बलि की प्रथा

पूर्व मुखिया बाल कृष्ण महतो के अनुसार तब से यहां हैजा बीमारी किसी को नहीं हुई है. प्रतिवर्ष यहां बलि प्रथा शुरू हो गई. हर वर्ष 450 से अधिक बकरे की बलि दी जाती थी. यहां बलि प्रथा 1946 तक चला. वर्ष 1947 में सारा देश आजादी का जश्न मना रहा था. उसी वर्ष बड़कागांव में फैसला लिया गया कि अब यहां बलि प्रथा भी आजादी के साथ ही बंद कर दी जाये. यह पहल हजारीबाग के सेठ राम प्रसाद अग्रवाल ने किया. बलि प्रथा को बंद कराया. तब से यहां आज तक वैष्णव पूजा किया जाने लगा. हालांकि 1966 में यहां बलि प्रथा शुरू होने वाली थी, लेकिन बचु महतो, जगदीश महतो, एवं पुलिस प्रशासन व जनता के सहयोग से बलि प्रथा पुनः शुरू होने से रोका गया.

1965 में 300 रुपये में होती था दुर्गा पूजा

नेतलाल महतो के बाद यहां छह वर्षों तक धुपन महतो ने आश्विनी दुर्गा पूजा का नेतृत्व किया. इसके बाद पूर्व मुखिया बालकृष्ण महतो को 1965 में आश्विनी दुर्गा पूजा समिति का अध्यक्ष बनाया गया. उस समय मात्र 300 रुपये में दुर्गा पूजा एवं दशहरा मेला का आयोजन किया जाता था. नेतलाल महतो ने 1978 तक अध्यक्ष बनकर दशहरा मेला को सफलता पूर्वक संपन्न कराया. इसके बाद 1978 से 1992 तक तत्कालीन विधायक लोकनाथ महतो अध्यक्ष रहे.

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