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किस्सा नेताजी का: चिल्लूपार सीट पर हरिशंकर तिवारी का नाम मतलब जीत की गारंटी, BJP भी नहीं रोक सकी विजय रथ

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बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद चिल्लूपार विधानसभा सीट पर कमल नहीं खिल सका है. चुनाव में कोई भी चेहरा उतरे, हरिशंकर तिवारी के परिवार से हाई-प्रोफाइल चिल्लूपार सीट छीनने में सफल नहीं हो सका.

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UP Election 2022: उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले राजनीतिक जोड़तोड़ जारी है. रविवार को हरिशंकर तिवारी के परिवार के दिग्गज नेताओं ने सपा का दामन थाम लिया. हरिशंकर तिवारी के बेटे और मौजूदा चिल्लूपार विधायक सपा में शामिल होने वाले सबसे बड़े नाम रहे. हरिशंकर तिवारी और उनके परिवार ने चिल्लूपार विधानसभा सीट आज तक बचाकर रखी है. चिल्लूपार सीट गोरखपुर जिले की कुल नौ सीटों में शामिल है. गोरखपुर सीएम योगी आदित्यनाथ का गृह जिला है. बीजेपी की तमाम कोशिशों के बावजूद चिल्लूपार विधानसभा सीट पर कमल नहीं खिल सका है. चुनाव में कोई भी चेहरा उतरे, हरिशंकर तिवारी के परिवार से हाई-प्रोफाइल चिल्लूपार सीट छीनने में सफल नहीं हुआ.

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आज बात हरिशंकर तिवारी और उनके परिवार की. हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार से सबसे ज्यादा छह बार विधानसभा चुनाव जीतने में सफल हुए हैं. एक दफा राजेश त्रिपाठी ने हरिशंकर तिवारी को विधानसभा चुनाव में हराया था. कभी चिल्लूपार विधानसभा सीट के बारे में कहा जाता था कि यहीं से उत्तर प्रदेश की सियासत करवट भी लेती थी. यहां से चुनाव जीतने वाले हरिशंकर तिवारी की सत्ता पर बराबर पकड़ रही. हरिशंकर तिवारी 1985 से लेकर 2002 तक विधायक रहे. एक तरफ हरिशंकर तिवारी चुनाव जीतते रहे. दूसरी तरफ उन्हें हर सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद भी मिलता चला गया.

हरिशंकर तिवारी की हर सरकार में धमक रही. साल 1998 में कल्याण सिंह सीएम बने. उन्होंने कैबिनेट में हरिशंकर तिवारी को साइंस एंड टेक्नोलॉजी मंत्री बनाया. 2000 में बीजेपी के सीएम राम प्रकाश गुप्ता ने भी हरिशंकर तिवारी को जगह दी. 2001 में राजनाथ सिंह की सरकार में भी हरिशंकर तिवारी मंत्री बने. जब 2002 में मायावती ने यूपी की कमान संभाली तो हरिशंकर तिवारी को अपने मंत्रिमंडल में जगह दी थी. मुलायम सिंह सरकार में हरिशंकर तिवारी को मंत्री बनाया गया. कहने का मतलब है बीजेपी, सपा और बसपा की सरकार रही. हरिशंकर तिवारी को भी कैबिनेट में जगह मिली.

हरिशंकर तिवारी को पूर्वांचल का दिग्गज नेता माना जाता है. चिल्लूपार सीट से हरिशंकर तिवारी को जेल में रहते हुए जीत मिलती थी. हरिशंकर तिवारी पहले बाहुबली रहे जो जेल से ना सिर्फ चुनाव लड़े, जीत भी हासिल की. 2007 में राजेश त्रिपाठी उर्फ श्मशाम घाट वाले बाबा ने बसपा के टिकट पर हरिशंकर तिवारी को हराया. 2012 में दोबारा बसपा की टिकट पर चुनाव जीते. लेकिन, चिल्लूपार सीट पर बसपा का दावा ज्यादा नहीं टिका. 2017 में हरिशंकर तिवारी के छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी ने जीत हासिल की थी. राजेश त्रिपाठी को हराकर विनय शंकर ने पिता की हार का बदला लिया.

2017 के विधानसभा चुनाव में विनय शंकर तिवारी ने 3,359 वोटों के अंतर से चुनाव जीता था. चिल्लूपार में हरिशंकर तिवारी और उनका परिवार काफी मजबूत रहा है. हरिशंकर तिवारी के दो बेटे हैं. बड़े बेटे भीष्म शंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी बसपा से सांसद रहे हैं. हरिशंकर के छोटे बेटे विनय शंकर वर्तमान में चिल्लूपार से विधायक हैं. उनके भांजे गणेश शंकर पांडेय विधान परिषद के सभापति रह चुके हैं. चिल्लूपार विधानसभा बांसगांव संसदीय क्षेत्र में है. इस सीट पर तिवारी परिवार का दबदबा है. 1985 से अब तक दो बार (2002, 2007) में चिल्लूपार सीट तिवारी परिवार के पास नहीं थी.

चिल्लूपार विधानसभा सीट का पूर्वांचल के बाहुबलियों से भी कनेक्शन रहा है. 80 के दशक में गोरखपुर के कई बाहुबलियों की करतूत ने पुलिस से लेकर सरकार तक के सिरदर्द बढ़ाने का काम किया था. इसमें सबसे बड़ा नाम श्रीप्रकाश शुक्ला का था. लेकिन, हरिशंकर तिवारी के आगे सारे नाम बौने थे. 80 के दशक में ही चिल्लूपार विधानसभा सीट से जेल में रहकर चुनाव जीतने की परंपरा शुरू हुई और उसकी शुरुआत हरिशंकर तिवारी ने की. पूर्वांचल में बाहुबल और ब्राह्मणों की राजनीति में एंट्री की धमक राजधानी लखनऊ तक सुनी गई. करीब 15 सालों के बाद हरिशंकर तिवारी ने राजनीति से संन्यास ले लिया. वहीं, चिल्लूपार सीट पर तिवारी परिवार का बोलबाला हमेशा रहा.

गोरखपुर सीएम योगी का गढ़ है ओर चिल्लूपार सीट पर बीजेपी जीत हासिल नहीं कर सकी है. चिल्लूपार के विधायक विनय शंकर तिवारी ने सपा का दामन थाम लिया है. तिवारी परिवार के गढ़ में बीजेपी और योगी आदित्यनाथ को बड़ी चुनौती मिलना तय है. चिल्लूपार सीट पर कई बीजेपी नेताओं के नामों पर कयास लग रहे हैं. अभी तक किसी नाम का औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है. बीजेपी ने पूर्वांचल पर खास फोकस जरूर किया है. कुशीनगर एयरपोर्ट, गोरखपुर एम्स, खाद कारखाना, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का तोहफा देकर बीजेपी ने लोगों को गोलबंद करने की कोशिश जरूर शुरू कर दी है.

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