22.1 C
Ranchi
Thursday, February 6, 2025 | 01:08 pm
22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

हबीब तनवीर की रंगकर्म यात्रा सच की खोज, आमजन की भाषा में कही कहानी

Advertisement

रायपुर में हबीब को याद करना अपने पुरखे को याद करना है. जो दुनिया घूमकर आता है और फिर छत्तीसगढ़ के अनगढ़, अपढ़ लोककलाकारों की रंगमंडली बनाकर दुनिया में छत्तीसगढ़ का डंका बजबाता है. जब नाटकों में एक तरह से पश्चिम की शैली को ही सब कुछ मान लिया गया था.

Audio Book

ऑडियो सुनें

आगरा बाजार, चरण दास चोर, बहादुर कलारिन जैसे नाटकों से रंगकर्म का नया प्रतिमान रचने वाले हबीब तनवीर के जन्म शताब्दी समारोह पर रायपुर में दो दिवसीय रंग हबीब उत्सव का आयोजन किया गया. जिसमें देश के विभिन्न राज्यों से आये वक्ताओं व रंगकर्मियों ने हबीब के रंगकर्म व उनके जीवन दर्शन पर प्रकाश डाला.

- Advertisement -

हबीब ने दुनिया को बताया, छत्तीसगढ़ की भी अपनी नाचा शैली है

रायपुर में हबीब को याद करना अपने पुरखे को याद करना है. जो दुनिया घूमकर आता है और फिर छत्तीसगढ़ के अनगढ़, अपढ़ लोककलाकारों की रंगमंडली बनाकर दुनिया में छत्तीसगढ़ का डंका बजबाता है. जब नाटकों में एक तरह से पश्चिम की शैली को ही सब कुछ मान लिया गया था, तब हबीब ने दुनिया को बताया कि छत्तीसगढ़ की भी अपनी नाचा शैली है और दुनिया ने माना भी. जो नाटक अंग्रेजी में या खड़ी बोली में खेले जाते थे, उनको चिढ़ाते हुए हबीब ने छत्तीसगढ़ी में प्रस्तुत किया. जिन लोगों का आग्रह था कि नाटक की एक परिभाषा होती है, उसे हबीब ने चुनौती दी. हबीब ने न सिर्फ लोकरंग को खेला बल्कि उसे स्थापित किया. इन्ही सब बातों के साथ हबीब को याद करते हुए कला अकादमा छत्तीसगढ़ और रजा फाउण्डेशन के सहयोग से रंग हबीब का दो दिवसीय आयोजन संपन्न हुआ.

हबीब तनवीर की रंगकर्म यात्रा सच की खोज थी

हबीब तनवीर की रंगकर्म यात्रा सच की खोज थी. एक तरह से वह भारत जागो की यात्रा पर थे और उन्होंने नये रंगमंच के माध्यम से स्थापित किया कि हमारी भाषा, बोली में भी सब कुछ बखान करने की क्षमता है. यह बात हबीब रंग उत्सव के आखिरी दिन के पहले सत्र भारत की खोज वाया हबीब में मद्रास से पहुंचे संस्कृति समीक्षक सदानंद मेनन ने कही. उन्होंने कहा कि हबीब को एक देश के नक्शे पर सीमित नहीं किया जा सकता वह विश्व भर के हैं और उनकी समझ भी वैश्विक थी. उन्होंने हर तरह की संकीर्णता को नकारा था.

दो टूक बात कहने में माहिर थे हबीब

इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ना हबीब के जीवन में प्रगतिशीलता की धार का पैनापन होना था. उन्होंने विश्वरंगमंच को छत्तीसगढ़ी बोली में उतारकर यह सिद्ध किया कि संभ्रांत लोग जो मानते हैं बस उतना नहीं है, बहुत कुछ लोक में है. इसी सत्र में भारत रत्न भार्गव ने हबीब के रंगकर्म से परिचित कराते हुए उनके नाटकों का उल्लेख करते हुए कहा कि वह दो टूक बात कहने में माहिर थे. रंगकर्म उनके लिए जीवन था और नित नये प्रयोग करना उनकी आदत थी. वह बने बनाये ढर्रे पर नहीं चलने वालों में थे.

Also Read: Habib Tanvir 100th Birth Anniversary: हबीब तनवीर के नाटक ‘चरणदास चोर’ पर फिल्म बनाएंगे निर्माता सुनील वाधवा

जब तक हम नकल से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक भारतीयता का असली रंगमंच नहीं होगा

प्रोफेसर अमितेश कुमार ने कहा कि हबीब के नाटकों में भारतीय लोकरंग के दर्शन होते हैं. वह नाटक की परिभाषा पर सवाल उठाते हैं और कहते हैं कि हमें अपनी परंपरा और अपने विषय पर नाटक करने होंगे. हबीब कहते थे कि जब तक हम नकल से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक भारतीयता का असली रंगमंच नहीं होगा. वह आधुनिकता को हास्य व व्यंग्य से तोड़ते हैं. अपने देसीपन से संभ्रांतपन का माखौल उड़ाते हैं. उनके नाटकों में कारीगर, किसान, मजदूर, छात्र सभी की उपस्थिति रहती है. वह कहते हैं हमारी सिर्फ ब्राम्हणवादी संस्कृति नहीं है बल्कि यह शूद्रों, दलितों, आदिवासियों की भी संस्कृति है.

हबीब का रंगमंच व्याकरण में नहीं बंधा था, वह आमजन की भाषा में था

हबीब की कला विषय पर अपनी बात रखते हुए महावीर प्रसाद अग्रवाल ने हबीब के साथ जुड़े किस्सों को याद करते हुए आंखों देखा हाल जब सुनाया तो स्रोता मंत्रमुग्ध हो गये. देवेन्द्र राज अंकुर ने हबीब के नाटकों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका रंगमंच इसलिए असरदार था कि वह व्याकरण में नहीं बंधा था, वह आमजन की भाषा में था और नाटकों के पात्र भी आमजन ही थे. हबीब ने जो भारतीय रंगमंच को दिया वह ऐतिहासिक है. इसी क्रम में रंगकर्मी परवेज अख्तर व संगीतज्ञ अंजना पुरी ने अपनी बात रखी.

हबीब के सारे नाटकों में मूल्यों की पड़ताल दिखाई देती है

हबीब के जीवन दर्शन पर बात करते हुए ओम थानवी ने कहा कि हबीब में बचपन से ही समाजवादी मूल्य विकसित होने शुरू होते हैं. इप्टा से जुड़ने के बाद वह और परिष्कृत होते हैं. थानवी कहते हैं कि हबीब के सारे नाटकों में मूल्यों की पड़ताल दिखाई देती है. इसी सत्र में उदयन वाजपेयी और अशीष पाठक ने अपनी बात रखी.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें