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फिल्म गणपत ए हीरो इज बोर्न के निर्देशक विकास बहल ने कहा, हमेशा ही अलग -अलग जॉनर एक्सप्लोर करने मेरी कोशिश रही है. क्वीन अलग थी. उससे सुपर ३० अलग थी. कहानी के बीच में किरदारों की जर्नी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है.

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फिल्म गणपत ए हीरो इज बोर्न आज शुक्रवार सिनेमाघरों में रिलीज़ हो चुकी है. टाइगर श्रॉफ़ ,कृति और अमिताभ बच्चन स्टारर यह फ़िल्म साइंस फिक्शन फ़िल्म है. निर्देशक विकास बहल इस फ़िल्म के लेखक और निर्देशक हैं. यह पहला मौक़ा है ,जब वे किसी साइंस फिक्शन फ़िल्म से जुड़े हैं. इस फ़िल्म की मेकिंग और उससे जुड़ी चुनौतियों पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत.

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फ़िल्म को रिलीज़ हो गयी है ,कैसी फीलिंग है ?

उत्साह और नर्वस का अच्छा फाइट चल रहा है, क्योंकि फिल्म को बनाने में बहुत मेहनत लगा है. फिल्म को कोविड से पहले शुरू किया था,फिर पहला कोविडआया फिर बंद हुआ. फिर दूसरा कोविड आया. फिर बंद हुआ. अब जाकर फिल्म पूरी हुई है ताकि आप लोग को दिखा सकूं.

आप ज़्यादातर यथार्थवादी सिनेमा बनाते आये हैं , इस साइंस फिक्शन फिल्म का ख्याल कैसे आया ?

हमेशा ही अलग -अलग जॉनर एक्सप्लोर करने मेरी कोशिश रही है. क्वीन अलग थी. उससे सुपर ३० अलग थी. कहानी के बीच में किरदारों की जर्नी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है. इसमें भी जो किरदार की जर्नी है फिर चाहे वह टाइगर का हो या कृति का हो या फिर पिता और बेटे की. किरदार की जर्नी रहती है और नयी दुनिया में वो होती है. मुझे लगता है कि जब भी कोई आपदा आती है, तो अमीर और अमीर हो जाता है और गरीब और गरीब हो जाता है. इसी के बीच में ये कहानी स्थापित है. इसी के बीच में गुड्डू यानी टाइगर श्रॉफ का किरदार है. जिसकी यह जर्नी है. जब मैं ये कहानी लख रहा था , तो वो छोटी सी कहानी थी. लिखते – लिखते बनते – बनते दुनिया बड़ी हो गयी. इस कहानी को लिखने में मुझे दो से ढाई साल का वक़्त गया. निर्माता जैकी और मैं जब साथ में बनाने लगे तो हमारा विजन बढ़ता गया और पिक्चर अपने आप और बड़ी होती चली गयी.

क्या आपकी कोशिश यह हमेशा होती है कि फिल्म से एक मेसेज भी जाए?

मुझे लगता है कि फिल्म देखते हुए मजा आना चाहिए क्योंकि लोग थिएटर में फिल्म मज़े के लिए देखने जाते हैं. उसके साथ अगर आप कोई विचार लेकर गए कि ऐसा है. वो अपने लिए हो या फिर दुनिया में जो बदलाव हो रहा हो. उसके लिए हो. कुछ भी हो ,लेकिन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि फिल्म देखो,तो आपको उसको एन्जॉय करो. वो हमेशा मेरे लिए प्राइम रहता है. उसके साथ आप कोई सोच रख पाते हो तो , उससे अच्छी बात और क्या हो सकती है.

इस फिल्म के लिए आपके लिए सबसे बड़ी चुनौती क्या थी ?

हम सब चाहते हैं कि हम ऐसी फिल्म बनाये , जिसमे बहुत ही हैवी वीएफएक्स हो. यह हम सब के लिए बहुत ही सीखने वाला प्रोसेस था क्योंकि इससे पहले ऐसी कोई फिल्म नहीं बनायीं थी. बनाते – बनाते आप समझते हैं कि इसका क्या बजट है और ये कैसे बनता है. दूसरी बात है कि इंटरनेशनल फिल्म हमारे सामने हैं और यह हमको चुनौती भी दे रही हैं. उन फिल्मों का बजट हमसे १०० गुना ज़्यादा होता है, लेकिन फिर भी है ,क्योंकि दर्शक वही है. ये हमारी कोशिश है कि इतने बजट में हम इतना दिखा सकें कि उन्हें मज़ा आया. उनको लगे कि हमलोग भी कोशिश कर रहे हैं , उस मुकाम तक पहुंचने की. मुझे पता है कि उनका मार्केट पूरी दुनिया है , जबकि हमारा सिर्फ भारत है उसमें भी हिंदी बेल्ट इसलिए बजट में फर्क आता है, लेकिन इसके बावजूद हम एक अच्छी क्वालिटी दे सके. इसी में सारी मेहनत थी.

अमिताभ बच्चन को राज़ी करना कितना मुश्किल था ?

गुडबाय के वक़्त ही मैंने उन्हें बताया था कि सर हम ये कोशिश कर रहे हैंय सर को बहुत मज़ा आ रहा थाय उसके बाद हमने उन्हें कहानी सुनायी. उनको कहानी बहुत पसंद आयी. मैंने फिर कहा कि सर ये फ़िल्म आपके बिना नहीं बन सकती है. वो तुरंत राजी हो गए.

कृति क्या फ़िल्म के लिए आपकी ओरिजिनल चॉइस थी ?

हां,कृति ने इस फ़िल्म को हम सभी को सरप्राइज कर दिया है. फ़िल्म में लड़कीवाले किरदार के लिए बहुत एक्शन था. फ़िल्म में उन्होंने नाइन चक चलाया है. इसके लिए उन्होंने तीन महीने की ट्रेनिंग ली है. आमतौर पर एक्टर्स शूटिंग के वक्त नाइन चक लेते हैं ,लेकिन वो सिर्फ़ हाथ में पकड़ते हैं ,उसको मूव नहीं करते हैं क्योंकि उनको चोट ऐज़ सकती है. थोड़ी भी गलती उन्हें चोटिल कर सकती हैं ,लेकिन फ़िल्म में ९० परसेंट पूरा एक्शन कृति ने ख़ुद से किया है. जिसमें बाइक चलाना भी शामिल है. चक सिर्फ वो हैंड फेस पर लग सकता है.

टाइगर श्रॉफ़ का एक्शन कितना दिलचस्प होने वाला है?

इस फ़िल्म से हॉलीवुड के एक्शन डायरेक्टर टिम मैन जुड़े हुए हैं. वैसे टाइगर ने इस फ़िल्म में सिर्फ़ एक्शन ही नहीं इमोशन ,ड्रामा ,कॉमेडी इन सबमें बहुत अच्छा किया है.

वीएफएक्स से क्या इंटरनेशनल टीम भी जुड़ी है ?

हमारी पूरी टीम भारतीय लोकल है. अंधेरी की गलियों में पूरा वीएफएक्स हुआ है. मेरे जो दो सुपर वाइजर हैं,वो भी इंडियन हैं .दोनों बहुत ही टैलेंटेड लोग हैं. पूरी दुनिया के लोग इनसे काम करवाते हैं. हम वीएफएक्स में पिछले एक साल से लगे हुए हैं. ऐसी फिल्में का क्या है कि जब आप लिखना शुरू करते हो प्री प्रोडक्शन में आप डिजाइनिंग शुरू कर देते हो. ऐसा होगा. ऐसी दुनिया दिखेगी. जब पैसे कम होते हैं,तो आपको बहुत सोच समझकर सबकुछ तय करना होता है. आप दस प्रतिशत भी एक्स्ट्रा नहीं कर सकते हो क्योंकि हर एक्स्ट्रा शॉट के लिए आपको एक्स्ट्रा पैसा लगता है, तो प्लानिंग,डिजाइनिंग, थिंकिंग सबकुछ करके रखना पड़ता है..वीएफ़एक्स में छह से आठ महीने में हमारा असली काम हुआ है.

क्या आपके कैरियर की यह अब तक की सबसे महंगी फ़िल्म होगी ?

बजट के हिसाब से मैं कुछ नहीं कह सकता हूं क्योंकि सुपर ३० भी थी. ये कह सकता हूँ कि हमने कम बजट में अच्छा वीएफएक्स दिखाया है.

यह साइंस फिक्शन लार्जर देन लाइफ है क्या क्या आपने किसी निर्देशक को फ़िल्म दिखाकर इन्पुट्स भी लिए थे ?

फ़िल्म तो किसी को नहीं दिखायी. वीएफएक्स से जुड़ा हर ट्यूटोरियल मैंने यूट्यूब पर एक स्टूडेंट्स की तरह देखा ,जो भी फ़िल्में इस दौरान वीएफ़एक्स वाली आयी फिर चाहे वह राजामौली की कोई फ़िल्म हो या किसी और मेकर्स के. मैंने यूट्यूब पर उनके बिहाइंड द सीन ध्यान दिया कि वो ग्रीन परदे में कैसे शूट करते हैं. कहां कैमरा रखते हैं. कहां नहीं वो हर छोटी-छोटी बात का ख़्याल रखते हैंय इस फ़िल्म को मैंने सीखते-सीखते शूट की है.

फ़िल्म की शूटिंग कहां -कहां हुई है ?

ग्रीन परदे पर तो हमने पूरी दुनिया दिखाई है. आधे से अधिक फिल्म स्टूडियो में ग्रीन परदे पर शूट हुई है. लोकेशन की बात करूं,तो फिल्म हमने लंदन, लदाख और मुंबई के बहुत सारे पुराने मिल्स हैं वहां शूट की. ग्रीन परदे पर शूटिंग की दिक्कत थी कि घूमना फिरना बंद हो गया था. एक ही जगह पर शूट करना था.

क्या आपको लगता है कि गणपत की रिलीज़ के लिए सही समय है क्योंकि लार्जर देन लाइफ फ़िल्में दर्शकों की पसंद बनी हुई है ?

मुझे लगता है कि लार्जर देन लाइफ सिनेमा का टाइम हमेशा रहता है. एक्शन,ड्रामा,नाच गाना हम सभी को पसंद है. ये हमारा ड्राइविंग है. इसके साथ दूसरा सिनेमा चलता रहे वो भी अच्छा है ,जो सिनेमा का बीच में लो पीरियड आया, तो उसने हमें बताया. अभी हम सब बहुत मेहनत कर रहे हैं. दर्शकों को इम्प्रेस करने के लिए कि हम ऐसा सिनेमा बना सकते हैं.

इस तरह की बातें सामने आ रही है कि थिएटर अब सिर्फ़ लार्जर देन लाइफ सिनेमा के लिए है और छोटी फ़िल्में ओटीटी के लिए है ?

मुझे ऐसा नहीं लगता है।मुझे लगता है कि छोटी फिल्में भी चलेंगीय उनका भी समय आएगाय. मुझे लगता है कि ओटीटी एक भूत है ,जो धीरे – धीरे उतर जाएगा. सिनेमा का असल अनुभव थिएटर में ही है. जल्द ही छोटी फिल्में भी थिएटर में अच्छा करने वाली है.

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