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75 साल बाद भी खरसावां गाेलीकांड की जांच रिपाेर्ट सार्वजनिक नहीं, जानें क्या था कारण

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खरसावां गोलीकांड के शहीदों को आज यानी एक जनवरी को श्रद्धांजलि दी जाएगी. शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिये मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ मंत्री चंपई सोरेन समेत कई मंत्री, सांसद व विधायक खरसावां पहुंचेंगे.

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खरसावां गाेलीकांड के 75 साल पूरे हाे गये, लेकिन इस गाेलीकांड में शहीद हुए आंदाेलनकारियाें की असली संख्या पर से पर्दा नहीं उठ सका. आजादी के लगभग साढ़े चार माह बाद एक जनवरी, 1948 काे खरसांवा में आदिवासियाें की एक सभा पर ओड़िशा पुलिस के जवानाें ने फायरिंग की थी. जयपाल सिंह ने अपने भाषण में दावा किया था कि एक हजार आदिवासी मारे गये थे. पीके देव ने अपनी पुस्तक में दाे हजार आदिवासियाें के मारे जाने की बात कही थी. उस समय एक अंगरेजी दैनिक ने सरकारी सूत्राें के हवाले से 35 लाेगाें के मारे जाने की पुष्टि की थी. इस गाेलीकांड की जांच का जिम्मा संबलपुर के तत्कालीन आयुक्त काे साैंपा गया था, लेकिन रिपाेर्ट काे सार्वजनिक नहीं किया गया. आजादी के बाद सरायकेला और खरसावां रियासत काे ओड़िशा में शामिल किया जा रहा था.

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इसके विराेध में जयपाल सिंह के आह्वान पर आदिवासी महासभा का आयाेजन किया गया था. उस दिन जयपाल सिंह खरसांवा नहीं पहुंच पाये थे. विलय का विराेध कर रहे आदिवासियाें पर (जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे) ओड़िशा मिलिट्री पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी. झारखंड बनने के बाद कई मुख्यमंत्रियाें (अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, हेमंत साेरेन) ने यह घाेषणा की थी कि फायरिंग में हुए शहीदाें की पहचान कर उनके आश्रिताें काे सरकारी सहायता दी जायेगी. दुर्भाग्य यह है कि काेई भी दस्तावेज उपलब्ध नहीं हाेने से यह काम आगे नहीं बढ़ पाया.

आज भी कुछ ऐसे संकेत जरूर माैजूद हैं, जिनसे शहीदाें या गाेलीकांड के बारे में जानकारी मिल सकती है. ये दस्तावेज कहीं न कहीं पड़े हुए हैं. यह सही है कि इस गाेलीकांड का काेई एफआइआर दर्ज नहीं किया गया था. आराेप यह है कि ट्रकाें में लाद कर शवाें काे जंगलाें में, खरसावां के एक कुआं में फेंक दिया गया था ताकि शहीदाें की असली संख्या का पता नहीं चल सके. उन दिनाें बिहार सरकार, ओड़िशा सरकार, राजेंद्र प्रसाद और तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के बीच जाे पत्राचार हुआ था, उनके अध्ययन से कई नयी जानकारियां मिलती हैं. सबसे अहम जानकारी यह है कि इस गाेलीकांड की जांच का जिम्मा संबलपुर के तत्कालीन आयुक्त काे साैंपा गया था. उन्हाेंने अपनी रिपाेर्ट भी गृहमंत्री सरदार पटेल काे साैंपी थी.

24 जनवरी, 1948 काे सरदार पटेल ने राजेंद्र बाबू काे भेजे गये पत्र में लिखा था- “खरसावां फायरिंग के बाद मैंने संबलपुर के क्षेत्रीय आयुक्त नागेंद्र सिंह काे जांच करने काे कहा था. उसकी रिपाेर्ट आपकाे भेज रहा हूं. रिपाेर्ट में आदिवासी आंदाेलन के बारे में जाे कहा गया है, उसकी ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं. मेरा मानना है कि जयपाल सिंह के साथ कुछ भी लेना-देना या संपर्क बनाये रखना बिहार सरकार के लिए बुद्धिमानी नहीं हाेगी.” पटेल के इस पत्र से साफ है कि खरसावां गाेलीकांड की जांच की गयी थी. जांच रिपाेर्ट में क्या था, इसे सार्वजनिक नहीं किया गया. इस पत्र से यह भी स्पष्ट हाेता है कि सरदार पटेल नहीं चाहते थे कि जयपाल सिंह और तत्कालीन बिहार सरकार साथ-साथ काम करें.

दरअसल राजेंद्र प्रसाद खरसावां गाेलीकांड से काफी नाराज थे. उस समय वे संविधान सभा के अध्यक्ष थे. उसके तुरंत बाद वे कांग्रेस के भी अध्यक्ष थे. तब बिहार और ओड़िशा में कांग्रेस की सरकार थी. खरसावां-सरायकेला काे लेकर कांग्रेस की दाेनाें सरकारें आमने-सामने थी. तब ओड़िशा के मुख्यमंत्री हरे कृष्ण मेहताब और बिहार के मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह थे. उन दिनाें बिहार के सारे नेता सरायकेला-खरसावां काे बिहार में शामिल करने के लिए खुल कर आगे आये थे और जयपाल सिंह का समर्थन किया था. मेहताब काे लग रहा था कि राजेंद्र बाबू बिहार के नेताओं का समर्थन करते हैं. मेहताब और राजेंद्र बाबू के बीच जाे पत्राचार हुआ था, उसमें भी आराेप-प्रत्याराेप है. राजेंद्र बाबू ने साफ कर दिया था कि वे खरसावां में हुई पुलिस फायरिंग से नाराज हैं. बिहार के एक और बड़े नेता सच्चिदानंद भी इस गाेलीकांड के बाद काफी नाराज थे. उन्हाेंने 11 जनवरी, 1948 काे राजेंद्र बाबू काे पत्र लिखा था कि खरसावां फायरिंग के बाद बिहार के लाेग हताेत्साहित हैं, इसलिए 26 जनवरी काे जब सरदार पटेल पटना आयेंगे, आप भी साथ आयें, ताे बेहतर हाेगा.

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सरदार पटेल के पत्र से यह जाहिर हाेता है कि वे जयपाल सिंह के आंदाेलन काे पसंद नहीं करते थे. 24 जनवरी, 1948 काे राजेंद्र बाबू काे लिखे पत्र में पटेल ने लिखा है- “हमलाेग (कांग्रेस) काे यह प्रयास करना चाहिए कि कैसे उनका (जयपाल सिंह) प्रभाव धीरे-धीरे कम हाे. हमलाेग काे जयपाल सिंह काे नहीं बल्कि किसी अपने लाेगा काे स्वीकारना चाहिए, जिनकी आदिवासियाें पर पकड़ हाे.” सरदार पटेल के इस पत्र से यह साफ हाेता है कि खरसावां-सरायकेला के मामले में वे जयपाल सिंह काे श्रेय देना बेहतर नहीं समझते थे. पटेल के पत्र के जवाब में राजेंद्र बाबू ने भी जयपाल सिंह के आंदाेलन काे समर्थन नहीं देने की सहमति दी थी और सुझाव दिया था कि सरायकेला-खरसावां के मामले में आपकाे (पटेल काे) ओड़िशा सरकार गुमराह कर रही है. इस मामले काे सुलझाने के लिए मुंबई हाइकाेर्ट के न्यायाधीश की अगुवाई में एक जांच समिति भी बनी थी. इसकी रिपाेर्ट के बाद सरायकेला-खरसावां काे बिहार में शामिल करने का निर्णय हुआ था.

इन पत्राचाराें से स्पष्ट है कि खरसावां गाेलीकांड के बाद बिहार के नेताओं ने खुल कर सरायकेला-खरसावां काे बिहार में शामिल करने का प्रयास किया. तब राष्ट्रीय राजनीति में बिहार की पकड़ मजबूत थी और यही कारण है कि सरायकेला-खरसावां काे ओड़िशा में विलय करने का निर्णय बदल कर उसे बिहार में रखा गया. गाेलीकांड के बाद जयपाल सिंह ने शहीदाें के परिजनाें की सहायता के लिए एक राहत कमेटी बनायी थी. अगर वह दस्तावेज मिल जाये ताे अनेक शहीदाें की पहचान हाे सकती है और सरकार उनके आश्रिताें की सहायता कर सकती है.

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