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शीर्ष लंबे संघर्ष का उत्कर्ष है

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एकनाथ शिंदे आज भले ही महाराष्ट्र के सीएम हो, लेकिन उनके लिए एक ऑटो चालक से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का सफर काफी कठिन रहा है. उन्होंने कठिन लक्ष्य निर्धारित कर हर पड़ाव को पार किया. बेसिक को मजबूत करते हुए जुनून के साथ बिना आत्ममुग्धता के अनवरत लगे रहना ही उनकी सफलता का सूत्र रहा है.

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एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए हैं. मैं उनके राजनीतिक पहलू पर नहीं जाना चाहता हूं, लेकिन इसका जो दूसरा पहलू है, वो काफी बेहतरीन है. वो है एकनाथ शिंदे का एक ऑटो चालक से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का सफर, जो काफी संघर्ष से भरा और प्रेरणादायक है. जब मैं एकनाथ शिंदे का सफर पढ़ रहा था, तो मुझे कुछ वर्ष पहले रांची में दिए गए भारत के वर्तमान उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के एक भाषण के कुछ अंश के संस्मरण याद आ रहे थे.

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एकनाथ शिंदे का सफर काफी प्रेरणादायक

वेंकैया नायडू ने चर्चा किया कि आप अपने देश की राजनीति के शीर्ष लोगों जैसे भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो या विभिन्न राज्य के मुख्यमंत्रियों के जीवन को देखिए. ज्यादातर वैसे लोग मिलेंगे, जिन्होंने अपनी शिक्षा-दीक्षा सरकारी स्कूलों में ली है और इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी बहुत ही साधारण रही है. इनलोगों के फर्श से अर्श तक का सफर सचमुच में विस्मृत करता है. बात सिर्फ राजनीति की नहीं है, जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी शीर्ष पर विराजमान लोगों में बहुतायत बहुत ही साधारण परिवेश से निकलकर आए हुए नजर आते हैं.

एकनाथ शिंदे ने ऊंची रखी थी अपनी मंजिल की उड़ान

मन में सवाल उठता है कि कैसे कोई व्यक्ति जीवन में इतनी लंबी लकीर खींच सकता है! क्या कोई महान व्यक्ति ने जब अपनी यात्रा शुरू की थी, तो सचमुच में उसे पता होता है कि वो इस स्तर तक पहुंच सकता है. मैंने बहुतों के जीवन यात्रा को लेकर उनकी जुबानी उनका अनुभव सुना और पढ़ा है. एक बात बहुत ही कॉमन नजर आया कि अपवाद को छोड़कर ज्यादातर लोगों को अपने जीवन के लंबे कालखंड तक शायद ही ऐसा लगा कि वो इस स्तर तक पहुंच पाएंगे या उन्होंने अपनी मंजिल की उड़ान इतनी ऊंची रखी थी.

ये है एकनाथ शिंदे की सफलता का सूत्र

हरेक ने अपने को सकारात्मक रखते हुए अपने लिए बड़ा और कठिन लक्ष्य निर्धारित किया और उस लक्ष्य की प्राप्ति के बाद हर पड़ाव के बाद उससे बड़ा लक्ष्य निर्धारित किया. हर लक्ष्य उनके लिए एक पड़ाव था, मंजिल नहीं. बेसिक को मजबूत करते हुए जुनून के साथ बिना आत्ममुग्धता के अनवरत लगे रहना ही उनकी सफलता का सूत्र रहा है.

इंसान का जीवन सौर मण्डल के ऑर्बिट की तरह

वस्तुतः इंसान का जीवन भी सौर मण्डल के ऑर्बिट की तरह होता है. इंसान एक ऑर्बिट में घूमता रहता है और घूमते घूमते वो एक ऑर्बिट से दूसरे ऑर्बिट में चला जाता है. बहुत बार एक ऑर्बिट में उसकी यात्रा लंबी भी हो जाती है. ऐसे हालात में हममें से ज्यादातर लोग थक हारकर हथियार डाल देते हैं, लेकिन जो लोग सफल हैं, उनके लिए कठिन और लंबी यात्रा उनके संकल्प को और मजबूत करता है. उनके अगले ऑर्बिट के लिए मजबूत नींव का काम करता है. इंसान जब लंबी सीढ़ी पर चढ़ता है, तो वो सीधे ऊपर के पायदान पर नहीं पहुंचता है, बल्कि सीढ़ी के एक एक कड़ी पर अपने कदम मजबूती से रखते हुए शिखर की तरफ कदम बढ़ाता है और अंत में शीर्ष तक पहुंच जाता है.

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