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Diwali 2023 Puja: दिवाली पर क्यों होती हैं लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा, जानें कुबेर यंत्र की महिमा

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Diwali 2023 Puja: श्री गणेश की पूजा विघ्न विनाशक तथा शुभंकर देवता के रूप में करने की परम्परा भारतीय समाज में प्रचलित है. गणपति पूजा की परम्परा मंगलाचरण के रूप में प्रचलित थी. आइए जानते है कि दिवाली के दिन लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा कयों की जाती है.

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Diwali 2023 Puja Katha: दिवाली की रात लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा होती है. इसके साथ ही कुबेर यंत्र की स्थापना से दरिद्रता का नाश होता है. धन में वृद्धि होने के साथ-साथ मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. गणेश और लक्ष्मी भारतीय देवमण्डल के दो मंगलकारी देवता हैं. यह सवाल उठता है कि लक्ष्मी जी के साथ विष्णु जी की पूजा क्यों नहीं होती? इसके पीछे कई वजहें मानी जाती है. पहली वजह यह है कि लक्ष्मी सिर्फ धन की देवी नहीं बल्कि सौभाग्य, सुख, संपदा, यश और कीर्ति की देवी भी है. ये सारी चीजें अगर हमें बिना शुद्ध बुद्धि के मिल भी जाएं तो नष्ट हो जाती है, इसलिए बुद्धि के देवता गणेश जी की पूजा लक्ष्मी जी के साथ की जाती है, जिससे कि सौभाग्य, सुख, संपदा और यश हमारे जीवन में कायम रहें. धार्मिक मान्यता के अनुसार लक्ष्मी एक और श्री समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं वहीं गणेश मांगलिक कार्यों के प्रारम्भ में पूजे जाने वाले मंगलकर्ता व विघ्नहर्ता देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं. प्राचीन भारत में दीपमालिका का पर्व वास्तव में राष्ट्रीय त्योहार के रूप में मनाया जाता था, जिसमें प्रत्येक भारतीय परिवार में इस दिन व्यक्तिगत सुख समृद्धि के साथ-साथ सम्पूर्ण राष्ट्र व समाज के सुख समृद्धि के लिए लक्ष्मी की अराधना की जाती थी.

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गणेश भगवान शिव के पुत्र माने जाते हैं, किन्तु यदि पौराणिक सन्दर्भ से दूर हटकर केवल गणेश व गणपति की शाब्दिक व्याख्या की जाय तो गणेश व गणपति शब्द ‘गण’ शब्द से बने हैं. ‘गण’ का तात्पर्य राष्ट्र से भी होता है। अतः लक्ष्मी के साथ गणेश व गणपति के आराधना का प्राविधान प्राचीन परम्पराओं में हमारे ऋषियों ने किया होगा. गण पूजा के साथ-साथ गणेश व गणपति (राष्ट्र या राजा) के हित की भावना दीपावली पूजन में समाहित करके प्राचीन समाज शास्त्रियों ने व्यक्ति के साथ-साथ व राष्ट्र के मंगल कल्याण की भावना बहुत चतुराई से सम्बद्ध किया है. श्री गणेश की पूजा विघ्न विनाशक तथा शुभंकर देवता के रूप में करने की परम्परा भारतीय समाज में प्रचलित है. गणपति पूजा की परम्परा मंगलाचरण के रूप में प्रचलित थी. स्वयं शंकर-पार्वती ने अपने विवाह के पूर्व पुरोहित के आदेशानुसार मंगलकारी गणपति का पूजन किया था.(मुनि अनुशासन गणपतिहिं, पूजेडशंभु भवानि ।) इस प्रकार यदि गणेश शंकर-पार्वती के पुत्र ही होते तो विवाह के समय जन्म से पूर्व स्वयं उनके माता-पिता इनकी पूजा क्यों करते? निश्चित ही गणेश व गणपति शब्द राष्ट्र या राजा के पर्याय है, इनकी पूजा सम्पूर्ण राष्ट्र व समाज के कल्याण के लिए करने का विधान हमारे ऋग्वेद करें.

गणपति वैसे भी शुभंकर देवता हैं, शुभ व कल्याण के प्रतीक हैं. वोधायन, गुह्य सूत्र, मानव गुह्य सूत्र तथा याग्यवल्यक स्मृति आदि ग्रंथों में गणेश का यह शुभंकर विघ्नविनाशक रूप प्रकट हुआ है तथा कालान्तर में इन्हें लक्ष्मी के साथ जोड़ा गया है. आधुनिक अनुसंधान कर्ताओं के अनुसार गणेश या गणपति का गज रूप गुप्तकाल में विशेष रूप से चित्रित किया गया तथा इन्हें शिव- पुत्र विनायक से जोड़ दिया गया गज मेघ का भी प्रतीक है तथा भूमिरूप लक्ष्मी से इनका सम्बन्ध स्वतः स्थाप्य है. इसमें जरा भी संदेह नहीं कि लक्ष्मी का गज लक्ष्मी रूप मेघवृष्टि से सर्जनकारिणी माता भूमिः का रूप है. दीपावली का पर्व है वास्तव में सम्पूर्ण राष्ट्रीय जीवन की समृद्धि की आराधना का किन्तु दुर्भाग्य कि आज देश में व्यक्ति, समाज तथा राष्ट्र को खण्डित दृष्टि से देखने का फैशन चल पड़ा है. समाज का हर वर्ग अपनी व्यक्तिगत समृद्धि के लिये केवल लक्ष्मी की आराधना में तत्पर है, शुभंकर गणपति को भूलता जा रहा है. दीपावली पर्व पर ऋग्वेद के इस पौरूष्य साहस के साथ हमें गणपति व लक्ष्मी की आराधना करना पड़ेगा.(आरायि काणे विकटेगिरि गच्छ सदान्वे, शिरिन्विठस्थ सत्वमिस्ते मित वा चातयामसि ।) हे कुरूपा दारिद्रता । हम तुमसे पराजित होने वाले नहीं है, हम सामूहिक रूप से ऐसा उपाय करेंगे, जिससे तुम्हारे नागपाश से सदा के लिए मुक्त हो सकें.

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी को अपनी श्रेष्ठता पर अहंकार हो गया था. तब भगवान विष्णु ने उनके अहंकार को नष्ट करने के लिए उन्हें संतानहीन होने को लेकर ताना दिया. चूंकि पार्वती के एक पुराने शाप की वजह से कोई भी देवता संतान पैदा नहीं कर सकते थे, इसलिए लक्ष्मी जी ने पार्वती जी से उनके पुत्र गणेश को अपने मानस पुत्र के रूप में मांग लिया. लक्ष्मी जी चंचला है इसलिए पार्वती जी अपने पुत्र गणेश के लक्ष्मी के साथ जाने की बात पर चितित हो गई. उन्होंने शर्त रखी कि वह जहां भी जाएंगी, उनके साथ हमेशा गणेश जी रहेंगे. दरअसल गणेश जी को भूख ज्यादा लगती है, इसलिए भी पार्वती लक्ष्मी जी से यह आश्वासन चाहती थी कि गणेश कहीं भूखे न रह जाएं. लक्ष्मी जी ने मां पार्वती को यह वचन दिया कि वह जहां भी जाएंगी, गणेश उनके साथ ही जाएंगे और जब तक गणेश की उनके पुत्र के रूप में पूजा नहीं होगी, मां लक्ष्मी किसी को भी वरदान नही देंगी.

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कुबेर यंत्र की महिमा

कुबेर यंत्र की स्थापना से दरिद्रता का नाश होता है. धन में वृद्धि होने के साथ-साथ मान-सम्मान की प्राप्ति होती है. वहीं जो लोग नया बिजनेस शुरू करना चाहते हैं उनके लिए भी ये यंत्र कल्याणकारी माना गया है. व्यापारियों के लिए भी यह यंत्र अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है. कुबेर यंत्र को गल्ले की तिजोरी या फिर अलमारी में रखा जाता है. इसकी स्थापना से धन को किसी की बुरी नजर नहीं लगती. इसके प्रभाव से धन सदैव संचित रहता है. ऐसी मान्यता है इस यंत्र को गल्ले पर स्थापित करने से व्यापार में वृद्धि होती है. भाग्योदय के लिए कुबेर यंत्र को घर या कार्यालय में स्थापित किया जा सकता है.

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