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Exclusive: भीड़ फिल्म ने मुझे बहुत रुलाया है, जानिए ऐसा क्यों बोलीं दीया मिर्जा

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बॉलीवुड एक्ट्रेस दीया मिर्जा जल्द ही फिल्म भीड़ में दिखेंगी. एक्ट्रेस ने भीड़ की सबसे खास बात बताई. साथ ही उन्होंने कहा कि, हमारे देश में आज कोई भी ऐसा निर्देशक नहीं है. जो सोशल पॉलिटिकल फ़िल्म बनाता हैं. सच कहूं तो आजकल एस्केस्पिस्ट सिनेमा हर कोई बना रहा है.

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अभिनेत्री दीया मिर्जा जल्द ही अनुभव सिन्हा की फिल्म भीड़ में नजर आनेवाली हैं. इस सोशल पॉलिटिकल जॉनर वाली इस फिल्म से जुड़े अपने अनुभवों पर वह कहती हैं कि इस फिल्म की शूटिंग के बाद जब घर लौटती, तो हमेशा ये महसूस हुआ कि कुछ बहुत अच्छा करके आ रही हूं. उम्मीद है कि यह फिल्म दर्शकों को भी कुछ खास एहसास करवाएगी. उर्मिला कोरी से हुईं बातचीत के प्रमुख अंश.

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फ़िल्म भीड़ का ट्रेलर काफी हार्ड हिटिंग है,जब आप तक फ़िल्म पहुंची तो आपका क्या रिएक्शन था?

मेरा तो रो -रोकर हाल बेहाल हो गया. यह अनुभव की अब तक की सबसे बेस्ट फ़िल्म है. उन्होने बहुत सादगी से और गहराई से इस कहानी को लिखा है. मैं ओपनिंग टाइटल सीक्वेन्स देखकर ही रोने लगी थी. बहुत ही दिग्गज कलाकार इस फ़िल्म से जुड़े हैं. सबने इतनी मेहनत से, इतने प्यार से अपनी इंसानियत को आगे करके काम किया है. बहुत अच्छी फ़िल्म है.

भीड़ की सबसे खास बात आपको क्या लगी?

हमारे देश में आज कोई भी ऐसा निर्देशक नहीं है. जो सोशल पॉलिटिकल फ़िल्म बनाता हैं. सच कहूं तो आजकल एस्केस्पिस्ट सिनेमा हर कोई बना रहा है. ऐसे में अनुभव की फ़िल्में मुझे सबसे ज्यादा अपील करती हैं, क्योंकि मैं खुद उस तरह का काम निजी जिंदगी में करना पसंद करती हूं. मैं उनको 23 सालों से जानती हूं. मेरा पहला म्यूजिक वीडियो मैंने उनके साथ किया है. उसके बाद मैंने उनके साथ दो फ़िल्में की थी. जो उनका पिछला वर्जन था. उस वाले के साथ मैंने दस और कैश जैसी फ़िल्में की थी. फिर अनुभव सिन्हा के 2.0 वर्जन के साथ मैंने फिल्म थप्पड़ की. उस दौरान मैंने उनसे कहा था कि आप जब भी कोई फ़िल्म बनाएंगे. मुझे उसका हिस्सा बनना है. चाहे मैं उसमें कुर्सी हूं, टेबल हूं, मुझे उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता है. मुझे उसका हिस्सा बनना है. वें हंसे और उन्होने अपना वादा निभाया. मैं बहुत खुश हूं कि मुझे भीड़ का हिस्सा बनने का मौका मिला.

अपने किरदार के लिए क्या आपको कुछ खास करना पड़ा?

इस फ़िल्म में बहुत सारे लेयर्स हैं. यह फ़िल्म वास्तविकता से जुड़ी हुईं है. यह ऐसी फ़िल्म है, जहां आपको अपने वजूद और अटेंशन को 100 प्रतिशत अपने काम पर ले जाना है. आपको बस फ़िल्म से जुड़े हर पल के साथ 100 प्रतिशत ईमानदारी से जीना है. एक एक्टर के तौर पर आप अपने दिल और ईमानदारी को सेट पर ले जा सकते हैं. सेट पर इस तरह का माहौल बना गया था कि कभी -कभी लगता नहीं था कि हम शूट कर रहे हैं. अनुभव ने इस फ़िल्म को इस कदर शूट किया है. फिल्म की शूटिंग एक लोकेशन पर ही हुईं है. एक ही सड़क पर शूट हुईं है. धूल, मिट्टी खाते हुए हमने शूट की है. वो कहते हैं ना जब कोई अच्छी स्क्रिप्ट लिख लेता है, तो फिर आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती है.

पेंडेमिक से जुड़ी आपके क्या अच्छे -बुरे अनुभव रहे हैं?

पहले लॉकडाउन में मैं अपने घर में अपनी मां के साथ थी. घर में खाना गरम बन रहा था. हमलोग स्क्रैब्ल खेल रहे थे, तो एक तरह से खुश थे, लेकिन आमलोग बुरी तरह फंसे थे. कई प्रिविलेज़ लोग भी फंसे हुए थे. कोई अपने बच्चों तक नहीं पहुंच पा रहा था. कोई अपने मां -बाप के पास. कोई पेट से था. हर कोई कुछ -कुछ झेल रहा था. सेकेंड लॉकडाउन में मैं मां बनी थी. तीन महीने तक मैं अपने बच्चें को गोद में नहीं ले पायी थी, क्योंकि वह आइसीयू में था. कोविड के नियमानुसार आप अपने नवजात बच्चे को तब तक नहीं पकड़ सकते हो, जब तक वह हेल्थी नहीं हो जाता है. कोविड प्रोटोकॉल की वजह से मैं अपने बेटे को हफ्ते में सिर्फ एक बार मिल सकती थी. पेंडेमिक और लॉकडाउन की वजह से अलग -अलग लोगों ने अलग अलग तरह का अनुभव किया.

इस फिल्म की शूटिंग के वक़्त आपका बेटा छह महीने का था, किस तरह से आपने चीज़ों को मैनेज किया?

सेट पर सेफ्टी प्रोटोकॉल्स का विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता था , क्योंकि हमने भीड़ के साथ ही शूट की है. इसके बावजूद मुझे अपने बेटे अवियान से दूर रहना पड़ा, क्योंकि वह सिर्फ छह महीने का था. मैंने खुद से सवाल किया कि मेरा बेटा बड़ा होकर जब इस फिल्म को देखेगा, तो क्या गर्व महसूस करेगा और जवाब बहुत आसान था कि मुझे यह फिल्म करनी चाहिए. इस दौरान मेरे पति और मेरी मां ने मेरे बच्चे का पूरा ख्याल रखा था.

रील में भी आप अपने बच्चे से दूर हैं, क्या रियल लाइफ के इमोशन काम आए?

मैंने वेब सीरीज काफ़िर मां बनने से पहले की थी. एक मां की भावनाएं हमेशा से मेरे अंदर थी. जो काफ़िर में बखूबी सामने आयी थी. हां इस बात से इनकार नहीं कर सकती हूं,जब से मां बनी हूं,वो फीलिंग बहुत स्ट्रांगली आती हैं. रील ही नहीं रियल लाइफ में भी मैं अपने बच्चे से दूर थी, तो सारे भाव बहुत ही अच्छे से फिल्म भीड़ में आए हैं.

इस फिल्म में आपके साथ भूमि और राजकुमार भी हैं, उनके साथ अनुभव कैसा रहा?

भूमि और राज की पहली फिल्म से मैं उन्हें पसंद करती हूं. मैं एक आर्टिस्ट के तौर पर उनकी बहुत इज्जत करती हूं. उनके साथ काम करना बहुत मज़ेदार था. राज इतना मस्तीखोर है. इस फिल्म के दौरान मैंने जाना. इतना इटेंस सीन करने के बाद भी वह इतना मस्ती कैसे कर लेता है. सच्ची कैमरा ऑन होता है और एक स्विच है उसमें, वह फिर इटेंस जोन में चला जाता है. जो हर किसी के बस की बात नहीं है.

आप सोशल वर्क से जुड़ी रही है, क्या कोविड के बाद लोगों की आदतें बदली हैं लोगों का दूसरे लोगों के प्रति सहानुभूति बढ़ी है?

हमारी सबसे बड़ी परेशानी यह है कि हम बहुत जल्दी भूल भी जाते हैं, क्योंकि हम अपनी जिंदगी के संघर्ष में जुट जाते हैं. हमें दूसरों के बारे में सोचने लिए बहुत कम समय मिलता है. उम्मीद करती हूं कि यह फिल्म एक पावरफुल रिमाइंडर बनकर सामने आए और लोगों को फिर से अपने आसपास के लोगों और चीज़ों के बारे में सोचने को मजबूर करें. यह समझने की जरूरत है कि जो लोग बेसिक चीज़ों की ज़रूरतों से जूझ रहे थे, कोविड के बाद उनका अभाव और बढ़ गया है. उसपर बहुत काम करने की जरूरत है. जो लोग हमारी जिंदगी में सहूलियत पैदा करते हैं. उनलोगों को जब भी आप बुरे हालात में देखें, तो खुद से सवाल करें कि देखकर अनदेखा करना है या खुद से सवाल करना है कि हालात कैसे बदले.

मौजूदा दौर में थिएटर में फ़िल्में नहीं चल रही है, क्या ये भीड़ की रिलीज के लिए सही वक़्त है ?

अच्छी फ़िल्में चलती हैं. चलना क्या है. फिल्म दर्शकों तक पहुंचना. लोगों को अच्छा लगना. वो चाहे किसी भी माध्यम से हो. मैं चाहूंगी कि थिएटर में बड़ी भीड़ इस फिल्म को देखने आए. यह फिल्म थिएटर वाली है. इस फिल्म का जो अनुभव थिएटर में मिलेगा. वो छोटे परदे पर नहीं आएगा. मेरी पहली फिल्म रहना है तेरे दिल में उस वक़्त नहीं चली थी, लेकिन आज वो फिल्म कल्ट मानी जाती है. अच्छी फिल्म अपना दर्शक ढूंढ ही लेती है.

आपकी आनेवाली फ़िल्में?

तापसी पन्नू वाली फिल्म धक् धक् आ रही है.

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