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प्रखंड मुख्यालय से 5 किमी दूर पलानी पंचायत की आबादी करीब 9 हजार है. इसमें खास पलानी, महुलटांड़, बेलगढ़िया बस्ती, शहरधार, बेलगढ़िया टाउनशिप, शिव मंदिर, गुलूडीह, फेकराडीह, पाथरडीह टोला एवं आमगढ़ा गांव शामिल हैं. बेलगढ़िया टाउनशिप को छोड़ शेष गांव एवं टोलाें में डेढ़ हजार हेक्टेयर में खेती होती है.

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धनबाद, संजीव झा. जर्जर जोरिया व दो दशक से भी पुराने कुएं से बलियापुर अंचल की कृषि बहुल पलानी पंचायत के किसान खेती कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. पंचायत के एक गांव को छोड़ शेष गांवों एवं टोलाें के अधिकांश लोग धान, गेहूं के अलावा दलहन की खेती कर रहे हैं. पूरे वर्ष छोटी-छोटी बाड़ियों में सब्जी उगाते हैं. सब्जी बेचने खुद धनबाद शहर के सरायढेला व हीरापुर क्षेत्र जाते हैं. यहां के किसानों को सरकार की तरफ से सिंचाई की सुविधा न के बराबर मिल रही है. सुखाड़ के दौरान भी यहां कुएं से धान की खेती की.

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डेढ़ हजार हेक्टेयर में होती है खेती

प्रखंड मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर दूर पलानी पंचायत की आबादी लगभग नौ हजार है. इसमें खास पलानी, महुलटांड़, बेलगढ़िया बस्ती, शहरधार, बेलगढ़िया टाउनशिप, शिव मंदिर, गुलूडीह, फेकराडीह, पाथरडीह टोला एवं आमगढ़ा गांव शामिल हैं. बेलगढ़िया टाउनशिप को छोड़ कर शेष गांव एवं टोलाें में लगभग डेढ़ हजार हेक्टेयर में खेती होती है. 90 फीसदी से अधिक लोग खेती करते हैं. खेती ही जीविकोपार्जन का मुख्य स्रोत है. यहां के कई किसानों को बेहतर खेती के लिए जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है. एक किसान को राष्ट्रपति पुरस्कार तक मिल चुका है. किसान पारंपरिक तरीके से खेती करते हैं.

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धनबाद में जोरिया व सूख रहे कूप से ऐसे आत्मनिर्भर बने अन्नदाता, बिचौलिया से बचने के लिए खुद कर रहे मार्केटिंग 2
बारिश नहीं होने पर प्रभावित होती है खेती

शिव मंदिर बस्ती में लगभग 150 घर हैं. इस गांव में खेती के लिए न कोई तालाब है और न ही चेकडैम. जलछाजन योजना के तहत वर्ष 2001 में एक कूप का निर्माण हुआ था. उसकी मरम्मत तक नहीं हुई. इस कुएं में ही टुलू पंप लगा कर किसान पटवन करते हैं. लेकिन गर्मी शुरू होते ही इसका जलस्तर काफी नीचे चला जाता है. किसानों के अनुसार, 10 मिनट मोटर चलाने पर कुएं का लेवल लगभग खत्म हो जाता है. बगल में मनरेगा से वर्ष 2021-22 में एक कूप बनाया गया था, लेकिन इसका लेयर भी काफी नीचे चला गया है. गांव के एक छोर पर एक जोरिया है. इसी जोरिया से सटे खेतों में पटवन होता है. साथ ही गांव के पुरुष सदस्य यहीं पर स्नान करते हैं. बारिश नहीं होने पर खेती पूरी तरह प्रभावित हो जाती है.

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