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Chandrayaan-3 : सीटीटीसी भुवनेश्वर को चंद्रयान-3 के ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ का इंतजार, इसरो के लिए बनाये हैं ये उपकरण

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तकनीशियनों के समर्पित प्रयासों के बलबूते सीटीटीसी भुवनेश्वर को मिशन का हिस्सा बनने का दुर्लभ मौका मिल सका. भुवनेश्वर स्थित इस सरकारी उपक्रम ने चंद्रयान-3 प्रक्षेपण वाहन के एलवीएम3, सेंसर और रेग्युलेटर में इस्तेमाल किए जाने वाले कई प्रवाह नियंत्रण वाल्व का निर्माण किया है.

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पूरी दुनिया शुक्रवार को भारत के चंद्र मिशन चंद्रयान-3 के प्रक्षेपण का बेसब्री से इंतजार था. वहीं भुवनेश्वर के ‘सेंट्रल टूल रूम एंड ट्रेनिंग सेंटर’ (सीटीटीसी) के तकनीशियन और छात्र इस यान को चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करता देखने के लिए उत्सुक हैं. सीटीटीसी भुवनेश्वर ने इस अभियान के लिए अहम घटकों की आपूर्ति की है.

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परीक्षा परिणाम का इंतजार कर रहे छात्र जैसा कर रहे महसूस

संस्थान के महाप्रबंधक एल राजशेखर ने कहा, ‘हम व्याकुल हैं और परीक्षा परिणाम का इंतजार कर रहे छात्र जैसा महसूस कर रहे हैं. हम अत्यधिक आशावादी हैं कि इस बार भारत इतिहास रचेगा.’ देशभर में कुल 23 सीटीटीसी हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कार्यों को बेहद सटीकता और निर्धारित मानकों के अनुरूप पूरा करने के भुवनेश्वर केंद्र के रिकॉर्ड को देखते हुए उसे इस मिशन के लिए चुना.

सीटीटीसी भुवनेश्वर को मिला इसरो के साथ काम करने का मौका

राजशेखर कहते हैं कि तकनीशियनों के समर्पित प्रयासों के बलबूते सीटीटीसी भुवनेश्वर को मिशन का हिस्सा बनने का दुर्लभ मौका मिल सका. भुवनेश्वर स्थित इस सरकारी उपक्रम (पीएसयू) ने चंद्रयान-3 प्रक्षेपण वाहन के एलवीएम3 (लॉन्च व्हीकल मार्क-3), सेंसर और रेग्युलेटर में इस्तेमाल किए जाने वाले कई प्रवाह नियंत्रण वाल्व का निर्माण किया है. संस्थान ने यान के लिए गाइरोस्कोप और प्रक्षेपक के कल-पुर्जों की भी आपूर्ति की है.

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इसरो ने लैंडर के डिजाइन में किये हैं कुछ बदलाव

सीटीटीसी भुवनेश्वर ने अगले महीने के अंत में चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ के लिए लैंडर के पहिया तंत्र के कुछ घटकों का भी निर्माण किया है. राजशेखर ने कहा कि वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 के दौरान चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ में आंशिक विफलता के बाद इसरो ने वाहन लैंडर के डिजाइन में कुछ बदलाव किए हैं.

50 हजार घटक के लिए 150 तकनीशियनों ने दिन-रात काम किया

उन्होंने बताया कि इस अंतरिक्ष मिशन के लिए नये घटकों का इस्तेमाल करने से पहले उनका कई बार परीक्षण किया गया. राजशेखर ने कहा कि चंद्र मिशन में इस्तेमाल होने वाले 50,000 से ज्यादा अहम घटकों के निर्माण के लिए 150 से अधिक तकनीशियनों ने पिछले दो वर्षों में दिन-रात काम किया.

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चुनौतीपूर्ण काम होता है चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा है कि भारत का तीसरा चंद्र अभियान ‘चंद्रयान-3’ चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास 23 अगस्त को करेगा. सॉफ्ट लैंडिंग को तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण कार्य माना जाता है. सोमनाथ ने 600 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाले मिशन के सफल प्रक्षेपण के बाद यह बात कही.

23 अगस्त को हो सकती है चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग

उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग 23 अगस्त को शाम 5 बजकर 47 मिनट पर किये जाने की योजना है. भारत ने शुक्रवार को यहां एलवीएम3-एम4 रॉकेट के जरिए अपने तीसरे चंद्र मिशन-‘चंद्रयान-3’ का सफल प्रक्षेपण किया. सोमनाथ ने कहा कि शुक्रवार को प्रक्षेपण के बाद राकेट दीर्घ वृताकार चंद्र कक्षा में आगे बढ़ेगा.

अगस्त में चंद्रमा की कक्षा में स्थापित हो सकता है चंद्रयान-3

उन्होंने कहा, ‘हमें चंद्रयान-3 को एक अगस्त से चंद्रमा की कक्षा में स्थापित करने की उम्मीद है और इसके दो-तीन सप्ताह के बाद प्रणोदन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होगा, जो 17 अगस्त को होगा.’ सोमनाथ ने कहा कि अगर सभी चीजें निर्धारित कार्यक्रम के अनुरूप रहती हैं, तो इसका अंतिम चरण 23 अगस्त को शाम 5 बजकर 47 मिनट पर किये जाने की योजना है.

चंद्रयान-2 में हुई गलती का पता लगाने में लग गये एक साल

वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 के बाद वर्तमान मिशन में हुई देरी के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह अध्ययन करने में एक वर्ष लग गया कि पिछले मिशन में क्या गलती हुई. उन्होंने कहा कि दूसरा हमने विचार किया कि इसे बेहतर बनाने के लिए क्या कदम उठाने की जरूरत है और क्या-क्या गलत हो सकता है.

प्रक्षेपण में लगी थी हजारों लोगों की टीम

सोमनाथ ने कहा कि इस बात पर भी विचार किया गया कि क्या कोई छिपी समस्या है और हमने इस आधार पर समीक्षा की और तीसरे वर्ष परीक्षण किया तथा अंतिम वर्ष एलवीएम3-एम4 रॉकेट को जोड़ने का रहा. उन्होंने कहा कि आज जो हुआ है, उसके लिए हजारों लोगों की बड़ी टीम थी.

चंद्रयान-3 कई विशेषताओं का पता लगायेगा

यह पूछे जाने पर कि वर्तमान मिशन के वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए दक्षिण ध्रुव को क्यों चुना गया, उन्होंने कहा, ‘हमारा लक्ष्य चंद्रमा के सतह पर सभी भू-भौतिकी एव रासायनिक विशेषताओं का पता लगाना है. दूसरा यह कि दक्षिण ध्रुव का अध्ययन अभी तक नहीं किया गया है.’ एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों ने एलवीएम3-एम4 रॉकेट में कई बदलाव किये, जिसमें इंजन की संख्या को पूर्ववर्ती पांच से घटाकर चार करना शामिल है.

600 करोड़ रुपये है चंद्रयान-3 मिशन की लागत

उन्होंने कहा, ‘यह वाहन के वजन को कम करने के लिए किया गया.’ वहीं, चंद्रयान मिशन की लागत के बारे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा, ‘यह करीब 600 करोड़ रुपये है.’ केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान का उल्लेख करते हुए सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले चार-पांच वर्षों में अंतरिक्ष से जुड़ी व्यवस्था तैयार करने में व्यक्तिगत तौर पर रुचि दिखायी है.

पीएम मोदी ने खोले श्रीहरिकोटा के द्वार : जितेंद्र सिंह

उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष से जुड़ी व्यवस्था को तैयार करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ बड़ी संख्या में स्टार्टअप सहयोग कर रहे हैं. भारत को गौरवान्वित करने के लिए इसरो टीम की सराहना करते हुए उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया और कहा कि उन्होंने ‘श्रीहरिकोटा के द्वार खोलकर तथा भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र को सक्षम करके इसे संभव बनाया है.’

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