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कोयला घोटाला : भारत सरकार को धोखा देने के लिए विजय दर्डा, उनके बेटे को 4 साल की सजा

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न्यायाधीश ने कहा, ‘मौजूदा मामला कोयला ब्लॉक आवंटन से संबंधित है. दोषियों ने भारत सरकार के साथ धोखाधड़ी करके उक्त ब्लॉक हासिल किया था. अभियोजन पक्ष का यह कहना उचित है कि राष्ट्र को भारी क्षति हुई.’

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दिल्ली की एक अदालत ने छत्तीसगढ़ में कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितता से जुड़े एक मामले में राज्यसभा के पूर्व सदस्य विजय दर्डा, उनके बेटे देवेंद्र दर्डा और कारोबारी मनोज कुमार जायसवाल को बुधवार को चार साल की सजा सुनाई. अदालत ने कहा कि दोषियों ने भारत सरकार से धोखा करके कोयला ब्लॉक हासिल किया. अदालत के आदेश के बाद तीनों दोषियों को तत्काल हिरासत में ले लिया गया.

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विशेष न्यायाधीश संजय बंसल ने पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता और दो पूर्व वरिष्ठ लोक सेवकों- केएस क्रोफा और केसी समरिया को भी तीन साल की सजा सुनाई. हालांकि, इन तीनों दोषियों को अदालत ने जमानत दे दी, ताकि वे अपनी दोषसिद्धि और सजा को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकें. अदालत ने मामले में दोषी ठहराई गई कंपनी ‘जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड’ पर 50 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया.

अदालत ने दर्डा, उनके बेटे तथा जायसवाल पर 15-15 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया. अन्य तीन दोषियों को भी 20-20 हजार रुपये का जुर्माना भरने का निर्देश दिया गया. न्यायाधीश ने कहा, ‘मौजूदा मामला कोयला ब्लॉक आवंटन से संबंधित है. दोषियों ने भारत सरकार के साथ धोखाधड़ी करके उक्त ब्लॉक हासिल किया था. अभियोजन पक्ष का यह कहना उचित है कि राष्ट्र को भारी क्षति हुई.’

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कोयला घोटाले में 13वीं दोषसिद्धि में अदालत ने 13 जुलाई को सात आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश) एवं धारा 420 (जालसाजी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था. कोयला घोटाला केंद्र की पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में सामने आया था.

सजा पर जिरह के दौरान, सीबीआई ने यह दावा करते हुए दोषियों के लिए अधिकतम सात साल की सजा की मांग की थी कि दर्डा और उनके बेटे ने जांच को प्रभावित करने के लिए तत्कालीन सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा से उनके आवास पर मुलाकात की थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कोयला घोटाला मामलों की जांच को प्रभावित करने के प्रयास को लेकर सिन्हा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया था. बिहार कैडर के 1974 बैच के आईपीएस अधिकारी सिन्हा की वर्ष 2021 में कोविड संबंधी जटिलताओं से मृत्यु हो गई. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के वरिष्ठ लोक अभियोजक एपी सिंह ने कहा था कि मामले में एक गवाह ने दावा किया था कि उसे जायसवाल ने गवाही न देने के लिए धमकाया था.

अदालत ने 20 नवंबर, 2014 को मामले में सीबीआई द्वारा प्रस्तुत ‘क्लोजर रिपोर्ट’ को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था और संघीय जांच एजेंसी को इसकी नये सिरे से जांच करने का निर्देश दिया था. अदालत से कहा गया था कि पूर्व सांसद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्रों में तथ्यों को ‘गलत तरीके से प्रस्तुत’ किया था. कोयला मंत्रालय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अधीन था.

अदालत ने कहा कि लोकमत समूह के अध्यक्ष विजय दर्डा ने जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड के लिए छत्तीसगढ़ में फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक लेने के लिए ऐसा किया था. लोकमत समूह महाराष्ट्र में स्थित एक मीडिया कंपनी है. अदालत ने कहा कि धोखाधड़ी का अपराध निजी पक्षों द्वारा उनके और लोक सेवकों के बीच रची गई साजिश को आगे बढ़ाने के लिए किया गया था.

जेएलडी यवतमाल एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को 35वीं स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा फतेहपुर (पूर्व) कोयला ब्लॉक आवंटित किया गया था. सीबीआई ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया था कि जेएलडी यवतमाल ने 1999-2005 में अपने समूह की कंपनियों को चार कोयला ब्लॉक के पिछले आवंटन को गलत तरीके से छुपाया था, लेकिन बाद में एजेंसी ने एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की, जिसमें कहा गया कि कोयला मंत्रालय द्वारा जेएलडी यवतमाल को कोयला ब्लॉक आवंटन में कोई अनुचित लाभ नहीं दिया गया था.

इस घोटाले ने वर्ष 2012 में मनमोहन सिंह की तत्कालीन सरकार को हिला कर रख दिया था, जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 2004 से 2009 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों और निजी कंपनियों को 194 कोयला ब्लॉक गैर-पारदर्शी तरीके से आवंटित करने के लिए सरकार की आलोचना की थी. कैग ने कहा था कि मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन आवंटित करने की बजाय सरकार को प्रतिस्पर्धी बोली आमंत्रित करनी चाहिए थी.

दावा किया गया कि कई नेताओं ने निजी संस्थाओं के लिए पैरवी की और उन्हें इन ब्लॉक को हासिल करने में मदद की. कई संस्थाओं को खनन के लिए जरूरत से ज्यादा ब्लॉक मिल गए और अतिरिक्त कोयला खुले बाजार में बेच दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें भारी लाभ हुआ. कैग ने शुरू में सरकारी खजाने को 10.6 लाख करोड़ रुपये के भारी नुकसान का अनुमान लगाया था, लेकिन संसद में पेश की गई उसकी अंतिम रिपोर्ट में यह आंकड़ा 1.86 लाख करोड़ रुपये बताया गया.

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