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मुश्किल में घिरते दिख रहे बृजभूषण

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यह ध्यान रखना चाहिए कि यौन दुराचार के मामले ऐसे होते हैं, जिनसे किसी भी नेता की पब्लिक इमेज ध्वस्त हो जाती है. वह किसी जिताऊ पार्टी की टिकट पर भले चुनाव जीत जाए, बिना पार्टी के जीतना बहुत कठिन होता है. यह भारतीय मतदाता का मिजाज है इसलिए नेता कोशिश करता है कि यौन दुराचार जैसा कोई आरोप उस पर नहीं लगे.

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भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह अब दोतरफा खेल खेलने में लगे हैं. वे सत्तारूढ़ भाजपा को धमकी भी दे रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह की तारीफों के पुल भी बांध रहे हैं. उन्होंने रविवार को गोंडा में एक जनसभा कर अपनी ताकत दिखाते हुए कहा कि वह अगला लोकसभा चुनाव लड़ेंगे. वैसे उनका इतिहास बताता है, कि वह अपने क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय भी हैं, और पाला बदलने में माहिर भी. भाजपा से वह पहली बार 1991 में गोंडा से लोकसभा सांसद बने थे. तब उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की सरकार थी.

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अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद गिरायी गयी, तब बृजभूषण कारसेवकों की अगुवाई कर रहे थे. उन्होंने खुल्लम-खुल्ला यह स्वीकार भी किया, कि बाबरी मस्जिद गिराने में उनकी भूमिका रही. लेकिन, वर्ष 2008 में पार्टी (भाजपा) व्हिप के बावजूद केंद्र की मनमोहन सरकार बचाने के लिए उन्होंने पाला बदल लिया. अगले साल वह समाजवादी पार्टी की टिकट पर सांसद बने. कहा जाता है कि उन पर माफिया डॉन दाऊद से संबंध का आरोप था और जांच के समय बचने के लिए उन्होंने मनमोहन सरकार का साथ दिया. भाजपा विधायक घनश्याम शुक्ल हत्याकांड में भी उन पर उंगली उठी थी.

बृजभूषण अपने क्षेत्र में पहलवान के रूप में भी जाने जाते हैं और छात्र जीवन में वे अपने कॉलेज साकेत महाविद्यालय के कुश्ती संघ के अध्यक्ष थे. लेकिन अभी अंतरराष्ट्रीय महिला पहलवानों ने जिस तरह से उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, उससे वह मुश्किल में नजर आ रहे हैं. महिला पहलवानों के साथ यौन दुर्व्यवहार के मामले में दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल कर दिया है. वैसे, बेहतर तो यह होता कि आरोप लगने के बाद वह स्वयं जांच के लिये तैयार हो जाते. लेकिन जब सरकार ने कुश्ती संघ को ही भंग कर दिया, तब उन्हें खुद हटना पड़ा. पिछले 12 वर्ष से बृजभूषण शरण सिंह भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष रहे हैं.

साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जैसे नामी पहलवानों की मांग के बावजूद उनसे इस्तीफा नहीं लिया गया. यही नहीं, एफआइआर दर्ज होने के बाद भी उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया. बृजभूषण सिंह को कुश्ती महासंघ से तब हटाया गया जब यूपी निकाय चुनाव संपन्न हो गये और उनका नतीजा भी आ गया. कुश्ती महासंघ की कार्यकारिणी भंग कर 45 दिनों के भीतर भारतीय कुश्ती महासंघ अपनी नयी कार्यकारिणी का गठन करेगा और तब ही नया अध्यक्ष चुना जायेगा. इन सबके बीच बृजभूषण शरण सिंह ने गोंडा में रैली कर यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी लोकप्रियता बरकरार है.

बृजभूषण सिंह की उत्तर प्रदेश के गोंडा, बलरामपुर, अयोध्या और बहराइच में यह लोकप्रियता ही उन्हें इतनी ताकत देती है जिसके बूते वह आरोपों से घिरे होने के बावजूद अपराजेय हैं. अपने क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता की वजह उनका अपने सहयोगियों के लिए कुछ भी कर डालना रहा है. एक मीडिया चैनल के समक्ष उन्होंने यह स्वीकार किया था, जीवन का पहला मर्डर उन्होंने अपने एक दोस्त के लिए किया था. इसके बाद भी किसी सरकार में इतनी हिम्मत नहीं हुई कि उन पर कोई कार्रवाई हो सके. केंद्र और उत्तर प्रदेश में तमाम सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन बृजभूषण यथावत रहे. शायद यही कारण है कि उन पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई.

लेकिन यह पहली बार हुआ है कि बृजभूषण स्वयं को असहाय महसूस कर रहे हैं. इसलिए नहीं कि वे पहलवानों के धरने से डर गये, क्योंकि भले धरना देने वाले पहलवान अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं या ओलंपिक खेलों में पदक ला चुके हैं, मगर बृजभूषण शरण सिंह हर बात का तुर्की-ब-तुर्की जवाब देते रहे. उन्होंने इस पूरे कांड को हरियाणा बनाम उत्तर प्रदेश की लड़ाई बना दिया. जबकि दोनों प्रदेशों में भाजपा की ही सरकार है. उन्हें दरअसल चिंता तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया और केंद्र सरकार ने उन्हें हटाने के लिए संपूर्ण कुश्ती महासंघ की कार्यकारिणी ही भंग कर दी. पिछले 12 साल से वे जिस पद पर डटे थे, वह अचानक से उनसे छिन गयी. इसलिये उन्हें यह अहसास हो गया है कि अगर आरोप साबित हो गये तो वो फंस सकते हैं.

बृजभूषण शरण सिंह ने रविवार को अपनी पब्लिक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जम कर तारीफ की और अपनी लोकप्रियता का दांव चलाया, किंतु उन्हें मालूम है कि पहलवानों द्वारा लगाये गये आरोपों की जांच शुरू हुई तो आंच दूर तक जायेगी. यह ध्यान रखना चाहिए कि यौन दुराचार के मामले ऐसे होते हैं, जिनसे किसी भी नेता की पब्लिक इमेज ध्वस्त हो जाती है. वह किसी जिताऊ पार्टी की टिकट पर भले चुनाव जीत जाए, बिना पार्टी के जीतना बहुत कठिन होता है. यह भारतीय मतदाता का मिजाज है. इसलिए नेता कोशिश करता है कि यौन दुराचार जैसा कोई आरोप उस पर नहीं लगे. हत्या, लूट जैसे आरोपों की बात अलग होती है जिसमें जांच पूरी होने के बाद ही फैसला आता है. लेकिन, यौन दुराचार या छेड़छाड़ जैसे मामले जनता में छवि के हिसाब से संवेदनशील मामले होते हैं. ऐसे मामलों में उलझने पर नेताओं को बचाना सरकार के लिये भी आसान नहीं होता.

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सुप्रसिद्ध पत्रकार एमजे अकबर, जो उस समय विदेश राज्यमंत्री थे, ‘मी टू’ के एक मामले में फंसे थे और उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा था. जबकि उनकी गिनती मोदी सरकार के काबिल मंत्रियों में होती थी. उनके खिलाफ यौन दुराचार का मामला भी वर्षों पुराना था. आरोप की पुष्टि हुई या नहीं, लेकिन अकबर को कुर्सी गंवानी पड़ी. शायद इसी सब वजह से बृजभूषण शरण सिंह ने रविवार को गोंडा में जनसभा की. वैसे तो जलसे का मकसद मोदी सरकार के नौ वर्ष पूरे होने की खुशी बताया गया, लेकिन बृजभूषण ने वहां जिस तरह से भाषण दिया उससे यह तो लग ही गया कि वे वफादारी और बगावत दोनों के तेवर दिखा रहे हैं. हालांकि, वह भूल जाते हैं, कि पहलवानों ने जिस तरह से पूरे दम-खम के साथ उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, और जिस तरह से हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान उनके समर्थन में जुटते जा रहे हैं, उस माहौल में सरकार यह कतई नहीं चाहेगी कि दिल्ली के आसपास की जनता का क्रोध वह एक सांसद को बचाने के लिए पनपने दे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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