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भिखारी ठाकुर की सर्जनात्मकता और ‘बिदेसिया’

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हम इस नाट्य कृति में उसी प्रकार की विविधता से साक्षात्कार कर पाते हैं. 'बिदेसिया' रचना भोजपुरी समाज के गीतों की तरह की दंतकथाओं, उपाख्यानों, दृष्टांतों या यहां तक कि हास्य जैसे प्रसंगों को केंद्रित या शामिल करने वाली विषयवस्तुओं की लोक
परंपराओं को संरक्षित करने का काम करती है.

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लोकजीवन व प्रवासन पर आधारित भिखारी ठाकुर का ‘बिदेसिया नाच’ (नाटक) आरंभिक रूप में गैर-व्यावसायिक और परंपरा-आधारित ग्रामीण रंगमंच को इंगित करता है. यह नाटक स्थानीय लोक पहचान और मूल संस्कृति में गहरी जड़ों के साथ नृत्य, संगीत और संवाद का मिश्रित कला-रूप है. यह नाट्य लिखित पटकथा पर भले ही है, किंतु इसके बजाय कलाकार की स्मृति और नवीन क्षमता पर अधिक निर्भर करता है. यहां संवाद से ज्यादा संगीत को तरजीह मिली है. लोक जीवन के लिए निर्मित और पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से प्रसारित होने वाले इस नाटक को आम तौर पर लोक का संवेदन कहा जा सकता है. भोजपुरी सभ्यता में, बोलने के समांतर अपनी आंतरिक भावनाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में विभिन्न इशारों (उदाहरण के लिए नृत्य) का उपयोग किया जाता रहा है. समय बीतने के साथ कुछ अन्य ध्वनियों का उपयोग आरंभ हुआ, जानवरों और साथी प्राणियों के साथ युद्ध में अपनी सफलता का मंडन हुआ और अपने दुखद विचारों को व्यक्त करने के लिए रोये. शारीरिक अभिव्यक्तियों और ध्वनि के उन परिष्कृत रूपों को सामंजस्यपूर्ण रूप से मिश्रित किया गया है, जो लोक जीवन की अंतरंग भाषाई कला बन गयी है.

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बिदेसिया नाटक की शुरुआत दैनंदिन जीवन के गीत और नृत्य के जादू समारोह की तरह हुई है. धीरे-धीरे अभिनय के तत्व नृत्य के साथ मिश्रित हो गये. वे तत्व लोगों की दैनिक गतिविधियों, जैसे जुताई, बुवाई, सोहर, विविध तीज त्योहार, सामान्य आदमी के मन को थाहने आदि की परिचिति थी. इस प्रकार बिदेसिया नाटक का व्यक्तित्व बना. इसलिए, कई लोककथाकारों ने इसके आधार को देखते हुए यह समालोचना उचारी कि नाटक में प्रवासी मन का लोक मन की युति से गहरा संबंध है. बिदेसिया का आधारभूत लोक समाज एक क्षेत्र में बिखरे हुए लोगों का एक सामान्य समूह है. यह नाटक अनुष्ठान, लोक, श्रम, समकाल व मिथक आदि को अपनी अभिव्यक्ति का आधार बनाता है. लोक नाटक की परंपरा शास्त्रीय से लोक की ओर प्रवाहित हुई. ‘बिदेसिया’ उसी का प्रतिफल है. स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान लोक रंगमंच अपनी लोकप्रियता में उच्च था. लोगों की अंतरात्मा जगाने के लिए लोक रंगमंच रूपों का उपयोग किया गया था. रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रसिद्ध स्वदेशी समाज भाषण में लोगों तक पहुंचने के लिए जात्रा, त्योहारों और गीतों के उपयोग की वकालत की थी. प्रख्यात तमिल कवि सुब्रमण्यम भारती ने आह्वान करने के लिए लोक संगीत का उपयोग करना शुरू किया. भिखारी ठाकुर ने भी यही किया.

भिखारी ठाकुर की रचनाएं सांस्कृतिक कलाकृतियां हैं. उनकी रचनाओं में सभी कलात्मक रूप और अभिव्यक्तियां शामिल हैं, जो भोजपुरी की विशिष्ट संस्कृति को प्रदीप्त करती हैं. लोक आधारित रचना एक विशिष्ट सर्जनात्मक आविष्कार है, जो सांस्कृतिक प्रथाओं और कहानी कहने की क्रिया के माध्यम से एक विशेष संस्कृति की सामूहिक चेतना द्वारा संरक्षित है. इस नाटक के कुछ सबसे सर्वव्यापी रूप- काव्य रूप, कथा रूप, गीत रूप और कहावतें हैं. बिदेसिया का काव्यात्मक रूप ऐतिहासिकता में लोक केंद्रित साहित्य के कुछ उन्नायक उदाहरणों में से हैं. बिदेसिया के गीत लय, धुन या संगीत पर सेट किये गये शब्दों के समूह हैं, जिन्हें गाया जाता है. लोक गीतों और सामाजिक कुरीतियों की कहानियों के अलावा लोककथाएं सभी आकारों और प्रकारों में आती हैं. हम इस नाट्य कृति में उसी प्रकार की विविधता से साक्षात्कार कर पाते हैं. ‘बिदेसिया’ रचना भोजपुरी समाज के गीतों की तरह की दंतकथाओं, उपाख्यानों, दृष्टांतों या यहां तक कि हास्य जैसे प्रसंगों को केंद्रित या शामिल करने वाली विषयवस्तुओं की लोक परंपराओं को संरक्षित करने का काम करती है.

बिदेसिया ने लिखित भाषा के समांतर लोककथा की सांस्कृतिक पहचान के विकास में प्रमुख भूमिका निभायी. हालांकि किताबों जैसे लिखित माध्यमों की लोकप्रियता के कारण लोकगीत अब सांस्कृतिक निर्माण का कम महत्वपूर्ण उपकरण होता जा रहा है, फिर भी यह समाज की अंतर्निहित चेतना को सूचित करना जारी रखता है. कथाएं शहरी किंवदंतियां और मौखिक पारिवारिक इतिहास सभी लोककथाओं के उदाहरण हैं, जो आधुनिक समाज में कायम हैं और धारणाओं को प्रभावित करते हैं. लोकप्रिय लोकगीत साहित्य रूपों में परीकथाएं, लोकगीत, कहावतें, दंतकथाएं, कविताएं, गीत, लंबी कहानियां, लोक कथाएं और मिथक शामिल हैं. लोककथाओं के कुछ उदाहरणों में ‘द ओडिसी’ जैसी महाकाव्य कविताएं और ‘बिंगो’ जैसे लोकगीत शामिल हैं. बिदेसिया ने नाटक की लिखितता व मौखिकता को जैसे एक कर दिया हो!

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