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Prabhat Khabar Exclusive: गुरुशरण लाल भदानी ने एक बेहतर सोच के साथ कंपनी की शुरुआत की थी. रामगढ़ जिला के भुरकुंडा और आसपास के इलाके में कोयला और लाइमस्टोन की भरमार थी. भट्ठी के लिए कोयले की आपूर्ति आसपास के इलाकों से हो जाती थी. सिलिका सैंड इलाहाबाद से मंगाया जाता था.

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Prabhat Khabar Exclusive: झारखंड (Jharkhand News) की राजधानी रांची से सटे रामगढ़ जिला में एक जगह है भदानीनगर (Bhadani Nagar). उद्योगपति गुरुशरण लाल भदानी (Guru Sharan Lal Bhadani) के नाम पर इस शहर का नाम भदानीनगर पड़ा. वर्ष 1952 में दूरदर्शी सोच के साथ गुरुशरण लाल भदानी ने यहां एक ग्लास फैक्ट्री की स्थापना की. अब फोर लेन सड़क के किनारे स्थित विश्व प्रसिद्ध फैक्ट्री आईएजी ग्लास कंपनी लिमिटेड (IAG Company Limited) अब बंद है. कई सालों से. कंपनी बंद हुई, तो सीधे तौर पर 1,300 से अधिक लोगों का रोजगार छिन गया. सवाल लाजिमी है कि जिस कंपनी का इतना शानदार इतिहास रहा है, वह बंद क्यों हुई?

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इलाहाबाद से आता था सिलिका सैंड

गुरुशरण लाल भदानी ने एक बेहतर सोच के साथ कंपनी की शुरुआत की थी. रामगढ़ जिला (Ramgarh District) के भुरकुंडा (Bhurkunda) और आसपास के इलाके में कोयला और लाइमस्टोन की भरमार थी. भट्ठी के लिए कोयले की आपूर्ति आसपास के इलाकों से हो जाती थी. सिलिका सैंड इलाहाबाद (Allahabad) से मंगाया जाता था. फैक्ट्री में बने माल की सप्लाई के लिए रेलवे लाइन बगल में था. हाई क्वालिटी ग्लास और इतनी सुविधाएं मिलीं, तो कंपनी ने काफी तरक्की की. हालांकि, कोयला कारोबारी भदानी को किन्हीं कारणों से कंपनी को बेचना पड़ा.

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1957 में इंडो असाही ने लिया फैक्ट्री का टेकओवर

पांच साल बाद वर्ष 1957 में इस कंपनी को भदानी ने इंडो असाही ग्लास कंपनी लिमिटेड (Indo Asahi Glass) कंपनी को बेच दिया. जापान की इस कंपनी ने जब आईएजी फैक्ट्री को टेकओवर किया, तो उसने श्रमिकों के हित में कई नीतियां बनायीं. उन्नत तकनीक की मदद से इस फैक्ट्री में हाई क्वालिटी के ग्लास बनने लगे. वर्ष 1987 में इस फैक्ट्री में एक और अत्याधुनिक प्लांट की स्थापना की गयी. एशिया की प्रसिद्ध ग्लास कंपनियों में शुमार इस कंपनी के उत्पाद की गुणवत्ता और बढ़ी. उस जमाने में इसके उत्पाद सात समंदर पार तक जाते थे. फलस्वरूप कंपनी का मुनाफा बढ़ा, श्रमिकों के जीवन में खुशहाली आयी.

2,000 कामगार थे एआईजी फैक्ट्री में

कंपनी में उस वक्त करीब 1,600 स्थायी कामगार थे. 400 अस्थायी कर्मचारी भी थे. कंपनी ने अपने श्रमिकों और कर्मचारियों को तकनीकी रूप से दक्ष बनाया, ताकि उत्पाद को बेहतर से और बेहतर बनाया जा सके. अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए क्वार्टर बनाये गये. इस फैक्ट्री की वजह से भदानीनगर शहर बस गया, जहां कंपनी के कर्मचारियों के लिए बाकायदा क्वार्टर्स बनाये गये. प्रत्यक्ष रूप से तो लोगों को रोजगार मिला ही, अप्रत्यक्ष रूप से भी हजारों लोगों को कमाई का जरिया मिल गया.

कंपनी की कैंटीन में 50 पैसे में मिलता था भरपेट भोजन

कंपनी ने अपने कर्मचारियों को कई तरह की सुविधाएं देती थी. कर्मचारियों को अच्छा-खासा बोनस मिल जाता था. कंपनी के कैंटीन में 6 पैसे में आलू चॉप, 6 पैसे में समोसा और 50 पैसे में भर पेट भोजन मिल जाता था. कंपनी ने अपने कर्मचारियों के बच्चों को भी फैक्ट्री में नौकरी देने की शुरुआत कर दी. आईएजी में काम करने वाले किसी कर्मचारी का 18 साल का बच्चा बेरोजगार नहीं रहता था. कंपनी में ही उसे नौकरी मिल जाती थी. यही वजह थी कि कंपनी दिन-दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही थी.

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नयी सहस्राब्दि में बढ़ने लगीं कंपनी की चुनौतियां

वर्ष 2000 आते-आते कई ग्लास फैक्ट्रियां खुल गयीं. इससे ग्लास कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ी. त्रिवेणी ग्लास, गुजरात गार्जियन समेत कई कंपनियां खुल गयीं. इंडो असाही के ग्लास महंगे थे. अन्य कंपनियों ने सस्ते में ग्लास बेचना शुरू किया. आईएजी ने भी प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए अपने उत्पाद की कीमतें कम कर दीं. फलस्वरूप उसे घाटा होने लगा. जापानी कंपनी ज्यादा दिनों तक नुकसान झेलने के लिए तैयार नहीं थी. उसने इस फैक्ट्री को राधेश्याम खेमका और लक्ष्मी खेमका के हाथों बेच दिया.

क्वालिटी के लिए प्रसिद्ध कंपनी में बनने लगे घटिया उत्पाद

राधेश्याम खेमका और लक्ष्मी खेमका दिल्ली में शीशा के बहुत बड़े व्यापारी थे. वर्ष 1999 में उन्होंने फैक्ट्री को टेकओवर किया. पांच साल तक किसी तरह कंपनी चलती रही. बाद में उन्होंने ग्लास की गुणवत्ता की बजाय अपने मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया. नतीजा यह हुआ कि घटिया से घटिया माल बाजार में सप्लाई करने लगे. बेस्ट क्वालिटी का ग्लास सप्लाई करने वाली कंपनी के उत्पाद की गुणवत्ता खराब हुई, तो उसकी बिक्री भी प्रभावित हुई. खेमका बंधुओं ने आखिरकार वर्ष 2004 में कंपनी को बंद कर दिया.

खुलती और बंद होती रही आईएजी की फैक्ट्री

आईएजी कंपनी लिमिटेड को बंद किये जाने के विरोध में खूब हंगामा हुआ. महीनों तक कामगारों ने आंदोलन किये. झारखंड सरकार के नेता के साथ-साथ विपक्षी दलों के नेता भी यहां आये. लोगों को आश्वासन दिया कि कंपनी बंद नहीं होगी. लेकिन, सच यह था कि कंपनी बंद हो चुकी थी. वर्ष 2008 में फैक्ट्री को फिर से खोला गया. छत्तीसगढ़ के व्यापारी विजय जोशी ने फैक्ट्री को चालू किया, लेकिन एक साल बीतने से पहले ही वर्ष 2009 में आईएजी फैक्ट्री बंद हो गयी. वर्ष 2011 में इसे फिर से शुरू किया गया और 2012 में बंद कर दिया गया. वर्ष 2014 में 6 महीने के लिए यह फैक्ट्री खुली. वर्ष 2015 में आखिरी बार इस फैक्ट्री को खोला गया और अक्टूबर 2016 में यह बंद हो गयी. तब से यह फैक्ट्री बंद पड़ी है.

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कंपनी को कलकत्ता हाईकोर्ट में घसीटा गया

आईएजी ग्लास फैक्ट्री को चलाने वाली कंपनी पर श्रमिकों के साथ-साथ रॉ मटेरियल की सप्लाई करने वालों के साथ-साथ ट्रांसपोर्टर्स का भी बकाया था. इनमें से एक ने कलकत्ता हाईकोर्ट में इस कंपनी के खिलाफ मुकदमा दायर कर दिया. कलकत्ता हाईकोर्ट ने कंपनी को नोटिस भेजा. बावजूद इसके, किसी के बकाया राशि का भुगतान नहीं हुआ. लिक्विडेशन की प्रक्रिया शुरू हुई और लिक्विडेटर की नियुक्ति कर दी गयी. हालांकि, इस फैक्ट्री के वर्तमान मालिक विजय जोशी ने कहा है कि वह बकाया राशि का भुगतान करेंगे. जोशी ने कलकत्ता हाईकोर्ट से अपील की है कि इस कंपनी को लिक्विडेशन से बाहर निकाला जाये. वे बीआईएफआर में भी जा चुके हैं. उनका दावा है कि बीआईएफआर में जो कंपनी रहती है, उसको लिक्विडेशन में नहीं डाला जा सकता.

अब आगे क्या हैं संभावनाएं

अगर कलकत्ता हाईकोर्ट विजय जोशी के तर्क को स्वीकार कर लेता है, तो फैक्ट्री को लिक्विडेशन की प्रक्रिया से बाहर कर दिया जायेगा. ऐसे में जोशी आईएजी कंपनी लिमिटेड की फैक्ट्री के सामान को स्क्रैप में बेचकर बकायेदारों का पैसा चुका सकते हैं. फैक्ट्री को फिर से शुरू कर सकते हैं. लेकिन, इसके लिए फैक्ट्री में बड़े निवेश की जरूरत है. बाजार से कंपीट करने के लिए नयी तकनीक की जरूरत होगी. अगर विजय जोशी इस फैक्ट्री को फिर से शुरू करते हैं, तो भदानीगनर और आईएजी के कामगारों और इस क्षेत्र के लोगों को नये सिरे से रोजगार के अवसर मिलेंगे.

रिपोर्ट- राज कुमार सिंह, भदानीनगर, रामगढ़

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