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बनारसी लंगड़ा आम और पान को मिला GI टैग, अब अंतरराष्ट्रीय बाजार में होगी दमदार ब्रांडिंग, ये उत्पाद भी शामिल…

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काशी क्षेत्र के जिन चार कृषि एवं उद्यान से संबंधित उत्पादों को जीआई टैग मिला है, उनमें बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भंटा, बनारसी पान और आदमचीनी चावल शामिल है. इन उत्पादों को जीआई टैग मिलने से इनके कारोबार से जुड़े लोगों को काफी फायदा होगा. अब यह इस क्षेत्र की विशेष पहचान के तौर पर लोकप्रिय होंगे.

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Varanasi: काशी ने जीआई को लेकर अपना दबदबा कायम किया है. यहां के खास बनारसी लंगड़ा आम, बनारसी पान, रामनगर के भंटा ‘सफेद बड़ा गोल बैंगन’ और आदमचीनी चावल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग (GI) मिला है. इसी के साथ उत्तर प्रदेश की झोली में 11 और जीआई टैग आए हैं. अब काशी क्षेत्र में कुल 22 और यूपी में 45 जीआई उत्पाद दर्ज हो गए हैं. इस माह के अंत तक 9 और उत्‍पादों को जीआई टैग मिलने की उम्मीद है.

जीआई टैग के साथ दुनिया के बाजार में अब देंगे प्रभावी दस्तक

प्रदेश के 11 उत्पादों को इस वर्ष जीआई टैग मिला है. इनमें सात प्रोडक्ट प्रदेश सरकार की ‘एक जिला एक उत्पाद योजना’ से संबंधित हैं. वहीं काशी क्षेत्र के जिन जिन चार कृषि एवं उद्यान से संबंधित उत्पादों को जीआई टैग मिला है, उनमें बनारसी लंगड़ा आम (जीआई पंजीकरण संख्या- 716), रामनगर भंटा (717), बनारसी पान (730) और आदमचीनी चावल (715) शामिल है. इन उत्पादों को जीआई टैग मिलने से इनके कारोबार से जुड़े लोगों को काफी फायदा होगा, अब यह इस क्षेत्र की विशेष पहचान के तौर पर दुनिया में लोकप्रिय होंगे. अब बनारसी लंगड़ा आम जीआई टैग के साथ दुनिया के बाजार में नजर आएगा.

25 हजार करोड़ से अधिक का सालाना कारोबार

बताया जा रहा है कि वाराणसी एवं पूर्वांचल के सभी जीआई उत्पादों में कुल 20 लाख लोग शामिल हैं. इन उत्पादों को लेकर लगभग 25,500 करोड़ का सालाना कारोबार होता है. नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) उप्र के सहयोग से कोविड 19 के दौर में उत्तर प्रदेश के 20 उत्पादों का जीआई आवेदन किया गया था. अब लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद 11 जीआई टैग प्राप्त होना बड़ी कामयाबी माना जा रहा है.

नौ अन्य उत्पाद भी उपलब्धि हासिल करने की रेस में

इसके साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि मई के अन्त तक नौ अन्य उत्पाद भी जीआई टैग हासिल कर लेंगे. इनमें बनारस का लाल पेड़ा, तिरंगी बर्फी, बनारसी ठंडई और बनारस लाल भरवा मिर्च के साथ चिरईगांव का करौंदा है.

इससे पहले बनारस एवं पूर्वांचल से 18 जीआई रहे हैं, जिनमें बनारस ब्रोकेड एवं साड़ी, हस्तनिर्मित भदोही कालीन, मीरजापुर हस्तनिर्मित दरी, बनारस मेटल रिपो जी क्राफ्ट, वाराणसी गुलाबी मीनाकारी, वाराणसी वुडन लेटर वेयर एंड टॉयज, निजामाबाद ब्लैक पॉटरी, बनारस ग्लास बीड्स, वाराणसी साफ्टस्टोन जाली वर्क, गाजीपुर वॉल हैंगिंग, चुनार बलुआ पत्थर, चुनार ग्लेज पॉटरी, बनारस जरदोजी, बनारस हैण्ड ब्लाक प्रिंट, बनारस वुड कार्विंग, मीरजापुर पीतल बर्तन, मऊ साड़ी, गोरखपुर टेराकोटा क्राफ्ट भी शुमार है.

क्या होता है जीआई टैग

किसी भी क्षेत्रीय उत्पाद की वहां खास पहचान होती है. उस उत्पाद की ख्याति जब देश-दुनिया में फैलती है तो उसे प्रमाणित करने के लिए एक प्रक्रिया होती है, जिसे जीआई टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (Geographical Indications) कहते हैं. इसे हिंदी में भौगोलिक संकेतक नाम से जाना जाता है.

1999 में बना अधिनियम

संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया, जिसे अंग्रेजी में Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा गया. इसे 2003 में लागू किया गया. इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ.

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