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Azadi Ka Amrit Mahotsav: हजारीबाग में आंदोलन के नायक थे केबी सहाय

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Azadi Ka Amrit Mahotsav: स्वतंत्रता सेनानी के रूप में केबी सहाय का व्यक्तित्व संघर्षशील था. वह एक जुझारू कांग्रेस कार्यकर्ता भर नहीं थे, बल्कि उनमें राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी. उन्होंने कठिन परिस्थितियों में भी राह बनाने में सफलता पायी. हजारीबाग में होनेवाले हर आंदोलन में वह केंद्रीय भूमिका में रहते थे. उन्होंने चुनावी दंगल में भी बड़े-बड़े राजनेताओं को धूल चटायी. वह लोकहित में निर्णय लेने में काफी आगे थे. उनकी इन्हीं विशेषताओं ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर नयी पहचान दिलायी. यहां तक कि उन्हों‍ने 1963 में संयुक्त बिहार का मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया. वह भारतीय संविधान सभा के सदस्य भी थे. तीन जून 1974 को सिंदूर (हजारीबाग-पटना मार्ग पर) के पास सड़क हादसे में उनकी मौत हो गयी.

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झारखंड की उन्नति में रहा अहम योगदान

संयुक्त बिहार के सीएम रहे कृष्ण बल्लभ सहाय उन नेताओं में शुमार थे, जिन्होंने बिहार के साथ हीमौजूदा झारखंड की उन्नति में अहम योगदान दिया. उनका जन्म पटना के शेखपुरा में 31 दिसंबर 1898 में कायस्थ परिवार में हुआ था. उनका बचपन हजारीबाग में बीता. शिक्षा-दीक्षा भी हजारीबाग में हुई. संत कोलंबस कॉलेज से अंग्रेजी में स्नातक किया. इसी सरजमीं से उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष शुरू किया. गांधी जी के नेतृत्व में हुए सभी आंदोलनों – असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन में उनकी अहम भागीदारी रही.

किसानों की लड़ाई का नेतृत्व किया

केबी सहाय शुरुआती दौर 1919 में अमृत बाजार पत्रिका अखबार के लिए हजारीबाग से रिपोर्टिंग करते थे. असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने न केवल अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में भाग लिया, बल्कि किसान आंदोलन को भी आगे बढ़ाया. जमींदारों और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किसानों की लड़ाई का नेतृत्व किया. उन्होंने झारखंड के हजारीबाग, चतरा, कोडरमा, गोमिया, बोकारो, गिरिडीह समेत पूरे उत्तरी छोटानागपुर में अहसयोग आंदोलन को गति दी. गांव-गांव जाकर उन्होंने आम लोगों के साथ-साथ किसानों को भी जागरूक कर संगठित किया.

जेपी को हजारीबाग जेल से भगाने में भूमिका निभायी

केबी सहाय ने 1928 में साइमन कमीशन के विरोध का हजारीबाग में नेतृत्व किया. तब आंदोलन में वह पहली बार गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गये. इसके बाद तो उनका जेल आने-जाने का सिलसिला जारी रहा. 1930 से 1934 के बीच लगभग चार बार गिरफ्तार किये गये. नौ और दस नवंबर 1942 को दीपावली की रात उन्होंने हजारीबाग केंद्रीय कारा में बंद जयप्रकाश नारायण और उनके सहयोगियों को जेल से भगाने में अहम भूमिका निभायी. इस घटना का उल्लेख प्रसिद्ध लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी ने अपनी पुस्तक और जेपी जेल से बाहर में किया है.

1925 में बिहार विधान परिषद के सदस्य बने

स्वतंत्रता आंदोलन के समय 1925 में केबी सहाय होम रूल के तहत बिहार विधान परिषद के सदस्य बनाये गये. 1937 में कांग्रेस ने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत सरकार में भागीदारी का फैसला लिया. इसी एक्ट के तहत उन्हें बिहार मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव बनाया गया. अंग्रेजों द्वारा बढ़ायी गयी मालगुजारी को उन्होंने वापस लिया और समान मालगुजारी की दर में भी कटौती की. उन्होंने समाज के दलित वर्ग के पक्ष में भूमि संबंधी कई निर्णय लिये. दलितों के हक के लिए संघर्ष करते रहे और उनकी आवाज बन गये थे. जमींदारी उन्मूलन के संघर्ष में केबी सहाय अभिमन्यु की तरह अकेले थे.

शाहाबाद में किसानों की आमसभा की

केबी सहाय ने 11 मई 1942 को शाहाबाद कुदरा में विशाल किसान आमसभा आयोजित की थी. इसमें डॉ राजेंद्र प्रसाद शामिल हुए. यह किसान आमसभा अभूतपूर्व थी. इसकी सफलता से प्रेरित होकर श्री कृष्ण सिन्हा ने केबी सहाय को अपने जिला मुंगेर आमंत्रित किया. मुंगेर के तारापुर के बिनौली राज के किसानों पर हो रहे जुल्म को लेकर रैली निकाली गयी थी. इसका नेतृत्व केबी सहाय ने किया. स्वतंत्रता सेनानी जेबी कृपलानी ने रैली में हिस्सा लिया था. रैली से आसपास के किसानों में जागरूकता आयी और वह अपने ऊपर होनेवाले जुल्म के खिलाफ एकजुट हुए.

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