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Election Results 2023: मध्य प्रदेश में कांग्रेस की करारी हार, पढ़ें खास रिपोर्ट

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‘इंडिया’ गठबंधन की बैठकों में जब लोकसभा चुनाव के लिए सीटों पर चर्चा होगी, तब कांग्रेस के लिए अपनी मांगें मनवाना पाना मुश्किल होगा. कांग्रेस नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगेंगे. राहुल गांधी मध्य प्रदेश में डेढ़ सौ सीटों का दावा कर रहे थे, पर उसकी आधी सीटें भी नहीं मिल सकीं.

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मध्य प्रदेश के हैरतअंगेज नतीजों के कुछ प्रमुख कारण हैं. पहली वजह है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लाडली बहन योजना. अधिकतर पत्रकारों और विश्लेषकों से इसे कम कर आंका था, पर जमीन पर इस योजना का बहुत प्रभाव रहा है. दूसरी वजह है, जो मध्य प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ पर भी लागू होती है, भाजपा का हिंदुत्व पर जोर. प्रधानमंत्री मोदी ने छत्तीसगढ़ की सभाओं में भी राजस्थान के कन्हैया लाल मामले का उल्लेख किया था. सनातन को लेकर उठे विवाद को भी भाजपा लगातार हवा देती रही. उत्तर भारत के ये तीनों राज्य हिंदू-बहुल हैं. तीसरा मुख्य कारण मेरी राय में मोदी-शाह की रणनीति, जिसमें चौंकाने वाले निर्णय होते हैं और जोखिम उठाने से परहेज नहीं किया जाता है. इस रणनीति के तहत केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा का चुनाव लड़ाना भी शामिल है. जब यह निर्णय लिया गया था, तब यही कहा गया कि भाजपा को अपनी हार दिख रही है, इसलिए ऐसा करना पड़ रहा है. लेकिन अब वह निर्णय सफल होता दिखाई दे रहा है.

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इसके बरक्स आप कांग्रेस को देखें, तो वह लगातार जनता के मुद्दों को आगे रखती रही. तीन साल से कमलनाथ और दिग्विजय सिंह समेत विभिन्न नेता सक्रिय भी रहे थे. पार्टी ने मध्य प्रदेश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, व्यापम, नरसिंह घोटाला, पटवारी घोटाला जैसे मसलों को भी खूब उठाया. कांग्रेस ने पूरी कोशिश की कि हिंदुत्व की पिच पर चुनाव न लड़ना पड़े. पर बीच-बीच में सॉफ्ट हिंदुत्व की रणनीति को भी पार्टी ने अपनाया. कमलनाथ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री को भागवत कथा के लिए छिंदवाड़ा बुलाया. ऐसी बात लोगों के गले नहीं उतरी. अगर मतदाता को हिंदुत्व ही चुनना होगा, तो वह भाजपा के कट्टर हिंदुत्व को चुनेगा, न कि सॉफ्ट हिंदुत्व को. कांग्रेस की एक चूक यह भी रही है कि अखिल भारतीय स्तर पर बने ‘इंडिया’ गठबंधन को लेकर कमलनाथ नाखुश दिखे और उन्हें लगा कि प्रदेश में वे बिना किसी अन्य दल के सहयोग के सरकार बना लेंगे. उन्होंने कैमरे के सामने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के बारे में बेमतलब टीका-टिप्पणी भी की. कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के बारे में भी कह दिया कि दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ो, उनके नहीं. इससे यह संकेत भी गया कि कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ रही है.

जहां मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार थी, वहीं छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें थीं. जो जन कल्याण की योजनाएं, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी ‘रेवड़ियां’ कहते हैं, मध्य प्रदेश में चल रही थीं, वैसी ही ‘रेवड़ियां’ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी बंट रही थीं. छत्तीसगढ़ में सभी कह रहे थे कि भाजपा लड़ाई में नहीं है. प्रदेश नेतृत्व घर बैठा हुआ था. पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह चुनाव से पहले कहीं सक्रिय नहीं थे. प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा जा रहा था. वैसे प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर तीनों ही राज्यों में चुनाव लड़ा जा रहा था. पर छत्तीसगढ़ में जो नतीजे आये हैं, उन पर मनन होना चाहिए. मध्य प्रदेश की जिन लोक-लुभावन नीतियों को जनता ने स्वीकार किया, वैसा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में क्यों नहीं हुआ, यह विचारणीय है.

निश्चित रूप से यह कांग्रेस की करारी हार है. ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठकों में जब लोकसभा चुनाव के लिए सीटों पर चर्चा होगी, तब कांग्रेस के लिए अपनी मांगें मनवाना पाना मुश्किल होगा. कांग्रेस नेतृत्व पर भी सवालिया निशान लगेंगे. राहुल गांधी मध्य प्रदेश में डेढ़ सौ सीटों का दावा कर रहे थे, पर उसकी आधी सीटें भी नहीं मिल सकीं. पत्रकारों और विश्लेषकों के लिए भी ये परिणाम सबक हैं. जो लोग जनता के बीच में जाकर रिपोर्टिंग कर रहे थे और मतदाताओं के मन को समझने की कोशिश कर रहे थे, उन सभी के आकलन तीनों ही राज्यों में गलत साबित हुए हैं. मतदाताओं को समझने-पढ़ने और जमीनी हलचलों को पकड़ने के लिए उन्हें नयी भाषा और व्याकरण को खोजना होगा.

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