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14 Phere Movie Review: कमजोर क्लाइमेक्स इस पारिवारिक फ़िल्म को औसत कर गया..

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14 Phere Movie Review: शादियों पर फ़िल्म बनाना बॉलीवुड का पुराना और हिट फार्मूला रहा है. युवा निर्देशक देवांशु सिंह ने भी अपनी फ़िल्म 14 फेरे में इसी फॉर्मूले को चुना है. लेकिन समाज में अंतरजातीय विवाह पर रूढ़िवादी सोच पर यह हल्की फुल्की कॉमेडी फिल्म बिना किसी भाषणबाजी के चोट भी करती है.

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फ़िल्म – 14 फेरे

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निर्देशक- दिव्यांशु सिंह

प्लैटफॉर्म-ज़ी 5

कलाकार- विक्रांत मैसी, कृति खरबंदा, गौहर खान,

विनीत कुमार, जमील खान,यामिनी दास और अन्य

रेटिंग ढाई

14 Phere Movie Review: शादियों पर फ़िल्म बनाना बॉलीवुड का पुराना और हिट फार्मूला रहा है. युवा निर्देशक देवांशु सिंह ने भी अपनी फ़िल्म 14 फेरे में इसी फॉर्मूले को चुना है. लेकिन समाज में अंतरजातीय विवाह पर रूढ़िवादी सोच पर यह हल्की फुल्की कॉमेडी फिल्म बिना किसी भाषणबाजी के चोट भी करती है. संदेशप्रद इस फ़िल्म का विषय और ट्रीटमेंट अच्छा है लेकिन स्क्रीनप्ले की कुछ खामियां रह गयी हैं जिससे यह फ़िल्म उम्दा बनते बनते रह गयी.

दिल्ली के एक कॉलेज की रैगिंग में बिहार का राजपूत लड़का संजय सिंह( विक्रांत मैसी) और जयपुर की जाटनी अदिति ( कृति खरबंदा) एक दूसरे से टकराते हैं. जल्द ही जो प्यार में बदल जाती है. दोनों के कास्ट अलग हैं लेकिन दिल मिल गए हैं. वो भी ऐसा वाला प्यार हुआ है जो परिवार के लिए कुर्बान नहीं किया जा सकता है और ना ही प्यार के लिए परिवार छोड़ा जा सकता है.

ऐसे में दोनों प्लान बनाते हैं कि थिएटर के एक्टर्स को मां बाप बनाकर और सरनेम बदलकर पहले अदिति संजय के घर जाकर उससे शादी करेगी. फिर संजय वही नकली मां बाप लेकर अदिति के घर जाकर उससे शादी करेगा. कुलमिलाकर अपनी शादी के लिए 14 फेरे शादी के लिए इस प्रेमी जोड़े को लगाने हैं. क्या संजय और अदिति के फेरे पूरे होंगे. जितनी आसानी से उन्होंने प्लान बनाया है. यही फ़िल्म की आगे की कहानी है.

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कंफ्यूजन की कॉमेडी वाले जॉनर से इस सिंपल रोमांटिक फ़िल्म की कहानी को कहा गया है. कांसेप्ट नया नहीं है लेकिन उसे पेश करने की कोशिश अच्छी है. फ़िल्म की लंबाई 1 घंटे 51 मिनट की है. जिससे फ़िल्म में शुरू से आखिर तक रुचि बरकरार रहती है. फ़िल्म को जबर्दस्ती लंबा करने की कोशिश नहीं की गयी है. यह इस बात से ही समझा जा सकता है कि अदिति और संजय के पहली मुलाकात से लेकर उनके लिव इन में रहने को एक गाने में समेट दिया गया है.

लेकिन हां थोड़ा और ड्रामा की ज़रूरत थी. खासकर क्लाइमेक्स वाले दृश्य में सबकुछ बहुत आसानी से ठीक हो जाता है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स एकदम हड़बड़ी में खत्म किया हुआ सा लगता है. वही बात इस फ़िल्म को औसत बना देती है.

फ़िल्म हल्की फुल्की है लेकिन मुद्दे गंभीर वाले समेटे हुए हैं. अंतरजातीय विवाह,ओनर किलिंग के साथ साथ दहेज प्रथा और लड़कियों पर लगायी गयी समाज और परिवार की तरह तरह की पाबंदियों पर भी चर्चा हुई है. अदिति का किरदार जब संजय को बताती है कि उसके पिता हमेशा उसे चोटी बांधकर रहने को कहते थे. अगर उसने अंतरजातीय विवाह कर लिया तो छोटी बहन की पढ़ाई छुड़वाकर उसकी शादी कर दी जाएगी. फ़िल्म में आज की पीढ़ी की बदलती सोच को संजय के किरदार के ज़रिए दिखाया गया है. लेकिन ये भी बताया गया है कि आज की पीढ़ी भी परिवार की अहमियत को जानती है और मानती है.

अभिनय की बात करें तो फ़िल्म की कास्टिंग फ्रेश है. विक्रांत मैसी हर फिल्म से अपने स्टारडम की ओर कदम बढ़ाते जा रहे हैं. इस फ़िल्म में भी उन्होंने शानदार अभिनय किया है. कृति खरबंदा ने उनका अच्छा साथ दिया है. गौहर खान को फ़िल्म में ओवर एक्टिंग करनी थी और वो उन्होंने अपने अभिनय में बखूबी की है. विनीत कुमार,यामिनी दास, जमील खान सहित बाकी के सभी किरदारों ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय है.

फ़िल्म का गीत संगीत कहानी के अनुरूप है. रेखा भारद्वाज की आवाज़ में गाया गया राम सीता गीत फ़िल्म को अलग ही रंग भरता है. फ़िल्म में कई गाने हैं लेकिन अच्छी बात है ये है कि उन्होंने फिल्म के नरेशन को स्लो नहीं किया है बल्कि कहानी को आगे बढ़ाते हैं. फ़िल्म के संवाद अच्छे हैं लेकिन कॉमेडी की कमी आखिर के आधे घंटे में अखरती है. फ़िल्म का बाकी पक्ष ठीक ठाक है. कुलमिलाकर यह फैमिली एंटरटेनिंग फ़िल्म एक बार देखी जा सकती है.

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