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13 August 1942: कटिहार में गुमनामी में खोकर रह गयी आजादी के जांबाज सपूतों की शहादत

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13 August 1942: कटिहार से अजीत कुमार ठाकुर : ''हम लाख तसल्ली देते हैं, बेताब मगर हो जाता है, इक हुक-सी दिल में उठती है और चाक जिगर हो जाता है....'' शायर की यह उक्ति उन पुरखों के आजाद भारत के सपने पर सटीक बैठती है, जिसने भारत की आजादी में सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. देश आजादी के जंग लड़नेवाले उन वीर सपूतों को क्या पता था कि जिस देश की आजादी की जंग वह लड़ रहे हैं. उसकी भावी पीढ़ियां उसे पहचान देने और याद करने से भी गुरेज कर लेगी. भावी पीढ़ियां सहज ही उन वीर सपूतों को भूल गयी. अलबत्ता स्वतंत्रता के सेनानी भी आजाद भारत में उनकी शहादत को सहज भूला दिये.

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कटिहार से अजीत कुमार ठाकुर : ”हम लाख तसल्ली देते हैं, बेताब मगर हो जाता है, इक हुक-सी दिल में उठती है और चाक जिगर हो जाता है….” शायर की यह उक्ति उन पुरखों के आजाद भारत के सपने पर सटीक बैठती है, जिसने भारत की आजादी में सर्वस्व न्योछावर कर दिया था. देश आजादी के जंग लड़नेवाले उन वीर सपूतों को क्या पता था कि जिस देश की आजादी की जंग वह लड़ रहे हैं. उसकी भावी पीढ़ियां उसे पहचान देने और याद करने से भी गुरेज कर लेगी. भावी पीढ़ियां सहज ही उन वीर सपूतों को भूल गयी. अलबत्ता स्वतंत्रता के सेनानी भी आजाद भारत में उनकी शहादत को सहज भूला दिये.

गुमनामी के अंधेरे के धुंध में भारत मां के अनेको वीर सपूतों की कुर्बानी खोकर रह गयी. महात्मा गांधी के ‘करो या मरो’ के शंखनाद पर गंगा पार के उत्तरी भाग के क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आम आवाम के बीच जो मशालें जली थीं. उसी मशाल की जंग का परवाज लिये क्रांतिकारियों ने देवीपुर के समीप 13 अगस्त, 1942 को रेल लाइन की पटरी को उखाड़ते हुए अंग्रेजों के विरुद्व मोरचाबंदी की थी. अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस की चेतावनी और बरसती गोलियां क्रातिकारियों को आजादी के जंग के जज्बातों को तोड़ नहीं सकी थी.

भारत मां के जयकारे के गुंज के बीच बरसती गोलियों से बेपरवाह होकर आजादी के परवानों ने रेल पटरी पर खुद को भारत के आजादी के लिए हंसते-हंसते प्राणों को न्योछावर कर दिया था. नक्षत्र मालाकार जैसे सेनानियों में देश आजादी के जंग का जो जोश और जज्बा था. उसने रेल पटरी उखाड़ते हुए क्रांतिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस की छोड़ी जा रही गोलियों से पीछे नहीं हटने दिया.

वीर क्रातिकारियों ने पुलिस की गोली खाकर भी अंग्रेजी हुक्मरानों के छक्के छुड़ा डाले थे. विदेशी हुक्मरानों से भारत को आजादी मिली. मगर देश आजादी में देवीपुर रेल पटरी पर शहादत देनेवाले शहीदों की पहचान गुमनामी के अंधेरे में खो कर रह गयी. देश आजाद होने की खुशी में भारत मां के लिए जिंदगी कुर्बान करनेवाले शहीदों को नाम पहचान देने की किसी ने सुधी नहीं ली.

भारत के आजाद होने के सत्तर वर्षों से अधिक गुजरने के बाद उन शहीदों में कई के नाम पते आज भी अज्ञात है. किसान संघ के प्रयास से शहादत देनेवाले उन शहीदों में नटाय परिहार, रमचू यादव, धथूरी मोदी, लालजी मंडल, जागेश्वर महलदार का नाम पता ज्ञात हो सका है. रेल पटरी देवीपुर में शहादत देने वालों की संख्या आठ बतायी जाती है. इनमें तीन के नाम पते अब तक अज्ञात बने हुए हैं.

हकीकत में वैसे शहीदों की संख्या का पुख्ता आधार सामने नहीं आ सका है. देश पर मरने मिटनेवाले शहीदों के नाम गुमनामी में खोने से उन वीर सपूतों के आजाद भारत के सपने के अर्थ को झुठला दिया है. माना जाना है कि देवीपुर में शहादत देनेवालों की संख्या संभावनाओं पर अधारित है. उनकी संख्या, नाम और पते स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानी नहीं तलाश पाये, तो अब आजादी के इतने सालों के बाद कौन इसे ज्ञात करेगा. स्वतंत्रता आंदोलन में देवीपुर रेल पटरी पर अंग्रेज और क्रांतिकारी के बीच संघर्ष बलिदान की तिथियां भी भ्रमित थी. इसे बाद में सुधारा जा सका है.

किसान संघ ने की शहीदों के नाम की पहचांन

किसान संघ के प्रयास से देवीपुर के अज्ञात शहीदों में कुछ के नाम पते ज्ञात हो सके. तत्कालिक राज्यसभा सदस्य नरेश यादव की तत्परता और संघ के अध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह के प्रयासों से पांच शहीदों के नाम पते ढूंढ़े जा सके. शहीदों के नाम बाहर आने के बाद शहादत स्थल देवीपुर रेल लाइन के समीप छोटे स्मारक चिह्न बना कर शहीद रमचू यादव, नटाय परिहार, धथूरी मोदी, लालजी मंडल, जागेश्वर महलदार को प्रतिवर्ष राजनीतिक, सामाजिक लोगों प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा श्रद्वांजलि दी जाती है. अफसोस इस बात का है कि शहीदों के शहादत स्थल पर ऐतिहासिक यादगार के लिए स्मारक भी आज तक नहीं बन पाया है.

Posted By : Kaushal Kishor

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