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14 वर्ष के बच्चे पर गेमिंग डिसऑर्डर की मार, रांची में चल रहा मानसिक इलाज

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Gaming Disorder: गेमिंग डिसऑर्डर की बीमारी तब होती है, जब व्यक्ति गेम खेलने का आदी हो जाता है, चाहकर भी उसकी गेम खेलने की आदत नहीं छूट पाती.

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Gaming Disorder: झारखंड के एक 14 वर्षीय लड़के को ऑनलाइन गेमिंग की लत इस तरह लगी कि उसे रांची के मानसिक अस्पताल रिनपास में इलाज कराना पड़ रहा है. अगर आप भी अपने बच्चे की इस लत के बारे में सचेत नहीं हैं तो भुगतने के लिए तैयार रहिए. आपको लगता है कि आपका बच्चा मोबाइल पर न रील देखता है और न ही कोई दूसरा वीडियो तब भी आप गफलत में हैं. वह चौरी-छिपे भी ऐसा कर सकता है या फिर किसी दूसरे की मोबाइल से भी इस लत को अपना सकता है. इसलिए वक्त रहते आपका संभलना क्यों जरूरी है, इस रिपोर्ट से जानिए…

झारखंड के जिस बच्चे को इसी साल फरवरी से ऑनलाइन गेमिंग की लत के कारण मानसिक इलाज कराना पड़ रहा है, उसके अभिभावकों पर क्या बीत रही होगी, इसका सहज अंदाजा लगा सकते हैं. शहरी मध्यम वर्ग का यह 14 वर्षीय लड़का ( प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए लड़के का नाम डिस्क्लोज नहीं कर सकते) ऑनलाइन गैंबलिंग में पैसों की लालच में फंसा था. शुरू में कमाई देख इतना मजा आया कि अपने परिवार और फिर दोस्तों से भी पैसे कर्ज लेकर इसमें लगाने लगा. लगातार ऐसा करते हुए उसने कुल ढाई लाख रुपये ऑनलाइन गैंबलिंग के जरिए गंवा दी. फिर देनदारों का तगादा आने लगा. पैसे लौटाने में असमर्थ होने और इस कारण लगातार हो रही बेइज्जती को देख लड़का पागलों जैसा व्यवहार करने लगा. रिनपास ( Ranchi Institute of Neuro-Psychiatry & Allied Sciences ) के मनोचिकित्सक डॉ. सिद्धार्थ सिन्हा के अनुसार, अभी तक 4 से 5 केस गेमिंग डिसऑर्डर के आ चुके हैं. हालांकि गेमिंग डिसऑर्डर के केसेज अभी ऑनकॉमन हैं. फिर भी अगर हम सही समय पर सही कदम नहीं उठाए तो यह समस्या काफी गंभीर हो सकती है.

गेमिंग डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानता है. गेमिंग डिसऑर्डर की बीमारी तब होती है, जब व्यक्ति गेम खेलने का आदी हो जाता है, चाहकर भी उसकी गेम खेलने की आदत नहीं छूट पाती. इस लत के कारण उसका काम, नींद, डाइट या यूं कहें कि पूरी लाइफस्टाइल प्रभावित होने लगती है. अगर इसे और सरल तरीके से समझे तो जब गेमिंग की आदत व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन, रिश्तों, काम, पढ़ाई या अन्य महत्वपूर्ण चीजों को प्रभावित करने लगे तो समझ जाइए कि वह गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो चुका है.

Dr. Siddhartha Sinha
Dr. Siddhartha sinha | rinpas

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में 25 करोड़ भारतीय ऑनलाइन गेम से जुड़े हुए थे. साल 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 42 करोड़ हो गया था. साल 2018 में WHO ने आधिकारिक तौर पर गेमिंग डिसऑर्डर को एक खराब मानसिक स्थिति के रूप में स्वीकार किया. इस डिसऑर्डर को रोगों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण यानी ICD-11 में जोड़ा. WHO के ICD-11 का मतलब है International Classification of Diseases और 11 का मतलब है कि ICD में 11 वीं बार संशोधन.

बीसीए स्टूडेंट उत्कर्ष मिश्रा, जो पहले एक गेमर हुआ करते थे, प्रभात खबर को बताते हैं कि जब वे गेमिंग करते थे तो उनकी पढ़ाई पर काफी असर पड़ता था. वे 9 साल के थे, तब से ऑनलाइन गेमिंग कर रहे हैं. उत्कर्ष बताते हैं कि गेमिंग का लत अपने फ्रेंड सर्कल से ही लगता है. जिन बच्चों की वास्तविक जरूरते नहीं पूरी हो पाती है, वे अपनी जरूरतों को गेमिंग की वर्चुअल दुनिया में पैसा खर्च कर पूरी करने का दिखावा करते हैं.

Utkarsh Mishra
Utkarsh mishra | bca student

” अगर आपको गेमिंग में करियर नहीं दिखता है तो वर्चुअल स्टेटस बनाने का कोई मतलब नहीं है. इससे आपके मेंटल हेल्थ पर काफी असर पड़ेगा. आप कर्ज से दब जाएंगे. इसके साथ ही आप सोशल लाइफ से भी डिसकनेक्ट हो जाएंगे. ऐसे में इस टाइम को सही जगह इस्तेमाल करने की जरूरत है, जिससे समाज में आपकी अलग पहचान बन सके. ”

उत्कर्ष मिश्रा,बीसीए स्टूडेंट

गेमिंग डिसऑर्डर के नुकसान

1- सामाजिक रूप से अलग हो जाना

बहुत ज्यादा गेम खेलने की आदत से पीड़ित व्यक्ति समाजिक रूप से कट सकता है और परिवार, दोस्त और साथियों से दूर हो सकता है. दरअसल व्यक्ति हर वक्त मोबाइल में गेम खेलने में व्यस्त रहता है, उसके अपने आसपास क्या हो रहा है, कई बार इसकी भी सुध-बुध नहीं होती. यह आगे चलकर डिप्रेशन की भी वजह बन सकता है.

2- पेशेवर और शैक्षिक समस्याएं

हर वक्त गेम खेलने की आदत से रोजमर्रा के कामों पर प्रभाव पड़ता है. इस डिसऑर्डर से प्रोडक्टिविटी में कमी, खराब परफॉर्मेंस, अनुपस्थिति या महत्वपूर्ण कामों की अनदेखी हो सकती है.

3- भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्या
गेमिंग डिसऑर्डर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं जैसे एंग्जाइटी, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन और कम आत्मसम्मान में कमी जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा देता है. अगर कोई व्यक्ति पहले से ही किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहा है तो गेमिंग डिसऑर्डर उसकी मानसिक स्थिति को और बदतर बना सकता है.

4- शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या

गेमिंग में बहुत ज्यादा समय बिताने से व्यक्ति आलसी हो सकता है. फिजिकल एक्टिविटी कम होती जाती है, व्यक्ति डाइट पर ध्यान नहीं देता और नींद भी डिस्टर्ब हो सकती है. इन सब चीजों के होने से मोटापा, मस्कुलोस्केलेटल समस्याएं, हृदय संबंधी समस्याओं के साथ ही अन्य दूसरी बीमारियों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

5- आर्थिक समस्या

कुछ मामलों में गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक जिम्मेदारियों मसलन पैसे कमाने से ज्यादा गेम खेलने को तवज्जो दे सकता है, जिससे उसे पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है.

यह ध्यान देने वाली बात है कि गेमिंग डिसऑर्डर का प्रभाव और गंभीरता अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकती है. अगर आप या आपका कोई परिचित गेमिंग से संबंधित लत या परेशानी का सामना कर रहा है तो उसे मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद लेने की सलाह दी जाती है.

गेमिंग डिसऑर्डर से ऐसे करें बचाव

  • बच्चे को मोबाइल और लैपटॉप से दूर रखने की कोशिश करें.
  • बच्चे आपको डिस्टर्ब न करें, इसलिए उन्हें मोबाइल न पकड़ाएं.
  • बच्चों को मोबाइल दिया है तो उसकी मॉनिटरिंग करते रहें.
  • बच्चा अगर किसी खास साइट पर ज्यादा वक्त गुजार रहा है तो अलर्ट हो जाएं.
  • बच्चों के साथ खुद शतरंज, लूडो या आउटडोर गेम्स खेलें.
  • बेवजह के ऐप नहीं डाऊनलोड होने दें, रात को बच्चों को मोबाइल न दें.

गेमिंग डिसऑर्डर क्या है?

गेमिंग डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है जो तब होती है जब व्यक्ति गेम खेलने का आदी हो जाता है, जिससे उसकी दैनिक गतिविधियाँ, रिश्ते, और शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित होने लगते हैं।

इस समस्या से पीड़ित बच्चों में क्या लक्षण दिखाई देते हैं?

लक्षणों में सामाजिक अलगाव, शैक्षिक और पेशेवर समस्याएँ, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याएँ (जैसे एंग्जाइटी और डिप्रेशन), शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याएँ, और आर्थिक संकट शामिल हो सकते हैं।

किस उम्र के बच्चों में गेमिंग डिसऑर्डर सबसे अधिक देखा जाता है?

यह समस्या अक्सर किशोरों, विशेषकर 14-18 वर्ष के बच्चों में देखी जाती है, जो ऑनलाइन गेमिंग में लिप्त होते हैं।

इससे बचाव के लिए माता-पिता को क्या कदम उठाने चाहिए?

माता-पिता को बच्चों को मोबाइल और लैपटॉप से दूर रखने, उनकी गेमिंग आदतों की मॉनिटरिंग करने, और परिवार के साथ आउटडोर गेम्स खेलने की कोशिश करनी चाहिए।

अगर कोई बच्चा गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाए, तो क्या करना चाहिए?

ऐसे बच्चे को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद लेने की सलाह दी जाती है ताकि उनकी स्थिति का सही मूल्यांकन किया जा सके और आवश्यक उपचार शुरू किया जा सके।

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