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World Environment Day: हर दूसरे साल सूखा, और अब गंगा नदी की भी सूखने लगी धार

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World Environment Day : बिहार में एक दशक से बारिश कम होने के कारण हर दूसरे साल सूखे का संकट पैदा हो रहा है. स्थिति ऐसी हो चुकी है कि अधिकतर नदियां सूख चुकी हैं और अब गंगा की धार भी पतली दिख रही है.

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World Environment Day : राजदेव पांडेय, पटना. बिहार में बारिश के लिहाज से सूखे की स्थिति तकरीबन हर दूसरे साल देखी जा रही है. इससे आगे चिंता में डालने वाली बात यह है कि राज्य के बीचों-बीच बहने वाली सदानीरा गंगा में इस साल गर्मियों से जल अभाव का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है. खासतौर पर पटना में अपने समय का सबसे कम जल स्तर (समुद्र सतह से 41 मीटर के आसपास) रिकार्ड किया गया है. इस साल से गंगा में बीच इतने रेतीले टापू दिखाई देने लगे हैं कि गर्मियों में इस महान नदी के बीच कई जगहों पर ” मरू भूमि ” का भ्रम सा होने लगता है. यह अभूतपूर्व पर्यावरणीय बदलाव है. नदियों के सूखने से जलीय जीवों का सिमटना भी तय माना जा रहा है.

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एक दशक से है बारिश का संकट


दरअसल पूरा बिहार क्लाइमेट चेंज के भंवर में है. यह देखते हुए कि दो दशक पहले तक कभी कभार पड़ने वाला सूखा अब तकरीबन हर दूसरे साल पड़ रहा है. जिस साल अच्छी बारिश हो भी जाती है तो उसका वितरण इतना असमान होता है कि उसका समुचित फायदा राज्य को नहीं मिल पाता. कई जिले सूखे रह जाते हैं. बिहार में मानसून के ड्राइ स्पैल भी बढ़े हैं. यह बड़े पर्यावरणीय बदलाव पिछले दस सालों में ज्यादातर देखे गये हैं. आइएमडी के आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि बिहार में पिछले 12-13 सालों में हर दूसरे साल कम बरसात या सूखे जैसी स्थिति बन रही है. अवर्षा से उपजे जल संकट से उबरने के लिए लोग भूजल का अंधाधुंध दोहन कर रहे हैं. यह भयावह संकट को आमंत्रण है, क्योंकि क्योंकि इसके खत्म होने के बाद खेती और जीवन कैसे बचेगी?

सूख चुकी है बिहार की अधिकतर नदियां

दक्षिण बिहार की अधिकतर नदियां सूख चुकी हैं. उत्तरी बिहार की सदानीरा नदियां भी जल बहाव के संकट से जूझ रही हैं. गंगा जैसी नदी अभूत पूर्व जल संकट का सामना कर रही है. ऐसे में आने वाले समय में बिहार के सामने अभूतपूर्व जल संकट खड़ा हो सकता है. इसका सीधा असर लोगों की रोजी-रोटी पर पड़ेगा. दरअसल सूखे की वजह से जब खेती और अधिक संकट में होगी तो रोजी-रोटी के लिए होने वाला पलायन और तेजी से बढ़ेगा. फिलहाल नदियां अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं, उनमें बैंती नदी, बलान, बूढ़ी नदी, चंद्रावत-कोढ़ा-सिखराना नदी, चान्हा, दाहा मही, डोरवा, जमुआरी, काव, खलखलिया, लखनदेई नदी तेल, रामदान, कमला, नूना, बंदैया पैमार, फल्गु,गोइठावा, मोहड़ा, कैमूर में सूअरा नदी शामिल हैं. दरअसल नदियों और नम भूमियों के कैचमेंट में अतिक्रमण बिहार में भयावह भू जल संकट खड़ा कर सकता है. यूं कहें कि राज्य इस संकट के मुहाने पर है. दक्षिण बिहार में तो इसके प्रभाव साफ तौर पर दिखाई दे रहे हैं. वनीकरण घटने से बादलों को पानी बरसाने के लिए बाध्य करने वाली हरियाली भी उजड़ चुकी है. कुल मिलाकर नदियों के सूखने और आबादी के दबाव में राज्य का वनीकरण संकट में है. जिससे मरुस्थलीकरण की शुरुआत हो चुकी है. दक्षिण-पश्चिमी बिहार खास है.

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राज्य में औसतन हर दूसरे साल मानसून की बारिश हो रही कम

बिहार में सूखे का दायरा बढ़ा है. दरअसल दक्षिण बिहार ही, नहीं उत्तरी बिहार के कई जिलों में बारिश औसत से कम हो रही है. फिलहाल वर्ष 2012, 2013, 2014, 2015, 2018, 2022, 2023 में औसत से कम बारिश दर्ज की गयी., ज बारिश भी हुई,वह भी खेती-बारी के पीक टाइम पर नहीं हो रही. ऐसे में किसानों ने भूल से सिंचाई की. यहां बता दें कि राज्य के भू जल स्तर में तेजी से की आ रही है. पानीदार राज्य में भूजल कमी आना बड़े संकट का संकेत है. इस तरह बिहार उन पश्चिमी और मध्य भारत के राज्यों की मानिंद सतही जल और भू जल के लिहाज से जल अभाव वाला क्षेत्र बनता जा रहा है.

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