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World Environment Day: पेड़ों की चढ़ाई बलि तो अब टूट रही सांसें, अब तो जागे

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World Environment Day: पर्यावरण को बचाने में औरंगाबाद निवासी अधिवक्ता, पर्यावरणविद व शिक्षाविद देवकांत कुमार की भूमिका काफी सराहनीय है. देवकांत शहर की अदरी नदी के बचाव तथा शहर में वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण के रोकथाम को लेकर अकेले मोर्चा खोल रखे हैं.

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World Environment Day: औरंगाबाद सदर. वातावरण में फैल रहे प्रदूषण के कारण समूची मानव जाति पर एक बड़ा संकट मंडरा रहा है. अगर इस पर समय रहते रोक नहीं लगायी गयी, तो इसके और भी हानिकारक प्रभाव होंगे और सम्पूर्ण मानव जाति का अस्तित्व संकट में आ जायेगा. जंगलों की अंधाधुंध कटाई, वाहनों व चिमनियों से रोजाना हजारों-लाखों टन निकल रहा धुआं पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है. शहर की सारी गंदगियां नदियों में बहकर उन्हें जहरीला बना चुकी हैं. मनुष्य के स्वार्थ का ही दुष्परिणाम है कि प्रकृति का संतुलन लगातार बिगड़ते जा रहा है. आज पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से जूझ रहा है. गैसों के लगातार बढ़ते उत्सर्जन और वन आवरण में तेजी से हो रही कमी के कारण ओजोन परत का क्षरण हो रहा है.

पिघलने लगे हैं विश्व के ग्लेशियर

सार्वभौमिक तापमान में लगातार होती इस वृद्धि के कारण विश्व के ग्लेशियर पिघलने लगे हैं. ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने का प्रभाव महासागर में जलस्तर में ऐसी ही बढ़ोतरी होती रही, तो महासागरों का बढ़ता हुआ क्षेत्रफल और जलस्तर एक दिन तटवर्ती स्थल भागों और द्वीपों को जलमग्न कर देगा. हालांकि, प्रकृति मनुष्य की हर जरूरत को पूरा करती है, इसलिए यह जिम्मेदारी हरेक व्यक्ति की है कि वह प्रकृति की रक्षा के लिए अपनी ओर से भी कुछ प्रयास करे. आज विश्व पर्यावरण दिवस है. संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा 1972 में पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया था, लेकिन विश्व स्तर पर इसके मनाने की शुरुआत पांच जून 1974 को स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में हुई थी. जहां 119 देशों की मौजूदगी में पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया था. साथ ही प्रति वर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था. आइये आज हम जिले के ऐसे पर्यावरणविदों के बारे में बताते हैं जो पर्यावरण संरक्षण के लिए तन, मन, धन से समर्पित हैं और बेहतर कर समाज के लिए नजीर बने हैं.

देवकांत ने अकेले खोल रखा है मोर्चा

पर्यावरण को बचाने में औरंगाबाद निवासी अधिवक्ता, पर्यावरणविद व शिक्षाविद देवकांत कुमार की भूमिका काफी सराहनीय है. देवकांत शहर की अदरी नदी के बचाव तथा शहर में वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण के रोकथाम को लेकर अकेले मोर्चा खोल रखे हैं. पहले नगर पर्षद द्वारा अदरी नदी में ही शहर का कचरा डंप किया जाता था. देवकांत की पहल पर ही अदरी नदी में कचरा डंप किया जाना पूरी तरह बंद किया गया. साथ ही उनके प्रयास से अदरी नदी के किनारे करीब तीन हजार पौधे लगाये गये. इनमें अधिकतर पौधे जिंदा है. साथ ही इस वर्ष भी हजारों पौधे अदरी नदी के तट पर लगाये जाने वाले हैं. देवकांत इस वक्त शहर के वायु में घुलित जहरीले धुएं और गैस से होने वाले वायु प्रदूषण संकट के रोकथाम को लेकर काफी प्रयास कर रहे हैं. इतना ही नही प्रदूषण फैलाने वाले के खिलाफ एनजीटी में अकेले मुकदमा भी लड़ रहे हैं. देवकांत बताते हैं कि अब तक व्यक्तिगत तौर वे एक हजार से अधिक पौधा लगा चुके हैं. इस वर्ष उनका लक्ष्य 300 पौधा लगाने का है. देवकांत कहते हैं कि शहर के युवाओं और समाजसेवियों को भी इस दिशा में आगे कदम बढ़ाना चाहिए तभी पर्यावरण बच पायेगा.

करीब दो हजार पौधा लगा चुके रजनीश ने

पर्यावरण संरक्षण को लेकर दाउदनगर के अरई निवासी समाजसेवी, पर्यावरणविद व मध्य विद्यालय बल्हमा के शिक्षक रजनीश कुमार कृतसंकल्पित हैं. शिक्षक रजनीश लंबे समय से पर्यावरण को हरा भरा बनाने रखने को लेकर कार्य कर रहे हैं. उनकी मजबूत इच्छाशक्ति व कठोर प्रयास से पूर्व में पटना-औरंगाबाद (एनएच 139) के किनारे 11940 पौधे लगाये जा चुके हैं. रजनीश की माने तो सड़क के निर्माण के क्रम में कुल 3980 पौधों को काटने के लिए चिह्नित किया गया था. निविदा में इस शर्त का उल्लेख था कि काटे गये पेड़ों का तीन गुणा नये पौधे यानी 11940 पौधे लगाने थे. इसे लगाने में एनएचएआइ की ओर से विलंब किया जा रहा था. रजनीश ने इन पौधों को लगवाने के लिए हर संभव प्रयास किया और नतीजतन एनएच 139 के दोनों ओर पौधे लगाये गये. इनमें से अधिकतर पौधे आज जीवित हैं और बड़े हो चुके हैं. हाल फिलहाल में उन्होंने अपने विद्यालय मध्य विद्यालय बल्हमा में 50 पौधे लगाये हैं. इससे पहले वे गोह के पिपराही विद्यालय में थे, जहां 100 से अधिक पौधे लगाये थे. वे व्यक्तिगत तौर पर अब तक डेढ़ से दो हजार पौधे लगा चुके हैं. इस वर्ष उनका लक्ष्य 500 नये पौधे लगाने का है.

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औरंगाबाद पर प्रकृति की वक्र दृष्टि : पर्यावरण बचाएं तभी बचेगा जीवन

  1. औरंगाबाद में पताल में जलस्तर : औरंगाबाद में जलस्तर काफी नीचे जा चुका है. अब यहां पानी 1000 फुट पर मिल रहा है. आज से पांच साल पहले जहां 200 ढाई सौ फुट पर पानी मिलता था वहीं अब पानी के लिए 1000 फुट की खुदाई करनी पड़ रही है फिर भी अधिकतर बोरिंग जवाब दे रहे हैं. शहर पानी की कमी से त्राहिमाम कर रहा है.
  2. बिहार का सबसे गर्म जिला औरंगाबाद: इस बार भयावह गर्मी का अभिशाप सबसे अधिक औरंगाबाद को झेलना पड़ा. बिहार के 38 जिलों में औरंगाबाद इस बार सबसे गर्म जिला रहा. यहां तापमान 48 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा दर्ज किया गया जो प्रदेश में सबसे अधिक था.
  3. अमृतप्राय हुई जिले की सभी नदियां : औरंगाबाद जिले की सभी नदियां अमृतप्राय हो चुकी हैं. यहां की महत्वपूर्ण नदियों में शामिल अदरी नदी, पुनपुन नदी, बतरे व बटानेनदी, मोरहर नदी सूख कर नाले का रूप ले चुकी हैं. ये नदियां अब अपने अस्तित्व की तलाश में हैं.
  4. जहरीली हो रही औरंगाबाद की हवा : औरंगाबाद की हवा दिन प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है. यहां वायु प्रदूषण से लोगों में टीवी व दमा जैसी बीमारियां बढ़ रही है. यहां अत्यधिक वायु प्रदूषण है और यहां का एयर क्वालिटी इंडेक्स बिहार के अन्य शहरों की तुलना में ज्यादा खराब दर्ज की जा रही है जो यहां के लोगों के लिए बेहद चिंता का विषय है.
  5. अवैध खनन से सिमट रहे वन : औरंगाबाद में बालू और मिट्टी का अवैध खनन भी चरम पर है. वन सिमटते जा रहे हैं और वन क्षेत्र में लगातार कमी आ रही है. साथी इससे वायु प्रदूषण व मृदा क्षरण भी हो रहा है. इसे लेकर भी सचेत होने की जरूरत है

प्रभात अपील

पर्यावरण को बचाना हम सब की जिम्मेदारी है. लगातार तापमान में वृद्धि हो रही है. आने वाले वर्षों में मनुष्य का जीवित रहना भी असंभव हो जायेगा. इसके लिए हमें बड़ी तादाद में पौधे लगाने होंगे. आइये प्रभात खबर के साथ मिलकर यह संकल्प लें कि विश्व पर्यावरण दिवस पर सभी पाठक एक पौधा अवश्य लगाएंगे और पर्यावरण को बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे.

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