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अब नौ दिसंबर को होगी ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द मामले की सुनवाई

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नौ दिसंबर को 2010 के बाद जारी किये गये सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाण पत्रों को रद्द करने के कलकत्ता हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए पश्चिम बंगाल राज्य की याचिका पर विचार करेंगे.

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कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी थी राज्य सरकार संवाददाता, कोलकाता सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी प्रमाणपत्र रद्द करने संबंधित हाइकोर्ट के आदेश के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए कहा कि वे नौ दिसंबर को 2010 के बाद जारी किये गये सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाण पत्रों को रद्द करने के कलकत्ता हाइकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए पश्चिम बंगाल राज्य की याचिका पर विचार करेंगे. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने 22 मई के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई की, जिसमें पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) अधिनियम, 2012 के तहत 77 समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में वर्गीकृत करने को रद्द कर दिया गया और 2010 के बाद पश्चिम बंगाल में जारी किये गये सभी अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) प्रमाण पत्र रद्द कर दिये गये. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (पश्चिम बंगाल राज्य के लिए) ने संक्षेप में प्रस्तुत किया कि वह हाइकोर्ट के विवादित फैसले पर रोक लगाने के लिए दबाव डाल रहे हैं. उन्होंने कहा कि न्यायालय द्वारा अंतरिम राहत पर सुनवाई करने के बाद, वह योग्यता के आधार पर पक्षों की सुनवाई कर सकता है. श्री सिब्बल ने कहा कि हाइकोर्ट ने 2010 के बाद जारी किये गये ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया है, जिसके आधार पर भर्तियां हुई हैं. उन्होंने कहा कि हालांकि सेवा में शामिल लोगों को सुरक्षा दी गयी है, लेकिन इससे आगे की नियुक्तियां रुक गयी हैं. गौरतलब है कि इससे पहले पांच अगस्त को सर्वोच्च न्यायालय पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की पीठ, जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करने और साथ ही विवादित आदेश के आवेदन पर रोक लगाने की याचिका पर नोटिस जारी किया. पीठ ने राज्य से 77 समुदायों को ओबीसी के रूप में वर्गीकृत करने के लिए अपनायी गयी प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए एक हलफनामा दायर करने को कहा था. इसके अलावा, न्यायालय ने यह भी पूछा कि क्या ओबीसी के उप-वर्गीकरण के लिए राज्य द्वारा कोई परामर्श किया गया था और जिस अध्ययन पर भरोसा किया गया था, उसकी प्रकृति को स्पष्ट करें. कलकत्ता हाइकोर्ट ने 22 मई को अपने विवादित फैसले में स्पष्ट किया कि जो लोग इस अधिनियम के लाभ पर रोजगार प्राप्त कर चुके हैं और इस आरक्षण के कारण पहले से ही सेवा में हैं, वे इस आदेश से प्रभावित नहीं होंगे. जस्टिस तपोब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने राज्य में ओबीसी प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया. इस फैसले से पांच लाख ओबीसी प्रमाण पत्र प्रभावित होंगे. न्यायालय ने कहा कि किसी वर्ग को न केवल इसलिए ओबीसी घोषित किया जाता है क्योंकि वह वैज्ञानिक और पहचान योग्य आंकड़ों के आधार पर पिछड़ा है, बल्कि इस आधार पर भी कि राज्य के अधीन सेवाओं में ऐसे वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है. इस अपर्याप्तता का आकलन अन्य अनारक्षित वर्गों सहित समग्र जनसंख्या के संदर्भ में किया जाना आवश्यक है.

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