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किशोरी से दुष्कर्म व हत्या के आरोपी ने कहा- उसे फंसाया गया है

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दक्षिण 24 परगना के जयनगर थाना क्षेत्र में एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म व हत्या के मामले में दोषी मोस्तकिन सरदार उर्फ मुस्तकीम (19) को बारुईपुर फास्ट ट्रैक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जजेज कोर्ट (पॉक्सो कोर्ट) के न्यायाधीश सुब्रत चट्टोपाध्याय ने शुक्रवार को फांसी की सजा सुनायी.

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दक्षिण 24 परगना के जयनगर में हुई थी घटना

संवाददाता, कोलकाता

दक्षिण 24 परगना के जयनगर थाना क्षेत्र में एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म व हत्या के मामले में दोषी मोस्तकिन सरदार उर्फ मुस्तकीम (19) को बारुईपुर फास्ट ट्रैक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जजेज कोर्ट (पॉक्सो कोर्ट) के न्यायाधीश सुब्रत चट्टोपाध्याय ने शुक्रवार को फांसी की सजा सुनायी. अभियुक्त के वकील द्वारा कम उम्र के नाते सुधार का मौका देने व घर का एकमात्र कमाऊ सदस्य होने की दलीलें भी काम न आयीं.

शुक्रवार सुबह 10:20 बजे मोस्तकिन सरदार को अदालत परिसर लाया गया. वाहन से बाहर निकलने वक्त संवाददाताओं के समक्ष उसने कहा कि उसने कुछ नहीं किया है. उसे फंसाया गया है. जब पूछा गया कि किसने फंसाया, तब उसने कहा कि पार्टी ने. किस पार्टी ने फंसाया, इसका उसने कोई जवाब नहीं दिया. सुबह करीब 11.45 बजे उसे कोर्ट रूम लाया गया. दोपहर 12.15 बजे वह कटघरे में पेश हुआ. न्यायाधीश ने युवक से पूछा कि उसे गत गुरुवार को दोषी ठहराया जा चुका है. ऐसे में उसे कुछ कहना है? उसने कहा : मैंने कुछ नहीं किया है. मेरे अलावा मेरे माता-पिता का कोई नहीं है. पिता बीमार हैं. उन्हें देखने वाला कोई नहीं है. यदि आप कर सकें, तो क्षमा करें. मैं अभाव के लिए काम करता था. न्यायाधीश ने पूछा कि अभियुक्त के पिता क्या काम करते थे? पुलिस का कहना है कि उसके पिता की खोज-खबर नहीं है और घर पर ताला लगा है. अभियुक्त के वकील ने कहा कि उसके मुवक्किल के पिता बीमार हैं और उनके पैर में गैंगरीन है. न्यायाधीश ने युवक से कहा कि क्या वह अपने माता-पिता का फोन नंबर दे सकता है, ताकि संपर्क करके देखा जाये. उसने फोन नंबर दिया. न्यायाधीश के कहने पर वकील ने फोन किया, लेकिन फोन पर कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद युवक के वकील ने कहा कि उसके मुवक्किल के पिता बीमार हैं. उसके घर में कोई कमाने वाला नहीं है. मोस्तकिन ने अपनी पढ़ाई पूरी किये बिना ही काम करना शुरू कर दिया. उसकी कम उम्र के मद्देनजर विचार कर कानून के मुताबिक सुधार का मौका देना चाहिए. उसके खिलाफ पहले से कोई मामला नहीं है. सुधार का मौका दिया जाना चाहिए.

अभियुक्त के वकील की दलीलें सुनने के बाद विशेष सरकारी वकील विभाष चट्टोपाध्याय ने कोर्ट में दोषी को फांसी देने की मांग की. उन्होंने कहा कि जिन चार मामलों के तहत मोस्तकिन को दोषी ठहराया गया है, उनमें अधिकतम सजा मौत व फांसी है. ऐसे में यह दलील क्यों दी जा रही है कि दोषी को सुधार का मौका दिया जाना चाहिए? इससे समाज में क्या संदेश जायेगा?

जिस नाबालिग की बेरहमी से दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गयी, वह पढ़ाई में काफी अच्छी थी. कक्षा में पहले स्थान पर थी. वह देश की एक प्रतिभाशाली नागरिक हो सकती थी? डॉक्टर बन सकती थी. वकील बन सकती थी. वह अपने माता-पिता की इकलौती बेटी थी. उसकी फूल जैसी जिंदगी को खत्म कर दिया गया. सर, अगर आपको लगता है कि इस आरोपी को संशोधन व सुधार का मौका दिया जा सकता है? मेरी राय में नहीं. क्योंकि आज भी दोषी युवक को कोई पछतावा नहीं है. दोषी को फांसी की सजा की मांग करते हुए उन्होंने न्यायाधीश के समक्ष कुछ दलीलें रखीं – नाबालिग लड़की से दुष्कर्म व हत्या की घटना को पूरी तरह से सोच-समझकर कर अंजाम दिया गया है. पीड़िता को साइकिल पर बिठाकर एक सुनसान जगह पर ले जाया गया. उससे दुष्कर्म किया गया और बाद में हत्या कर तालाब में फेंक दिया गया. दोषी को कोई पछतावा भी नहीं है. उसका कहना है कि वह लड़की को प्यार करने के लिए ले गया था. इससे पहले भी दोषी युवक किसी अन्य लड़की से छेड़खानी करने का प्रयास कर चुका है. उसने सुनियोजित तरीके से घटना को अंजाम दिया है. दोषी की उम्र कम है, इससे न्याय का कोई संबंध नहीं है.

अभियुक्त के वकील का कहना है कि उसका मुवक्किल एकमात्र कमाऊ सदस्य है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि यह कोई दलील नहीं हो सकती है. यह एक क्रूर घटना है. यहां दोषी ने घटना को अंजाम देने के लिए झूठ का भी सहारा लिया. पीड़िता को उसके पिता के बारे में बता कर उसे साइकिल पर बैठाकर सुनसान जगह पर ले गया था. इस मामले में भावना के लिए कहीं कोई जगह नहीं है. नृशंस हत्या हुई है और उसकी अधिकतम सजा फांसी है. कोर्ट को पीड़िता के माता-पिता के बारे में भी सोचना चाहिए. उन्होंने अपनी एकमात्र संतान को खो दिया है. क्या अब नाबालिग लड़कियों के माता-पिता को यह क्यों सोचना चाहिए कि उनकी बेटी का बॉडीगार्ड कौन होगा. उन्होंने सवाल उठाया कि क्या उस उम्र की लड़कियां कोचिंग, स्कूल से घर लौटने से डरेंगी? उन्होंने इस दलील पर फांसी की अपील की.

दलीलें सुनने के बाद अदालत ने करीब दो घंटों बाद दोषी को फांसी की सजा सुनायी. इसके साथ ही पीड़िता के माता-पिता को 10 लाख रुपये मुआवजा दिये जाने का भी निर्देश दिया गया है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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