कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने कथित रूप से दुष्कर्म से पैदा हुए बच्चे के डीएनए पितृत्व परीक्षण का आदेश दिया, क्योंकि आरोपी ने अदालत में याचिका दायर कर दावा किया है कि वह उक्त बच्चे का पिता नहीं है. न्यायमूर्ति शंपा दत्त (पॉल) ने आरोपी की याचिका स्वीकार कर ली, क्योंकि उसने दावा किया है कि पीड़िता तक उसकी कोई पहुंच नहीं थी और वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ रिश्ते में थी. अदालत ने कहा : जब ऐसे रिश्ते में ‘गैर-पहुंच’ का दावा किया जाता है, तो आरोपी को यह अधिकार है कि वह उपलब्ध/संभव साक्ष्य के माध्यम से इसे साबित कर सके. बता दें कि आरोपी पर 2008 में पीड़िता के पिता की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि शादी का वादा करने के बाद उस व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाने के बाद उसकी बेटी गर्भवती हो गयी थी. मुकदमे के दौरान अपनी जिरह में पीड़िता ने यह साबित करने के लिए पितृत्व परीक्षण के लिए सहमति व्यक्त की कि आरोपी ही बच्चे का पिता है. हालांकि, आरोपी ने बताया कि पीड़िता ने खुद स्वीकार किया था कि वह किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध में थी. इसके बाद उसने बच्चे के पितृत्व परीक्षण के लिए ट्रायल कोर्ट का रुख किया. एक अगस्त 2023 को ट्रायल कोर्ट ने उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था. इसके बाद आरोपी ने हाइकोर्ट का रुख किया. न्यायालय ने कहा कि जबकि एक ”सकारात्मक” पितृत्व परीक्षण प्रथम दृष्टया रिश्ते तक पहुंच को साबित करेगा, अपराध का सबूत अभी भी प्रासंगिक साक्ष्य द्वारा साबित किया जाना चाहिए. न्यायाधीश ने कहा कि प्रार्थना को अस्वीकार करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा. बच्चे के डीएनए परीक्षण का आदेश देते हुए न्यायालय ने आरोपी को ट्रायल कोर्ट में एक लाख जमा करने को कहा है. साथ ही कहा है कि यदि परीक्षण सकारात्मक पाया जाता है तो यह धनराशि पीड़िता और उसके बच्चे को दी जायेगी. न्यायालय ने आदेश दिया कि ट्रायल कोर्ट इस आदेश की तिथि से 60 दिनों के भीतर पूरी प्रक्रिया पूरी करे और फिर कानून के अनुसार आगे बढ़े.
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