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बरसात में सांप दिखें तो मारें नहीं, वन विभाग को बताएं

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विषधर सांपों के गढ़ कांकसा के जंगलमहल में वन विभाग फैला रहा जागरूकता

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मुकेश तिवारी, पानागढ़

पश्चिम बर्दवान जिले के पानागढ़ के कांकसा ब्लॉक का जंगलमहल विषधर सांपों का गढ़ है. बरसात में जंंगलमहल के बनकाठी, मलानदीघी, त्रिलोकचंद्रपुर, गोपालपुर, विदबिहार आदि ग्राम पंचायत क्षेत्रों में सांप जब-तब बिलों से बाहर आ जाते हैं और किसी न किसी को डंस लेते हैं. यहां किंग कोबरा, कोबरा, कराइत, वाइपर, ग्रीन पिट वाइपर, स्केल वायपर, कोरल स्नेक, बेन्डेड क्रैट, रशैल वाइपर, सॉ-स्केल्ड वाइपर आदि प्रजातियों के सांप विचरते हैं. इन प्रजातियों के जहरीले सांप खेतिहर भूमि में विचरण करते हैं. सर्पदंश के मामलों को लेकर वन विभाग लगातार क्षेत्र में जागरूकता फैला रहा है, जिसके फलस्वरूप सांप के डंसने के मामले तो घटे ही हैं, आम ग्रामीण यहां तक कि पिछड़े आदिवासी व अन्य जनजातियों के लोग भी अब सांपों के काटने या डंसने पर झाड़-फूंक के लिए ओझा या तांत्रिक के पास जाने के बजाय नजदीकी सरकारी अस्पताल जाकर पीड़ित का इलाज कराते हैं. वन विभाग की ओर से क्षेत्र में जागरूकता फैलाते हुए कहा जा रहा है कि बरसात में बिलों या गड्ढों में पानी भर जाने से सांपों या अन्य विषधरों का सतह पर आ जाना स्वाभाविक है. ऐसे में अपने बगीचे, घर-आंगन या कहीं भी सांप दिखें, तो उसे मारने के बजाय वन-विभाग को सूचित करें. वन विभाग के विशेषज्ञ स्नेक कैचर वहां पहुंच कर सांप को पकड़ेंगे और उसे जंगल में ले जाकर छोड़ देंगे.

बरसात में जंगलमहल के आदिवासी अंचलों में सांपों का उत्पात दिखने लगा है. पहले क्षेत्र के ग्रामीण, सांप के काटने या डंसने पर पीड़ित को पहले झाड़-फूंक के लिए तांत्रिक या ओझा के पास ले जाते थे. तांत्रिक झाड़-फूंक के नाम पर लोगों को धोखा ही देते हैं, यह बात अब लोग समझने लगे हैं. किसी ओझा को सर्पदंश के पीड़ित को बचाते हुए नहीं देखा गया. तांत्रिकों के चक्कर में पड़ कर कई पीड़ितों की जान भी जा चुकी है. इसलिए वन विभाग की सतत जागरूकता के चलते अब लोग जागरूक हुए हैं. अब सर्पदंश के शिकार काल के गाल में नहीं समा रहे. अब आदिवासी भी सांप के डंसने पर पीड़ित को लेकर नजदीकी सरकारी अस्पताल जाते हैं, जहां उसका संस्थागत उपचार किया जाता है और पीड़ित कुछ दिन बाद ठीक होकर घर आ जाता है.

घटे हैं सर्पदंश के मामले : फॉरेस्ट रेंजर

उधर, बर्दवान वन विभाग के दुर्गापुर रेंजर सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा कि सांप के डंसने की घटनाएं भी अब कम ही सुनने को मिलती हैं. अब लोग सांप के काटने के मामले में सरकारी अस्पतालों पर निर्भर हैं. वन विभाग भी क्षेत्र में जागरूकता बढ़ा रहा है. बस बरसात के समय ही सांपों का उपद्रव बढ़ जाता है. इस समय लोगों को सतर्कता बरतनी चाहिए. शाम ढले ज्यादातर जहरीले सांप गांवों के आसपास रेंगते रहते हैं. सूचना पाते ही वन विभाग के कर्मचारी तुरंत पहुंचते हैं और सांप को पकड़ कर सुरक्षित घने जंगल में छोड़ देते हैं. सांप के डंसने पर क्या करें, क्या नहीं, इस बाबत वन विभाग से लोगों को सजग किया जा रहा है.

सांप मारने की प्रवृत्ति घटी

बर्दवान वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जंगल से सटे तीन वन क्षेत्र हैं – दुर्गापुर वन क्षेत्र, आउसग्राम वन क्षेत्र और पानागढ़ वन क्षेत्र. तीनों को मिला कर लगभग 100 जहरीले सांपों को घनी आबादी क्षेत्र से बरामद कर घने जंगल में छोड़ा गया है. सांपों के जानकार प्रियब्रत घोष बताते हैं कि कई सांप आज विलुप्त होने के कगार पर हैं. आजकल ज्यादातर सड़कें कच्ची रहीं नहीं. पक्की सड़कें बन गयी हैं, हरे-भरे जंगल की जगह कंक्रीट के ढांचे तैयार हैं. ऐसे में स्वभाव से ठंडक को पसंद करनेवाले सांप कम ही दिखते हैं. अलबत्ता, बरसात के समय जंगल व खड्डों-बिलों में पानी भर जाने से सांप जन-बहुल इलाके की ओर रेंगते हुए आ जाते है. इससे कई बार लोगों को सर्पदंश का शिकार होना पड़ता है. पहले, ग्रामीण सांप अथवा, किसी अन्य विषधर को देखते ही मारने को दौड़ पड़ते थे, लेकिन अब लोग पहले की अपेक्षा जागरूक हुए हैं. सांपों को मारने की प्रवृत्ति काफी घट गयी है.

घनी आबादी में आये अजगर चट कर जाते हैं बत्तख-मुर्गी

बनकाठी ग्राम के निवासी प्रणव भट्टाचार्य ने कहा कि पहले के मुकाबले जंगलमहल के आदिवासी भी अब सजग हुए हैं. अब ये लोग भी सांप के डंसने पर पीड़ित को करीबी सरकारी अस्पताल ले जाते हैं. बीते कुछ वर्षों में जंगल से घनी आबादी क्षेत्र में आये बड़े-बड़े अजगरों को वन विभाग के विशेषज्ञों ने पकड़ा है. ये अजगर भोजन की तलाश में घनी आबादी क्षेत्र में आ जाते हैं और बत्तखों-मुर्गियों आदि को चट कर जाते हैं. यह डर भी स्थानीय लोगों में बना रहता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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